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N S Yadav GoldMine
अमावस्या के दिन पीपल के पेड़ पर सुबह जल चढ़ाना चाहिए आइये विस्तार से जानिए !!🍋🍋 {Bolo Ji Radhey Radhey} वैशाख अमावस्या :- 🌿वैशाख का महीना हिन्दू वर्ष का दूसरा माह होता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इसी माह से त्रेता युग का आरंभ हुआ था। इस वजह से वैशाख अमावस्या का धार्मिक महत्व और भी बढ़ जाता है। दक्षिण भारत में वैशाख अमावस्या पर शनि जयंती मनाई जाती है। धर्म-कर्म, स्नान-दान और पितरों के तर्पण के लिये अमावस्या का दिन बहुत ही शुभ माना जाता है। काल सर्प दोष से मुक्ति पाने के लिये भी अमावस्या तिथि पर ज्योतिषीय उपाय किये जाते हैं. वैशाख अमावस्या व्रत और धार्मिक कर्म :- 🌿प्रत्येक अमावस्या पर पितरों की मोक्ष प्राप्ति के लिए व्रत अवश्य रखना चाहिए। वैशाख अमावस्या पर किये जाने वाले धार्मिक कर्म इस प्रकार हैं. 🌿इस दिन नदी, जलाशय या कुंड आदि में स्नान करें और सूर्य देव को अर्घ्य देकर बहते हुए जल में तिल प्रवाहित करें। 🌿पितरों की आत्मा की शांति के लिए तर्पण एवं उपवास करें और किसी गरीब व्यक्ति को दान-दक्षिणा दें। 🌿वैशाख अमावस्या पर शनि जयंती भी मनाई जाती है, इसलिए शनि देव तिल, तेल और पुष्प आदि चढ़ाकर पूजन करनी चाहिए। 🌿अमावस्या के दिन पीपल के पेड़ पर सुबह जल चढ़ाना चाहिए और संध्या के समय दीपक जलाना चाहिए। 🌿निर्धन व्यक्ति या ब्राह्मण को भोजन और यथाशक्ति वस्त्र और अन्न का दान करना चाहिए। पौराणिक कथा :- 🌿वैशाख अमावस्या के महत्व से जुड़ी एक कथा पौराणिक ग्रंथों में मिलती है। प्राचीन काल में धर्मवर्ण नाम के एक ब्राह्मण हुआ करते थे। वे बहुत ही धार्मिक और ऋषि-मुनियों का आदर करने वाले व्यक्ति थे। एक बार उन्होंने किसी महात्मा के मुख से सुना कि कलियुग में भगवान विष्णु के नाम स्मरण से ज्यादा पुण्य किसी भी कार्य में नहीं है। धर्मवर्ण ने इस बात को आत्मसात कर लिया और सांसारिक जीवन छोड़कर संन्यास लेकर भ्रमण करने लगा। एक दिन घूमते हुए वह पितृलोक पहुंचा। वहां धर्मवर्ण के पितर बहुत कष्ट में थे। पितरों ने उसे बताया कि उनकी ऐसी हालत तुम्हारे संन्यास के कारण हुई है। क्योंकि अब उनके लिये पिंडदान करने वाला कोई शेष नहीं है। यदि तुम वापस जाकर गृहस्थ जीवन की शुरुआत करो, संतान उत्पन्न करो तो हमें राहत मिल सकती है। साथ ही वैशाख अमावस्या के दिन विधि-विधान से पिंडदान करो। धर्मवर्ण ने उन्हें वचन दिया कि वह उनकी अपेक्षाओं को अवश्य पूर्ण करेगा। इसके बाद धर्मवर्ण ने संन्यासी जीवन छोड़कर पुनः सांसारिक जीवन को अपनाया और वैशाख अमावस्या पर विधि विधान से पिंडदान कर अपने पितरों को मुक्ति दिलाई। ©N S Yadav GoldMine #wholegrain अमावस्या के दिन पीपल के पेड़ पर सुबह जल चढ़ाना चाहिए आइये विस्तार से जानिए !!🍋🍋 {Bolo Ji Radhey Radhey} वैशाख अमावस्या :- 🌿वैशा
Ravendra
N S Yadav GoldMine
हैं वासुदेव श्रीकृष्ण। मेरे लिए इससे बढ़कर महान दुःख की बात और क्या होगी पढ़िए महाभारत !! 📒📒 महाभारत: स्त्री पर्व द्वाविंष अध्याय: श्लोक 1-18 {Bolo Ji Radhey Radhey} 🌷 गान्धारी बोलीं- भीमसेन ने जिसे मार गिराया था,वह शूरवीर अवन्ती नरेष बहुतेरे बन्धु-बान्धव से सम्पन्न था; परन्तु आज उसे बन्धुहीन की भांति गीध और गीदड़ नोंच-नोंच कर खा रहे हैं। मधुसूदन। देखो, अनेकों शूरवीरों का संहार करके वह खून से लथपथ हो वीरशैया पर सो रहा है। उसे सियार, कंक और नाना प्रकार के मांषभक्षी जीव जन्तु इधर-उधर खींच रहे हैं। 🌷 यह समय का उलट-फेर तो देखो। भयानक मारकाट मचाने वाले इस शूरवीर अवन्ति नरेष को वीरषैया पर सोया देख उसकी स्त्रियां रोती हुई उसे सब ओर से घेर कर बैठी हैं। श्रीकृष्ण। देखो, महाधनुर्धर प्रतीप नन्दन मनस्वी वाहिक भल्ल से मारे जाकर सोये हुए सिंह के समान पड़े हैं। 🌷 रणभूमि में मारे जाने पर भी पूर्णमासी को उगते हुए पूर्ण चन्द्रमा की भांति इनके मुख की कांति अत्यन्त प्रकाषित हो रही है। श्री कृष्ण। पुत्र शोक से सतप्त हो अपनी की हुई प्रतिज्ञा का पालन करते हुए इन्द्रकुमार अर्जुन ने युद्धस्थल में वृद्वक्षत्र के पुत्र जयद्रथ के पुत्र को मार गिराया है। 🌷 यघपि उसकी रक्षा की पूरी व्यवस्था की गयी थी, तब भी अपनी प्रतिज्ञा को सत्य कर दिखाने की इच्छा वाले महात्मा अर्जुन ने ग्यारह अक्षुहिणी सेनाओं का भेदन करके जिसे मार डाला था, वही यह जयद्रथ यहां पड़ा है। इसे देखो। जनार्दन। सिन्धु और सौवीर देष के स्वामी अभिमानी और मनस्वी जयद्रथ को गीध और सियार नोंच-नोंच कर खा रहे हैं। 🌷 अच्युत। इसमें अनुराग रखने वाली इसकी पत्नियां यघपि रक्षा में लगी हुई हैं तथापि गीदडि़यां उन्हें डरवाकर जयद्रथ की लाष को उनके निकट से गहरे गड्डे की ओर खींचे लिये जा रही हैं। यह काम्बोज और यवन देष की स्त्रियां सिन्धु और सौवीर देष के स्वामी महाबाहु जयद्रथ को चारों ओर से घेर कर वैठी हैं और वह उन्हीं के द्वारा सुरक्षित हो रहा है। 🌷 जनार्दन। जिस दिन जयद्रथ द्रौपदी को हरकर कैकयों के साथ भागा था उसी दिन यह पाण्डवों के द्वारा वध हो गया था परन्तु उस समय दुषलाका सम्मान करते हुए उन्होंने जयद्रथ को जीवित छोड़ दिया था। श्रीकृष्ण। उन्हीं पाण्डवों ने आज फिर क्यों नहीं आज सम्मान किया? देखो, वहीं यह मेरी बेटी दुषला जो अभी बालिका है। 🌷 किस तरह दुखी हो हो कर विलाप कर रही है? और पाण्डवों को कोसती हुई स्वंय ही अपनी छाती पीट रही है। श्रीकृष्ण। मेरे लिये इससे बढकर महान् दु:ख की बात और क्या होगी कि यह छोटी अवस्था की मेरी बेटी विधवा हो गयी तथा मेरी सारी पुत्रबधुऐं भी अनाथा हो गयीं। हाय। हाय, धिक्कार है। 🌷 देखो, देखो दुषला शोक और भय से रहित सी होकर अपने पति का मस्तक न पाने कारण इधर-उधर दौड़ रही है। जिस वीरे ने अपने पुत्र को बचाने की इच्छा वाले समस्त पाण्डवों को अकेले रोक दिया था, बही कितनी ही सेनाओं का संहार करके स्वंय मृत्यु के अधीन हो गया। मतवाले हाथी के समान उस परम दुर्जय वीर को सब ओर से घेरकर ये चन्द्रमुखी रमणियां रो रही हैं। एन एस यादव रोहिणी दिल्ली।। ©N S Yadav GoldMine #yogaday हैं वासुदेव श्रीकृष्ण। मेरे लिए इससे बढ़कर महान दुःख की बात और क्या होगी पढ़िए महाभारत !! 📒📒 महाभारत: स्त्री पर्व द्वाविंष अध्याय
Rohan Roy
छोटी-छोटी नदियां ही, बड़े जलाशय का कारण बनती है। अगर बड़े जलाशयों को, अपनी तीव्रता और जल संग्रह का घमंड इस बात से है। कि वह अपने अस्तित्व के, बलबूते से ही निर्मित हुआ है। तो इसे भी एक दिन अलग-अलग हिस्सों में, इसी जल संग्रह का विभाजित होना निश्चित है। ©Rohan Roy छोटी-छोटी नदियां ही, बड़े जलाशय का कारण बनती है। #RohanRoy #motivationalpage #SuccessKaLover
N S Yadav GoldMine
महाभारत: स्त्री पर्व षोडष अध्याय: श्लोक 22-43 {Bolo Ji Radhey Radhey} 📚 उन महामनस्वी वीरों के सुवर्णमय कवचों, निष्कों, मणियों, अंगदों, के यूरों और हारों से समरांगण विभूषित दिखाई देता है। कहीं वीरों की भुजाओं से छोड़ी गयी शक्तियां पड़ी हैं, कहीं परिध, नाना प्रकार के तीखे खग और बाणसहित धनुष गिरे हुए हैं। कहीं झुंड के झुंड मांस भक्षी जीव-जन्तु आनन्द मग्न होकर एक साथ खड़े हैं, कहीं वे खेल रहे हैं और कहीं दूसरे-दूसरे जन्तु सोये पड़े हैं। 📚 वीर। प्रभो। इस प्रकार इन सबसे मरे हुए युद्धस्थल को देखो। जनार्दन। मैं तो इसे देखकर शोक से दग्ध हुई जाती हूं। मधुसूदन। इन पान्चाल और कौरव वीरों के मारे जाने से तो मेरे मन में यह धारणा हो रही है कि पांचो भूतों का ही विनाश हो गया । उन वीरों को खून से भीगे हुए गरूड़ और गीध इधर - उधर खींच रहे हैं। 📚 सहस्त्रों गीध उनके पैर पकड़ - पकड़ कर खा रहे हैं, इस युद्ध में जयद्रथ, कर्ण, द्रोणाचार्य, भीष्म और अभिमन्यु- जैसे वीरों का विनाश हो जायेगा, यह कौन सोच सकता था? जो अवध्य समझे जाते थे, वे भी मारे गये और अचेत एवं प्राणशून्य होकर यहां पड़े हैं। गीध, कंक, बटेर, बाज, कुत्ते और सियार उन्हें अपना आहार बना रहे हैं। 📚 दुर्योधन के अधीन रहकर अमर्ष के वशीभूत हो ये पुरुष सिंह वीरगण बुझी हुई आगे के समान शान्त हो गये हैं। इनकी ओर दृष्टिपात तो करो। जो लोग पहले कोमल बिछौनों पर सोया करते थे, वे सभी आज मरकर नंगी भूमि पर सो रहे हैं। 📚 जिन्हें सदा ही समय-समय पर स्तुति करने वाले बन्दीजन अपने वचनों द्वारा आनन्दित करते थे, वे ही अब सियारिनों की अमंगल सूचक भांति - भांति की बोलियां सुन रहे हैं। जो यशस्वी वीर पहले अपने अंगों में चन्दन और अगुरू चूर्ण से चर्चित हो सुखदायिनी शययाओं पर सोते थे, वे ही आज धूल में लोट रहे हैं। 📚 उनके आभूषणों को ये गीध, गीदड़ और भयानक गीदडियां बारबार चिल्लाती हुई इधर -उधर फेंकती हैं । ये सभी युद्धाभिमानी वीर जीवित पुरुषों की भांति इस समय भी तीखे बाण, पानीदार तलवार और चमकीली गदाऐं हाथों में लिये हुए हैं। 📚 सुन्दर रूप और कान्तिवाले, सांडों के समान हष्ट-पुष्ट तथा हरे रंग के हार पहने हुए बहुत से योद्धा यहा सोये पड़े हैं और मांसभक्षी जन्तु इन्हें उलट-पलट रहे हैं। परिध के समान मोटी बाहों वाले दूसरे शूरवीर प्रेयसी युवतियां की भांति गदाओं का आलिंगन करके सम्मुख सो रहे हैं। जनार्दन। बहुत से योद्धा चमकीले योद्धा चमकीले कवच और आयुध धारण किये हुए हैं, 📚 जिससे उन्हें जीवित समझकर मांसभक्षी जन्तु उन पर आक्रमण नहीं करते हैं। दूसरे महामस्वी वीरों को मांसाहारी जीव इधर-उधर खींच रहे हैं, जिससे सोने की बनी हुई उनकी विचित्र मालाएं सब ओर बिखर गयी हैं। यहां मारे गये यशस्वी वीरों के कण्ठ में पड़े हुए हीरों को ये सहत्रों भयानक गीद़ड़ खींचते और झटकते हैं। 📚 बृष्णिसिंह। प्रायः प्रत्येक रात्रि के पिछले पहर में सुशिक्षित बन्दीजन उत्तम स्तुतियों और उपचारों द्वारा जिन्हें आनन्दित करते थे, उन्हीं के पास आज ये दु:ख और शोक से अत्यन्त पीडि़त हुई सुन्दरी युवतियां करूण विलाप कर रही हैं। केशव। इन सुन्दरियों के सूखे हुए सुन्दर मुख लाल कमलों के समूह की भांति शोभा पा रहे हैं। ©N S Yadav GoldMine #RABINDRANATHTAGORE महाभारत: स्त्री पर्व षोडष अध्याय: श्लोक 22-43 {Bolo Ji Radhey Radhey} 📚 उन महामनस्वी वीरों के सुवर्णमय कवचों, निष्को
AK__Alfaaz..
रात, बिछौने पर, बिछायी गयीं, उसकी चुप्पियां, सिलवटों की लहरों मे, डूबकर कराह रही थीं, और..नैनों की कोरों से, बहे उसके दो मोती, तकिए के गिलाफ पर पड़े, अपने घर का, पता पूछ रहे थें उससे, उसकी आँखों पर सजी, काजल की काली सरिता, पलकों के बंध तोड़, उम्मीद की बहती, बाढ़ मे बहकर, #पूर्ण_रचना_अनुशीर्षक_मे #सावन_की_साँझ रात, बिछौने पर, बिछायी गयीं, उसकी चुप्पियां,
AK__Alfaaz..
आत्मअनुभूति, लेकर आती है, मन के प्रश्न पत्र मे, कई अनसुलझे सवाल, अफसोस, करूणा, व, अश्रुओं की अनगिनत, बीजगणितीय उलझने, मौन अंतस निःशब्द हो, उजला सा दर्पण, बन जाता है उसका, जो प्रतिबिंबित करता है, उसकी काया पर, रूढियों की नुकीली छैनियों से बने, शिलालेखों को, #पूर्ण_रचना_अनुशीर्षक_मे #विधवा_का_वध आत्मअनुभूति, लेकर आती है, मन के प्रश्न पत्र मे, कई अनसुलझे सवाल,
AK__Alfaaz..
आग्रह की वाणी, अवसादित हो गयी, जब विखंडन रचित किया गया, उसके हृदय का, और..उसके जीवन के, प्रत्यय की आत्मियता, उपसर्ग की पगड़ियों मे लिपट, मर्यादा के बंधेज मे, बँधकर रह गयी, कि..जैसे, आँखों से बहता नमक, हृदय के घावों पर उसके, अपना वियोग मलता है,— % & #पूर्ण_रचना_अनुशीर्षक_मे #अग्निशिखा आग्रह की वाणी, अवसादित हो गयी, जब विखंडन रचित किया गया, उसके हृदय का,
AK__Alfaaz..
प्रेम का अर्थ यदि कामना से है, तो वह प्रेम नही, प्रेम से कुछ भिन्न है, प्रेम का भ्रम है, जिस प्रकार पूजन मे प्रयोग होने वाले, अक्षत के दाने का अर्थ चावल नही है, ठीक वैसे ही, प्रेम का अर्थ, कामना भी नही है..।। प्रेम की परिकल्पना यदि सुख से है, तो वह प्रेम नही, प्रेम से कुछ विलग है, प्रेम का संशय है, जिस प्रकार अग्नि के रौशनी करने की, परिकल्पना दीपक नही है, ठीक वैसे ही, प्रेम की परिकल्पना, मात्र सुख भी नही है..।। #पूर्ण_रचना_अनुशीर्षक_मे #प्रेम प्रेम का अर्थ यदि कामना से है, तो वह प्रेम नही, प्रेम से कुछ भिन्न है, प्रेम का भ्रम है,