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vishnu thore
Gudiya Gupta (kavyatri).....
मैं कहती थी ना मैं काटा हूं मैं हाथ नहीं कभी आऊंगी रही अकेली सर्वदा अकेले ही रह जाऊंगी मैं कहती थी ना काटा हूं हाथ कभी ना आऊंगी.. मेरे तन पर कांटो के बीच रिक्त स्थान नहीं होता मैं ही काटो पर नहीं सोती वरण कांटा मुझ पर सोता हर लम्हा घपता है तन में मैं निशान नहीं मिटा पाऊंगी आंसू मेरे पूरे तन पर पर आंखें दिखा ना पाऊंगी मैं कहती थी ना मैं काटा हूं हाथ कभी ना आऊंगी... चाह सभी को फूलों की मैं काटा ही रह जाती हूं यह भी मसला जब देखे कोई मैं नजर भी नहीं मिलाती हूं बेकार बहुत हूं ..सुना है मैंने मैं खुशबू भी.. ना ला पाऊंगी मैं कहती थी ना काटा हूं हाथ कभी ना आऊंगी.. ये कैसे ख्वाब सजा बैठी मुझे हाथ कोई क्यों लगाएगा मैं काटा हूं मुझे छू कर जख्म ही तो पाएगा... ना सुबह सुनहरी खीलती हूं ना शाम को मुरझा पाऊंगी मैं कहती थी ना काटा हूं मैं हाथ कभी ना आऊंगी रही अकेली सर्वदा अकेले ही रह जाऊंगी..!! ©Gudiya Gupta (kavyatri)..... #मैं काटा हूं
Arsh
Manni Kumar *
ABHISHEK
अगर हम मर भी गए तो कया हूआ अभी मेरा बाई जिदां है। ©ABHISHEK अभी मेरा बाई जिदां है।
Krishnadasi Sanatani
कर्मों की सज़ा भोज के लिए एक व्यक्ति ने एक बार एक बकरे की बलि चढ़ाने की तैयारी आरम्भ की। उसके बेटे बकरे को नदी में स्नान कराने ले गये। नहाने के समय बकरा एकाएक बडी जोर से हँसने लगा; फिर तत्काल दुःख के आँसू बहाने लगा। उसके विचित्र व्यवहार से चकित हो कर बेटों ने उससे जब ऐसा करने का कारण जानना चाहा तो बकरे ने कहा कि कारण वह उनके पिता के सामने ही बताएगा। व्यक्ति के सामने बकरे ने यह बतलाया कि उसने भी एक बार एक बकरे की बलि चढ़ायी थी, जिसकी सज़ा वह आज तक पा रहा था। तब से चार सौ निन्यानवे जन्मों में उसका गला काटा जय श्री राम जा चुका है और अब उसका गले कटने की अंतिम बारी है। इस बार उसे एक बुरे कर्म का अंतिम दंड भुगतना था, इसलिए वह प्रसन्न होकर हँस रहा था। किन्तु वह दुःखी हो कर इसलिए रोया था कि अगली बार से तुम्हारे भी सिर पाँच सौ बार काटे जाएंगे। व्यक्ति ने उसकी बात को गंभीरता से लिया और उसके बलि की योजना स्थगित कर दी तथा अपने बेटों से उसे पूर्ण संरक्षण की आज्ञा दी। किन्तु बकरे ने व्यक्ति से कहा कि ऐसा संभव नहीं है, क्योंकि कोई भी संरक्षण उसके कर्मों के पाप को नष्ट नहीं कर सकते। कोई भी प्राणी अपने कर्मों से मुक्त नहीं हो सकता। जब बेटे उस बकरे को ले कर उसे यथोचित स्थान पर पहुँचाने जा रहे थे। तभी रास्ते में किनारे एक पेड़ के शाखा पर नर्म-नर्म पत्तों को देख ज्योंही बकरे ने अपना सिर ऊपर किया, तभी एक वज्रपात हुआ और पेड़ के ऊपर पहाड़ी पर स्थित एक बड़े चट्टान के कई टुकड़े छिटके। एक बड़ा टुकड़ा उस बकरे के सिर पर इतनी जोर से आ लगा कि पलक झपकते ही उसका सिर धड़ से अलग हो गया। ©Krishnadasi Sambhavi कर्मों की सज़ा भोज के लिए एक व्यक्ति ने एक बार एक बकरे की बलि चढ़ाने की तैयारी आरम्भ की। उसके बेटे बकरे को नदी में स्नान कराने ले गये। नहान