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Sita Prasad
अंको का क्या है… खड़ा- खड़ा मुस्कुरा रहा था वह, दस वर्षीय बालक, कोमल हृदय, घर में चल रही थी दुर्गा माँ की पूजा, ज़रा देखो क्या हर्ष किया बालक का! पूछ अंक परीक्षा के, उसे लाचार किया। बड़ा ही खुश था वह नौजवान, आज पहली तनख़्वाह हाथ आई थी, माँ के लिए लिया उपहार छोटा सा, ( शेष अनुशीर्षक में) #hphkp_sept_rg017 #hphkpsept_week_1_challange_2 #hindiprabhat #yqdidi #yqbaba #hpkhp हास्य व्यंग्य कविता लिखने की कोशिश की है, उम्मीद है
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read moreNamit Raturi
बिजली कडकी,बादल बरसे आए जो ईश्वर धरती पे, रस्ता भटके प्रभु और आ पहुंचे यहाँ गलती से, जरा सी घूमी क्या दुनिया,फर्क बदल गया जमानो का, कहीं दूषित करे बादलों को काला धुँआ कारखानों का, दग दग दौडे गाडी, पूछें प्रभु यह कैसे रहीस ताँगे, उधर एक छोटी बच्ची गाडियों की खिडकियों को खटखटा के भीख माँगे, यह कैसी दुनियादारी कि कुछ लोग अपने कारोबार मे व्यस्त है, बाकी खाली बैठे चटाई पे राजा,रानी और इके कि दुनिया में मस्त है, हाए यह बेरोजगारी भूखा मर रहा हर कोई कडकी से, बिजली कडकी,बादल बरसे आए जो ईश्वर धरती पे ॥ (read whole poem in caption) ईश्वर धरती पे ! एक नई कविता प्रस्तुत करने जा रहा हूँ,उम्मीद है कि आपके दिलों तक पहुँच सकूं,आपसे निवेदन है कि इस हास्य व्यंग्य कविता को पढें
ईश्वर धरती पे ! एक नई कविता प्रस्तुत करने जा रहा हूँ,उम्मीद है कि आपके दिलों तक पहुँच सकूं,आपसे निवेदन है कि इस हास्य व्यंग्य कविता को पढें #God #Funny #yourquote #yqbaba #satire #hindipoetry #yqdidi #godonearth #vyangatmakkavita
read moreK L MAHOBIA
हाय, मेरी पत्नी बनती कितनी कैसी भोली भाली है। लूटने वाली कोई और नहीं ,अपनी ही घरवाली है। आदमी को देखो कैसा भाग रहा लिखते है अरूणाई में पॉकेट को खाली करती सदा से पत्नी अपनी आली है। रातों दिन मारा मारा फिरता जीवन का रस सूख गया। रोज कमाया पैसा मेरा छीना पत्नी चंडी काली है। हाय, मेरी पत्नी बनती कितनी कैसी भोली भाली है। लूटने वाली कोई और नहीं ,अपनी ही घरवाली है। जीवन में शादी करना भारी मेरी भूल सुनो भाई जी। मेरा जीवन मुश्किल में पड़ता पत्नी महंगी पा ली है। ब्यूटी पार्लर, क्रीम पाउडर आई लाइनर कितने नखरे। साड़ी गहने कपड़े हर महीने में पैसा अब खाली है। हाय, मेरी पत्नी बनती कितनी कैसी भोली भाली है। लूटने वाली कोई और नहीं ,अपनी ही घरवाली है। किटी पार्टी नाइट पार्टी पत्नी कितना फिर ढोंग रचाती। थोड़ा सा पैसा कम होता सुनता अक्सर देती गाली है। किस मोह जाल में उलझाया मुझे बचा लो कोई साथी। गिर गया बेशर्म पैसा भीख मांग रहा छुपाता जाली है। हाय, मेरी पत्नी बनती कितनी कैसी भोली भाली है। लूटने वाली कोई और नहीं , अपनी ही घरवाली है। के एल महोबिया ✍️ ©K L MAHOBIA #कविता हास्य व्यंग्य के एल महोबिया
कविता हास्य व्यंग्य के एल महोबिया
read moreANKIT SAINI
तू जब जब निकले कॉलेज को मैं तेरे पीछे आता हूँ तू देखे पीछे मुड़के जब , मैं जल्दी से छुप जाता हूँ । तू जल्दी से हाँ कह दे, मैं कॉलेज बंक करवा दूँ फ़िल्म तुझे दिखा के, कोई गीत तुम्हे सुना दूँ । ना कर चिंता घर वालों की, जा के उन्हें मनाऊंगा हाँथ तुम्हारा माँगूँगा, चाहे लात भले ही खाऊँगा पैर पकडूँगा मैं उनके , और हाथ तुम्हारा माँगूँगा ना माने घर वाले तो तुमको लेकर भागूँगा ।। हास्य व्यंग्य ।।
हास्य व्यंग्य ।।
read moreAmir Hamja
सेब में स्वाद चाहिए अंगूर की तरह पत्नी भी उसको चाहिए हूर की तरह आलिया जैसी काया हो दहेज मिले भरपूर भले खुद का चेहरा हो लंगूर की तरह हास्य व्यंग्य
हास्य व्यंग्य
read moreVirendra Parmar Thakur
नोटिस आप सभी से निवेदन है के 2-4 दिन के भीतर Groupखाली कर दे 😳 पुताई करवानाी है 😆😆 Dipawali आने वाली है । हास्य व्यंग्य
हास्य व्यंग्य
read moreराजेश तिवारी "रंजन"
मौसम ए इश्क़ में..वो इस कदर मगरूर हो गए, पल भर में दिल दे बैठे और मेरे हुजूर हो गए, मेरा लाखों का सावन बीत ना जाए..तो दो टकिये की नौकरी छोड़कर अभी आ ही रहे थें, पर तीखी,चमकती धूप ने ऐसा सेंका कि वापस चले गए और फिर से दूर हो गए 😂 ©राजेश तिवारी "रंजन" हास्य व्यंग्य
हास्य व्यंग्य #कॉमेडी
read moreAaradhana Anand
(" बाबू ", " सोना ") नामक शब्दों की उत्पत्ति कहां से हुई और कैसे हुई कृपया शुद्ध विचार प्रस्तुत करें । हास्य व्यंग्य
हास्य व्यंग्य
read moreRamesh Lakshkar लक्ष्यभेदी
चार गधों को घोडे़ के साथ दौड़ लगाने का विचार आया विचार करके चारों गधों ने घोडे़ के सामने यह फरमाया- मानी जाएगी चारों की जीत जो एक भी आगे निकल आया यह अजीब शर्त सुनकर भी घोडे़ ने ' हाँ ' में सिर हिलाया । देखकर गधे मुस्कुराने लगे सुखद ध्वनि निकालने लगे जैसे उनके सोये भाग जगे दूसरे ही दिन तैयारी पर लगे । गधों को सम्मिलित शक्ति का दम्भ हुआ जैसे-तेसे, घोडे़-गधे की दौड़ का आरम्भ हुआ । तब तक नहीं रूके जब तक नहीं थके । जैसा कि परिणाम भी तय था इसमें न कही कोई संशय था । आखिरकार 'गर्दभ-दल' हार गया अश्व विजय-रेखा के पार गया । जीत का जश्न मनाते हुए घोडे़ का मन बदला चुप नहीं बैठेंगें 'गधे' लेंगे हार का बदला । क्या कीमत हो सकती है ? यह सोचते हुए वह घर आया दूसरे ही दिन गधा कागज लाया समझ गया, ट्रांसफर आॅर्डर आया । -रमेश 'लक्ष्यभेदी' चित्तौड़गढ़ हास्य-व्यंग्य
हास्य-व्यंग्य #कविता
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