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JS GURJAR
पापा आपकी बेटी बड़ी हो गई गिर गिर करके मैं उठने बाली चलते चलते मैं कापने बाली आज हर मुश्किल पे खम्म हो गई पापा आपकी बेटी बड़ी हो गई हर बात पे मैं चिल्लाने बाली छोटी चोट से मैं रोने बाली आज हरेक दर्द में खड़ी हो गई पापा आपकी बेटी बड़ी हो गई तेज आवाज से डर जानें बाली मैं एक हाथ में तो जान लिए थी एक मे मौत लिए स्थम्म हो गई पापा आपकी बेटी बड़ी हो गई यह दुनियां के सारे रीति रिवाज यह वे मतलब के यहां साज बाज निभाने को बड़ी रस्म हो गई पापा आपकी बेटी बड़ी हो गई स्वरचित एवं मौलिक रचना- ज्योति गुर्जर "सेव्या" ©JS GURJAR #कविता #पापा #बेटी
r̴i̴t̴i̴k̴a̴ shukla
घर से दूर घर की याद बहुत आती है। सुबह तो भाग दौड़ मे निकल जाती, शाम संग यादों का कारवां लाती है, घर से दूर घर की याद बहुत आती है। सब कुछ है इस शहर मे, बस अपनापन नही, कोई अपना नही करवटें बदलती रातों मे माँ की आँचल..। जरा सा तबियत बिगड़ जाने पे, पापा का वो हलचल... गाँव का वो डॉक्टर... जब खाना पकाते वक्त कभी अचानक से जब अंगुली जल जाती है, खाना बन गया है आके खालो ये आवाज कान से होकर आँखों तक आ जाती है... बस मे धक्के खाते वक्त पापा का बाईक से स्कूल छोड़नी याद आती है। बड़े हो जाने पर बचपन की याद सताती है। घर से दूर घर की याद बहुत आती है।। ©r̴i̴t̴i̴k̴a̴ shukla #LongRoad कविता # घर की याद...