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अशेष_शून्य
इसलिए" ख़ुद से पराजित होना आवश्यक है; आवश्यक है ख़ुद को पराजित करना ताकि प्रेम इस ब्रह्मांड में सदैव अजेय बना रहे।।" -Anjali Rai (शेष अनुशीर्षक में) प्रतिद्वंदिता तुमसे नहीं ईश्वर ! कब समझोगे हम दोनों एक ही पक्ष से तो लड़ रहे हैं और वो है ख़ुद की खींची गई सीमा रेखा
Harendra Singh Lodhi
आज अंततोगत किञ्चित सा ही सही, किंतु कुछ कहना चाहता हूं... बड़ी मुश्किल से एक घरौंदा तैयार किया था तेरे हृदय में, जब रहने लगा तब अचानक से न जाने कहां से... एक अजनबी जबरन घुस आया, मैंने तनिक विरोध किया भी, कतिपय संघर्ष भी किया, किन्तु जब तुम ने कहा कि रहने दो उसे यहां! ये घर तुमने बनाया अवश्य है, किन्तु तुम्हारा है नहीं...कदाचित उसी का है। उस दिन तुम्हारे मुंह से ये बात सुनकर बहुत रोया था, और तिनका तिनका बिखरा भी था किन्तु वो तूफान वहीं नहीं थमा मेरे चाहने वाले ने मेरा सामान और बोरिया बिस्तर मुझे थमाते हुए कहा कि घर के बाहर, द्वार पर अपना सामान रख लो! बात जरा ये है कि भीतर अब जगह कम है। अब उसी घर की चौखट पर पड़ा हूं जो कभी अपने हाथों से बनाया था, जिसके बाहर कभी मेरा ही नेम प्लेट था, अहा... अब नेम प्लेट बदल गई है पुरानी वाली की जगह नई ने ली है जानती हो...कल रात के तूफान में मेरी जर्जर टटिया उड़ गई थी और मैं बिना बताए ही, बहुत मजबूर होकर, अपना सारा सामान समेट कर, तुम्हारी चौखट से अब कहीं दूर चला आया हूं... पता नहीं कहां? पर वो वादा अब भी है कि फिर मिलूंगा... कदाचित किसी और जन्म में। ©Harendra Singh Lodhi एक पराजित प्रेमी #findyourself
Kumar Rain
सामर्थ्य भी पराजित होता है, यदि उसका आधार अधर्म हो.… यकीन ना हो तो द्रोणाचार्य, भीष्म और कर्ण को ही देख लो.… नेक कार्य निरंतर करते रहें...... कोई आपका सम्मान करे या न करे.... आपकी अंतरात्मा सदा आपको सम्मानित करेगी.... इससे बड़ा सुख जीवन में और कुछ नहीं है.... ©Kumar Rain *सामर्थ्य भी पराजित होता है,
Manisha Keshav
सूर्य उदय क्षितिज पे चंद्र बिदा ले चुके तेरे भीतर समाविष्ट दोनों ये तेजपुंज तू क्यूँ न पहचाने जाग जा.सवेरा हो चूका भीतर का प्रकाश पहचान ले कर्म की लय दोनों से सीख आसपास फ़ैले अंधेरे को पराजित तू कर दे. ©Manisha Keshav #Light ##अंधेरे को पराजित तू कर ##
Harendra Singh Lodhi
मानवता के इन मेलों में मेरे भी कुछ अपने हैं। एक ढलती सहमी सहमी सी सांझ मेरी है, तो उस परित्यक्त पड़े खंडहर मन्दिर में एक दीपक तक को तरसतीं वो पाषाण मूर्तियां मेरी हैं, गांव के छोर अवस्थिति वो तन्हा कुटिया, उसमें निवसित हाड़ हाड़ वो बूढ़ी बुढ़िया अहा! उसके आरे में रखा तिमिर से लड़ता वो अभिमन्यु दीया मेरा है, अपने ही दल से विलग हुआ, स्वनीड लौटता वो थका हारा चरेरू मेरा है। मानवता के इन मेलों में मेरे भी कुछ अपने हैं। ©Harendra Singh Lodhi परित्यक्त #अकेलापन #तन्हा #पराजित #हिन्दीकविता #हिन्दी_साहित्य #stay_home_stay_safe
Jagdish Mandloi
म.प्र.गुरूजी संविदा अध्यापक संघ सत्य परेशान जरूर होता,लेकिन पराजित नही !