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Sarvesh Kumar Maurya
Mili Saha
अब्बास द ग्रेट के नाम से इतिहास में आमतौर पर जाना जाता है शाह अब्बास सफ़विद राजवंश के महानतम शासकों में एक था वो कहता है ये बात ईरानी इतिहास। शाह मोहम्मद खोदबंदा का था वो तीसरा पुत्र और माता थी उसकी खैर अल-निसा बेगम मिला था ये अब्बास नाम उसे अपने दादा से नाम था जिनका तहमासप प्रथम। मात्र अठारह महीने की उम्र में ही अब्बास अपने परिवार से हो गया अलग पन्द्रह वर्षों के पश्चात मिलना हुआ फिर पिता से किंतु माता को कभी न देखा हुआ जो विलग। क़िजिलबाश जो अभिभावक बने अब्बास के उन्हीं से सीखे सैनिक के आवश्यक कौशल शिकार करना पोलो खेलना एक जुनून की तरह कठिन होते थे बड़े प्रशिक्षण के वो पल। किया जाता था अब्बास को प्रशिक्षित अक्सर वहांँ पर घरेलू गुलामों के साथ ही उनके साथ अधिक समय बिताने के कारण बन गए थे वहीं बचपन के कई साथी खास। सफ़वी साम्राज्य के लिए अब्बास बड़े कठिन समय में सिंहासन पर आया अपने राज्य की राजधानी एक महान निर्माता बन वो कज़्वीन से लेकर इस्फ़हान तक ले गया। अपने शासनकाल की उपलब्धियों के लिए प्रशंसित एक मजबूत और निर्णायक शासक था अब्बास किंतु एक अत्याचारी के तौर पर भी है उसकी पहचान बेटे और कई रिश्तेदारों का हत्यारा बना था अब्बास। आश्चर्यजनक सांस्कृतिक विरासत का अधिकांश अंश आधुनिक ईरान में मौजूद दिखाई देता जो आज भी अपने युग के सबसे महान शासकों में से एक यह सांस्कृतिक विरासत थी अब्बास द ग्रेट की। ©Mili Saha अब्बास द ग्रेट के नाम से इतिहास में आमतौर पर जाना जाता है शाह अब्बास सफ़विद राजवंश के महानतम शासकों में
Mili Saha
// राणा अमर सिंह // जिनकी वीरता और साहस ने, अकबर तक को विचलित किया, उस वीर दयालु और राष्ट्र प्रेमी, राणा अमर सिंह की है यह कथा, बचपन से ही सुनते आ रहे थे जो, अपने पूर्वजों की गौरव गाथा, पौत्र महाराणा उदय सिंह के और महारानी अजबदे पंवार माता, शिशोदिया राजवंश मेवाड़ के शासक पिता वीर महाराणा प्रताप, पिता की भांति ही अमर सिंह में कूट-कूट कर था देशभक्ति भाव, न्याय भावना, नेतृत्व, वीरता, दयालुता और बहादुरी का सम्मान, मुगलों के समक्ष महाराणा अमर सिंह को मिला चक्र वीर उपनाम, महाराणा प्रताप सदैव समझते, अमर सिंह आलस से है ग्रसित, किन्तु उन्होंने साहस से, अपनी वीरता को कई बार किया सिद्ध, राष्ट्र से प्रेम था अमर सिंह को, पूर्वजों के इतिहास से था लगाव, शौर्य और प्रताप का संगम था वो, था उसमें देशभक्ति का भाव, संग्राम और प्रताप का वंशज फिरंगीयों के आगे कभी न झुका, अपनी रगों में बहते हुए लहू का, सदैव अमर सिंह ने मान रखा, मृत्यु से पूर्व महाराणा प्रताप ने उत्तराधिकारी था किया घोषित, मेवाड़ वंश परंपरा अनुसार, अमर सिंह हुए शासक स्वीकारित, न्याय प्रियता, कृपाशिलता गुण इनके, प्रजा करती थी आदर, राष्ट्र-हित के लिए अमर सिंह ने, निर्माण करवाया बढ़-चढ़कर, प्रतापेश्वर महादेव मंदिर, महाराणा प्रताप के नाम से बनवाया, सिसोदिया राजवंश का इतिहास, ग्रंथ अमरसार में लिखवाया, मुगलों से कभी न मानी थी हार, हर अनुबंध को पैरों तले रौंदा, राष्ट्रभक्ति दिल में लिए मर मिटा था वो अमर सिंह वीर योद्धा। ©Mili Saha राणा अमर सिंह जिनकी वीरता और साहस ने, अकबर तक को विचलित किया, उस वीर दयालु और राष्ट्र प्रेमी, राणा अमर सिंह की है यह कथा, बचपन से ही सुन
Vedantika
सुनसान गलियाँ आज भी तरसती है तिरे कदमों की आहट को तड़पती है ज़मीं पर आज भी दिखते हैं निशां तिरे तिरे लौट आने की दुआ हर बार करती है ♥️ सुनसान गलियाँ ♥️ #collabwithकोराकाग़ज़ ♥️ इस पोस्ट को हाईलाइट करना न भूलें :) ♥️ अपने मित्रों के साथ कोलाब करें। ♥️ कोलाब करने के ब
Dharminder Dhiman
मुझे तो उसकी, मीठी-मीठी बातों से ही लग रहा था, कि यह फरेबी है..! 📥 RKS Dare :- ◆RKSLN - 41 📇 #RKSLNcollabs आपका हार्दिक स्वागत करता है..😊🙏 💫RKS DARE 40 :- "फ़रेबी" अर्थात :- चालबाज / धोखेबाज आज के Dare
N S Yadav GoldMine
{Bolo Ji Radhey Radhey} अयोध्या की राजकुमारी जो बनी थी कोरिया की महारानी वैसे तो पूरी दुनिया में अयोध्या को भगवान राम के कारण पहचाना जाता है लेकिन कोरिया के लोगों का अयोध्या से जुड़ाव का एक अन्य कारण और भी है। कोरिया के पौराणिक दस्तावेजों के अनुसार अयोध्या की एक राजकुमारी, कोरिया की महारानी बनी थी। कोरिया के पौराणिक इतिहास में यह बात दर्ज है कि करीब दो हजार साल पहले अयोध्या की राजकुमारी सुरीरत्ना नी हु ह्वांग ओक, अयुता यानि अयोध्या से दक्षिण कोरिया के ग्योंगसांग प्रांत में स्थित किमहये शहर आ गई थी। मंदारिन भाषा में लिखे कोरिया के पौराणिक दस्तावेज ‘साम गुक युसा’ में उल्लिखित कथा के अनुसार अयोध्या की राजकुमारी के पिता के स्वप्न में स्वयं ईश्वर प्रकट हुए और उन्होंने राजकुमारी के पिता से कहा कि वह अपने बेटे और राजकुमारी को विवाह के लिए किमहये शहर भेजें, जहां सुरीरत्ना का विवाह राजा सुरो के साथ संपन्न होगा। 16 वर्ष की उम्र में राजकुमारी सुरीरत्ना का विवाह किमहये राजवंश के राजकुमार सुरो के साथ संपन्न हुआ। किमहये राजवंश के नाम पर ही वर्तमान कोरिया का नामकरण हुआ है। कोरिया के लोगों का मानना है कि सुरीरत्ना और राजा सुरो के वंशजों ने ही 7वीं शताब्दी में कोरिया के विभिन्न राजघरानों की स्थापना की थी। इनके वंशजों को कारक वंश का नाम दिया गया है जो कि कोरिया समेत विश्व के अलग-अलग देशों में उच्च पदों पर आसीन हैं। कोरिया के एक पूर्व राष्ट्रपति भी इसी वंश से संबंध रखते थे। यूं तो कोरिया के इतिहास में अनेक महारानियों का नाम दर्ज हैं, लेकिन सभी में से सुरीरत्ना को ही सबसे अधिक आदरणीय और पवित्र माना गया, जिसका कारण ये था कि उनकी जड़ें भगवान राम की नगरी अयोध्या से जुड़ी हुई थीं। कोरिया के पौराणिक दस्तावेज ‘साम कुक युसा’ में राजा सुरो और सुरीरत्ना के विवाह की कहानी भी दर्ज है, जिसके अनुसार प्राचीन कोरिया में कारक वंश को स्थापित करने वाले राजा सुरो की पत्नी रनी हौ (यानि सुरीरत्ना) मूल रूप से आयुत (अयोध्या) की राजकुमारी थी। सुरो से विवाह करने के लिए उनके पिता ने उन्हें समुद्र के रास्ते से दक्षिण कोरिया स्थित कारक राज्य भेजा था। आज की तारीख में कोरिया में कारक गोत्र के तकरीबन 60 लाख लोग स्वयं को राजा सुरो और अयोध्या की राजकुमारी का वंशज बताते हैं। सुरो और सुरीरत्ना की दास्तां पर यकीन करने वाले लोगों की आबादी दक्षिण कोरिया की कुल आबादी का दसवां भाग है। कोरिया के पूर्व राष्ट्रपति किम देई जुंग और पूर्व प्रधानमंत्री हियो जियोंग और जोंग पिल किम कारक वंश से ही संबंध रखते थे। कारक वंश के लोगों ने उस पत्थर को भी सहेज कर रखा है जिसके विषय में यह कहा जाता है कि अयोध्या की राजकुमारी सुरीरत्ना अपनी समुद्र यात्रा के दौरान नाव का संतुलन बनाए रखने के लिए उसे रखकर लाई थी। किमहये शहर में राजकुमारी हौ की प्रतिमा भी है। कोरिया में रहने वाले कारक वंश के लोगों का एक समूह हर साल फरवरी-मार्च के दौरान राजकुमारी सुरीरत्ना की मातृभूमि पर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करने अयोध्या आता है। हालांकि भारतीय प्राचीन दस्तावेजों में कहीं भी यह जिक्र नहीं मिलता कि सुरीरत्ना का विवाह कोरिया के राजा के साथ हुआ था हालांकि उत्तर प्रदेश के पर्यटन विभाग के एक ब्रोशर में कोरिया की रानी का जिक्र है। भारतीय दस्तावेजों में भी इस बात का भी कोई प्रमाण नहीं हैं कि राजकुमारी सुरीरत्ना का संबंध भगवान राम के वंश से था। संबंधित कथाओं के अनुसार सुरीरत्ना या हौ का निधन 57 वर्ष की उम्र में हुआ था . Rao Sahab N S Yadav. ©N S Yadav GoldMine #navratri {Bolo Ji Radhey Radhey} अयोध्या की राजकुमारी जो बनी थी कोरिया की महारानी वैसे तो पूरी दुनिया में अयोध्या को भगवान राम के कारण पहचा
Madhu Jain
हम दोनों ही जानते थे हमारा जुदा होना तय था Open collab one-or two line... Subject :-हम दोनों ही,....... को लेकर रचना करें.... सुन्दर शब्दों से पूर्ण कीजिये ,, सभी मित्रों से अनुरोध ह
Divyanshu Pathak
"बप्पा के बाद" भोज ने मेवाड़ में शान्ति बनाए रखी,महेंद्र की हत्या कर भीलों ने उनकी ज़मीन छीन ली।नाग केवल नागदा के आसपास अपना अधिकार बनाये रखा।शिलादित्य अधिक योग्य निकला उसने भीलों को हराकर अपनी भूमि बापस ली।अपराजित ने शिलादित्य का साथ दिया और गुहिलों का वर्चस्व बढाया।कालभोज के बारे में जानकारी नहीं ऐसा माना जाता है कि यशोवर्मन के सैन्य अभियानों में मदद की थी।खुम्मान को मुस्लिम आक्रमणकारियों को खदेड़ा किन्तु वे कौन थे ये विवादास्पद है।मत्तट से महायक तक का समय राष्ट्रकूटों,प्रतिहारों के साथ उलझने में गया और वे सामन्त बन कर रहे। 877 ई. से 926 ई. के बीच खुम्मान तृतीय ने गुहिल राजवंश को पुनः प्रतिष्ठित किया।भरतभट्ट ने इसे बनाये रखा।अल्लट ने देवपाल परमार को हराकर गुहिलो
Divyanshu Pathak
"बप्पा-रावल" ( क्रमशः-02 ) जब उस युवा लड़को को नागदा का सामन्त बना दिया गया तो वहाँ के जो पुराने सामन्त थे विद्रोह करने लगे उसी दौरान किसी विदेशी आक्रमण की सूचना मिली अन्य सामन्त इस अवसर का फ़ायदा उठाना चाहते थे नव सीखिए सामन्त को सेनापति बनाकर युद्ध में भेज दिया।मैदान में जाकर नए जोश के साथ सेनापति ने आक्रमणकारियों को खदेड़ दिया और विजय प्राप्त की साथ ही उन विरोधी सामन्तों को भी समझाया तब किसी ने उनको सम्बोधित किया भई- ये है सबका बाप और वही बाप आगे चलकर 'बप्पा' हो गया। ऐसा सुना गया है कि मोहम्मद-बिन-क़ासिम की फ़ौज लेकर यज़ीद ने सिंध प्रदेश को जीत लिया और अपने क्षेत्र को विस्तार देने के लिए उसने चित्तोड़ पर आक्र
Divyanshu Pathak
नाच-नाच पिव रसिक रिझाऊँ प्रेमी जनकूँ जाचूँगी ! प्रेम प्रीतिका बाँधि घुँघरू सूरत की कछनी काछूँगी ! लोक लाज कुल की मरजादा यामें एक न राखूँगी ! पिवके पलंगा जा पौडूंगी मीरा हरि रँग राचूँगी ! Good morning ji ☺☕☕☕💕🐒💕💕🌼🌼💐💐🍫🍫💕☕👨🌼💕👨🍉🍉🍉🍨🍨🍨🍵 : मीराबाई महाराणा कालभोज (वप्पा रावल) की वंश परम्परा में ४४वे महाराणा संग्राम सिंह (१५०९-१५२७ ई