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Rajesh Raana
Neha Pant Nupur
Nisheeth pandey
9 नवम्बर 2021 की कुछ पंक्तियाँ , जब मैं अंधेरे की मांद से निकला था तब लिखा था । नियति का चक्र तबाह करने की सोच लें तो कोई कसर नहीं छोड़ती । 😥😰😢 ….. साढ़े चार साल बाद सूरज निकला अंधेरे मांद से ... आँखे मेरी दिखाता रहा जग सारा धुंधला फिर बादल सा .... रंग रूप आकार प्रकार विलुप्त थी मेरी आँखों की दृष्टि से ... लम्बा था कठिन था समय चक्र और एकांतवास .... अंधेरा आखिरकार किया फिर अपने प्रकोप से आज़ाद .... आखों ने देखा फिर सुनहरी धूप की मचलते रंग .... आखों ने फिर मुस्कुराएं प्रकृति के आकार प्रकार और रंगों संग... जीवन फिर जी उठा अंधेरा चांदनी सी लगने लगी #निशीथमन का फिर प्रभात हुआ नई किरण संग ..... #निशीथ ©Nisheeth pandey #andhere 9 नवम्बर 2021 की कुछ पंक्तियाँ , जब मैं अंधेरे की मांद से निकला था तब लिखा था । नियति का चक्र तबाह करने की सोच लें तो कोई कसर नहीं
Nisheeth pandey
पेड़ का जीवन ------------/ जो साख से टूट गया उसे जाने दो, फिर से नव कोंपल सजाने दो। टूट के बिखरे सूखते पत्तियों का मोह देखों, सुख कर भी कहा- अपने साख का खाद बनने दो । मर कर भी फिर से जीना, सुनो पत्तियों, कभी न व्यर्थ जाना। शायद पेड़ ने पत्तियों को पाठ पठाया, क्या खूब संकल्प पत्तियों ने उठाया। जो साख से टूट गया उसे जाने दो, फिर से नव कोंपल सजाने दो। पेड़ और पत्तियों का जीवन अंतिम साँस तक संधर्ष से है भरा ग्रीष्म में तपती झुलसती है , अंगारों के सम जलती है। शुष्क हवा के थपेड़ों से, फिर पत्ता पत्ता दहलती है। नीले आकाश पर घनघोर बादल जब छाते हैं, पत्ते पत्ते तन मन को भीगोने से नहीं बचा पाते हैं। जो साख से टूट गया उसे जाने दो, फिर से नव कोंपल सजाने दो। जीव जंतु मनुख तोड़ मेमोर जाते हैं, फिर भी नए कोपलों संग चलते जाते है। अवरोध बहुत आते हैं लेकिन, पर कभी वीर की भांति नहीं घबराते हैं। पेड़ रहता अडिग है अपने सपने के लिये चीख़ चीख़ कहता सपनों को साकार बनाने दो। जो साख से टूट गया उसे जाने दो, फिर से नव कोंपल सजाने दो। संधर्ष दौर कहाँ कम होता जब आते भीषण झंझावात, तो कुछ पेड़ पत्ते फूल और फल गिर जाते हैं, नवीन सृजन को वो अपने, फिर बीज अंकुरित कर जाते हैं। ऐसा ही जीवनचक्र होता है, तूफ़ान तो आते जाते रहते हैं, नियति के तूफ़ानों से, अब जी भर के टकराने दो। जो साख से टूट गया उसे जाने दो, फिर से नव कोंपल सजाने दो। अंकुरित से पेड़ तक बनने का सफर सरल न होता , पथ में अनेक विघ्न आते है। जो बाधाओं से न विचलित होते, वही पेड़ फलदायी मंज़िल पाते है। जो मानव ज़ख्म से लहूलुहान हो कर भी उठ जाते है, वह मानव इतिहास रच जाते है। इतिहास के नए कोंपल पर, एक फलदाई साख बन जाने दो। जो साख से टूट गया उसे जाने दो, फिर से नव कोंपल सजाने दो। #निशीथ ©Nisheeth pandey #Pattiyan पेड़ का जीवन ------ जो साख से टूट गया उसे जाने दो, फिर से नव कोंपल सजाने दो। टूट के बिखरे सूखते पत्तियों का मोह देखों, सुख कर भी
Nisheeth pandey
कविता- परछाई..... सूरज के उदय ,चांद की चांदनी तक हमसफ़र मिल गया मुझे ,मिल गई मेरी परछाई । बचपन कहता ! जवानी भी दिखाती आई ? कोई डराया ! कोई दिखाया देख तेरी परछाई उतर आई ....। बचपन के खेल-खिलौने, वो संगी-साथी बिछड़ गए भाई पर आज तक संग संग पाये , लगता है हम एक दूजे के लिये बने हैं ऐ परछाई .....। उम्र गुज़र रहीं , अपने पराये नज़रों में बसते गए बिछड़ते भी गए न जाने क्यूं तू करीब ही है कल भी आज भी शायद कल भी रहें..... । रंग बदला, रूप बदला हर शैली बदली, नियति से की इस जीवन की लड़ाई खुशियां हो या दुःख कुझ पलों के बाद छोड़ा साथ सभी ने, सबने जैसे मुझसे मेहमान गिरी निभाई ....। उथल पुथल भी होती रहीं जीवन-गाथा में, जब न सूरज था न चांद की चांदनी अपने पराये हो गए थे बेवफ़ा उस काली स्याह अंधेरे वक्त में साथ-साथ चलने वाली परछाई भी औरों की तरह हो जाती है बेवफ़ा .….…। #निशीथ ©Nisheeth pandey #Parchhai कविता- परछाई..... सूरज के उदय ,चांद की चांदनी तक हमसफ़र मिल गया मुझे ,मिल गई मेरी परछाई । बचपन कहता ! जवानी भी दिखाती आई ? कोई
Rajesh Raana
Ashutosh Mishra
विधाता की अदालत में, वकालत बड़ी प्यारी है। ख़ामोश रहिये,,,,,, कर्म कीजिए, आप कि मुकदमा जारी है। अपने कर्म पर विश्वास कीजिए, राशियों पर नहीं। राशी तो राम और रावण की भी,, एक ही थी। लेकिन नियति ने उन्हें फल ,, उनके कर्मों के अनुरूप दिया। हंसते रहिए, मुस्कराते रहिये, शुभ प्रभात ©Ashutosh Mishra #Sunhera विधाता की अदालत में वकालत बड़ी प्यारी है। ख़ामोश रहिये कर्म कीजिए आप का मुकदमा जारी है। अपने कर्मों पर विश्वास कीजिए राशियों पर नह