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Gopal Pandit
यूंही भटकते भटकते गुज़र ना जाए ये वक्त सारा कसम तुम्हारी यकीन कर लो बिन तुम्हारे अब ना होगा गुज़ारा हर पल गुजरता सदियों के जैसा नाम ले ले कर के तुम्हारा जब तक ना देखें तस्वीर तेरी कहीं भी लगता ना अब दिल हमारा तेरी गली से हम जब भी गुजरें आंखों से बरसे अंसुओं धारा इतना यकीं तुम हमारा भी कर लो तुम्हारे सिवा नही कोई अपना सहारा नाम ले ले के जी लें तन्हा उमर भर जो श्याम तू ना हुआ हमारा के लिखने लगा जबसे तेरी कृपा को "पंडित" की जीवन में मेरे हुआ उजाला जब टूट कर मैं बिखर रहा था तेरे नाम मुझको संभाला दुनियां में तेरी चर्चा करूं मैं , मुझे भव सागर से तूने निकाला तू ही संभाले उसको सांवरे जिसने भी दिल(श्रद्धा) से तुझको पुकारा अब तो बचा ले ओह खाटू वाले तेरे सिवा नहीं कोई हमारा संभलने लगा हूं मैं दर पे तेरे आकर वरना मैं फिर रहा था दर बदर मारा मारा ज़माने को मैं बस इतना कहूंगा मुझे बेबसी से तूने निकाला इस दुनियां में ऐसा कोई नही है जिसको मुसीबत से ना तूने निकाला तेरी कृपा से ये धरती थमी है ये अंबर भी है श्याम तूने संभाला "पंडित"को आरजू बस तेरी है तेरे बिना ना मेरा होगा गुज़ारा हारा हूं श्याम मैं अब तुम मुझको संभालो हारे श्याम तुम ही हो सहारा। #गोपाल_पंडित ©Gopal Pandit #Janamashtmi2020 यूंही भटकते भटकते गुज़र ना जाए ये वक्त सारा कसम तुम्हारी यकीन कर लो बिन तुम्हारे अब ना होगा गुज़ारा हर पल गुजरता सदियों क
Sangeeta Kalbhor
गोष्ट एका प्रेमाची प्रेमाने मी मांडते प्रेम जोवर लेखणीत लेखणी सुखावते साजरा होतो ऋतू मनामनात काजवा प्रेम भरल्या मनाचा सदैव कौल उजवा नटते धरा नटते अंबर नटते अवघी सृष्टी प्रेम मनात असणाऱ्याची प्रेमळ बनते दृष्टी चराचरात एकची नाद प्रेम पुरुन उरते हाकला कितीही आठवणींना प्रेम स्मरते विठ्ठू माऊलीच्या चरणी प्रेममळा रंगतो वारकरी घेऊनी वीणा जय जय हरीत रंगतो भूक कुठे नि कुठे तहान प्रेम प्रेमात असताना करावी लागत नाही खंत प्रेम शीतलता देताना नात्यांना येते कुंदन रुप बळकटी जाम देते संकट येता एकजूटीने संकटाला दूर नेते लेखणी होती न्हातीधुती साजशृंगार आगळा तो शब्द उमटता काळजावर प्रेमप्रेम सोहळा तो..... मी माझी..... ©Sangeeta Kalbhor गोष्ट एका प्रेमाची प्रेमाने मी मांडते प्रेम जोवर लेखणीत लेखणी सुखावते साजरा होतो ऋतू मनामनात काजवा प्रेम भरल्या मनाचा सदैव कौल उजवा नटते ध
Aacky Verma
जीवन को क्या समझता तु जीवन है अनमोल स्वास मिली है तुझे गिनके इसको यू न तु रोल धरती भी आवाज़ लगाए अपनी बाहे खोल चुप था तब भी क्या अब भी चुप रहेगा अब तो कुछ तु बोल जहा से चले थे पहुंचना भी वही है ये धरती अंबर है सब गोल जीवन को क्या समझता तु जीवन है अनमोल insta: @aackyshayari www.aackysayari.in ©Aacky Verma #जीवन को क्या समझता तु जीवन है अनमोल स्वास मिली है तुझे गिनके इसको यू न तु रोल धरती भी आवाज़ लगाए अपनी बाहे खोल चुप था तब भी क्या अब भी चुप
Rishika Srivastava "Rishnit"
शीर्षक:- "आओ सखी ,खेले फ़ाग " ................................ मार-मार पिचकारी रगों की फुहार से उड़ा के अबीर के रंग, भीगें हर अंग रे.. आओ सखी, खेले फ़ाग एक-दूसरे के संग रे.. करे अंबर लाल पिचकारी के संग रे...! थोड़ा सा ग़ुलाल मैं लगाऊं, थोड़ा तुम लगाना.. लपक-झपक ग़ुलाल के रंगों से, रंगे दोनों संग रे.. आओ सखी, खेले फ़ाग एक-दूसरे के संग रे.. करे अंबर लाल पिचकारी के संग रे..! ना जाने कहाँ होंगे अगले बरस, एक दूसरे को देखने को नजरें जाएगी तरस.. आओ सखी, खेले फ़ाग एक-दूसरे के संग रे.. करे अंबर लाल पिचकारी के संग रे..! आगे की चिंता की शिकन ना आने दे हमारे दरमियान, तू और इस रंग-बिरंगे रंगों संग जिंदगी में भरे हर रंग रे.. आओ सखी, खेले फ़ाग एक-दूसरे के संग रे.. करे अंबर लाल पिचकारी के संग रे..! बरस-बरस भीगेंगे आँचल, भिगोए जलते तन-मन रे.. आओ सखी, बुझा दे प्रेम से हर पीड़ा की चुभन रे.. आओ सखी, खेले फ़ाग एक-दूसरे के संग रे.. करे अंबर लाल पिचकारी के संग रे..!! ©Rishika Srivastava "Rishnit" शीर्षक:- "आओ सखी ,खेले फ़ाग " ................................ मार-मार पिचकारी रगों की फुहार से उड़ा के अबीर के रंग, भीगें हर अ
पथिक..
नील अम्भर सा कोई, घर बना गया बीराने में कौन भा गया किसी को, या हो गया ये अंजाने में एक चमक ख्यालों की थी, या बातों का था कुछ असर उमीदों की परछाईं थी,या रह गयी थी, कुछ कसर कुछ अधूरी थी बातें ,या शब्द थे ,कुछ अनकहे मिल रहे थे, ख्यालात और बन रहे थे,कुछ जज्बात दूरी की एक डोर थी, पर छत एक नीलाम्बर सा था रास्ता भले न मिलता हो पर मंजिलो का ,मुसाफिर एक और था. मिला ना था दिल जिससे कभी पर दिल में उठ रहे उनके लिए कुछ सवाल थे, हकीकत में सब शून्य था, पर न जाने क्यों ये ख्याल था. नील अंबर सा........ ©पथिक.. #नील+अंबर#एक ख्याल
Ambika Mallik
अंबर के आनन का वो चाँद सुनहरा बिंदिया बन मुखरे पर दमक रहा सज रही सर पर सितारों की चुनरी चन्द्र प्रभा की आभा का क्या कहना खिल उठी है आज निशा की तरुणाई फिजाओं में मादकता है फैल रहा हौले-हौले निशा का आंचल सरक अंबर मतवाला मन ही मन झूम रहा अम्बिका मल्लिक ✍️ ©Ambika Mallik #अंबर #nojotahindi Raj Guru Gyanendra Kumar Pandey NIKHAT الفاظ جو دل کو چھو لے Disha Anil Ray Anshu writer Rakesh Srivastava Niaz (Harf)
Saani
दिसंबर मेरे गमों का अब तो अंबर चला गया। शुक्र है खुदा का दिसंबर चला गया।। उलझनों की सब घटाएं छट जाएंगी। दर्द सभी दिसंबर की ये हट जाएंगी।। छोड़ दिया वफ़ा उस सितम गर के बाद। चैन आएगा फिर इस दिसंबर के बाद।। मत बनो तुम मेरे लिए खंजर की तरह। वर्ना चल जाऊंगा मैं दिसंबर की तरह।। ख़त्म करदी मैंने ही वो रस्म ए उल्फत। वो था दिसंबर जब हुआ तर्के मोहब्बत।। दिल में थी तेरे साथ ही जीने की आरजू। दिसंबर ने दफ्न करदी सीने की आरजू।। चाँद छुप गया मुझको एक नज़ारा देकर। लूटा इसी दिसंबर ने फिर इशारा देकर।। (Md Shaukat Ali "Saani") ©Saani दिसंबर मेरे गमों का अब तो अंबर चला गया। शुक्र है खुदा का दिसंबर चला गया।। उलझनों की सब घटाएं छट जाएंगी। दर्द सभी दिसंबर की ये
Medha Bhardwaj
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
ग़ज़ल :- दो कदम चलकर जताना आ गया । आज ये कैसा जमाना आ गया ।।१ होश तो आया नहीं उनको मगर । राह उल्फ़त की दिखाना आ गया ।।२ पायलें तुमको बजाना आ गया । नींद प्रियतम की उड़ाना आ गया ।।३ छुप गये डरकर वहीं हो तुम सदा । सामने जब भी सयाना आ गया ।।४ जुल्फ़ अपनी बाँधकर देखो कभी । अब इन्हें खुलकर उलझना आ गया ।।५ हर अदा तेरी मुझे कातिल लगी । किस तरह तुझको सताना आ गया ।।६ भटकना हमको नही है राह में । बाँह का तेरी ठिकाना आ गया ।।७ नाम प्रियतम का लिखो तुम हाथ में । अब हिना तुमको रचाना आ गया ।।८ एक ख्वाबों की यहाँ दुनिया बना । प्रीत का फिर हर तराना आ गया ।।९ आपकी हर बात में जादू दिखा । छोड़कर दुनिया दिवाना आ गया ।।१० नील अंबर कह रहा हमसे प्रखर । लौटकर तेरा खिलौना आ गया ।।११ ०१/०९/२०२३ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR ग़ज़ल :- दो कदम चलकर जताना आ गया । आज ये कैसा जमाना आ गया ।।१ होश तो आया नहीं उनको मगर । राह उल्फ़त की दिखाना आ गया ।।२
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
ग़ज़ल :- दो कदम चलकर जताना आ गया । आज ये कैसा जमाना आ गया ।।१ होश तो आया नहीं उनको मगर । राह उल्फ़त की दिखाना आ गया ।।२ पायलें तुमको बजाना आ गया । नींद प्रियतम की उड़ाना आ गया ।।३ छुप गये डरकर वहीं हो तुम सदा । सामने जब भी सयाना आ गया ।।४ जुल्फ़ अपनी बाँधकर देखो कभी । अब इन्हें खुलकर उलझना आ गया ।।५ हर अदा तेरी मुझे कातिल लगी । किस तरह तुझको सताना आ गया ।।६ भटकना हमको नही है राह में । बाँह का तेरी ठिकाना आ गया ।।७ नाम प्रियतम का लिखो तुम हाथ में । अब हिना तुमको रचाना आ गया ।।८ एक ख्वाबों की यहाँ दुनिया बना । प्रीत का फिर हर तराना आ गया ।।९ आपकी हर बात में जादू दिखा । छोड़कर दुनिया दिवाना आ गया ।।१० नील अंबर कह रहा हमसे प्रखर । लौटकर तेरा खिलौना आ गया ।।११ ०१/०९/२०२३ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR ग़ज़ल :- दो कदम चलकर जताना आ गया । आज ये कैसा जमाना आ गया ।।१ होश तो आया नहीं उनको मगर । राह उल्फ़त की दिखाना आ गया ।।२