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Sanvi Sharma
ladkiyon ki zindagi se khelne walo tu ladka hai tho kuch bhi Karo tu ladka hai tho kuch bhi Karo par Masoom bachiyon ki Jaan na lo par Masoom bachiyon ki Jaan na lo teri bhi ye beti hain teri bhi ye Behan hain mardangi woh nahi jo balaat kare mardangi tho woh hain jo har ladki main maa ko dekho teri bhi ek maa hain tere liye bhi ek Behan hain sab main dekho maa ko na karo ye maha paap maaf kare tujhe ye insaan par maaf na kare tujhe ye Bhagwan 😢 बालिका बालिका बालिका बचाओ पेड़ों को बचाने से पहले बालिका बचाओ
Parasram Arora
परफेक्ट वर होता ही नहीं और न परफेक्ट वधू होती है एक बार शादी हो जाए...... तो और कोई किसी क़े लिए नहीं बना है और मानलो कोई हमारे लिए बना भी हो तो इस धरती पर सात अरब लोगों मे उसे ढूंढ़ना कितना कठिन है क़ि ताउम्र उसे ढूँढ़ते रह जाएंगे. और ज़ब तक हम उसे ढूंढ लेंगे जीवन हमारे हाथ से निकल जाएगा और हो सकता है जिसे हमने अपने लिए परफेक्ट समझा है हो सकता है वो भी किसी परफेक्ट की तलाश मे हो और क्या करेँगे तब ज़ब हम उसकी कसौटी पर खरे नहीं उतरे? ©Parasram Arora परफेक्ट वर वधू.......
Anuj Ray
नव वर-वधू को विवाह के मंडप में, हजारों हजारों शुभाशीष एक ही दिन में, दे करके चले जाते हैं लोग, शायद इसीलिए खुशी खुशी विवाहित ज़िंदगी बिताते हैं लोग। ©Anuj Ray # नव वर-वधू को...
अंकिता चौहान
अंश बनी में भ्रूण बनी तब से ही, सबके दिल में नासूर बनी में | बेटी हैं कह कर जब मुझे गिराया, एक बेटी से तुमने यह पाप कराया | बेटा हुआ तो जश्न होगा, बेटी के लिए सब खत्म होगा। अपनी बेटी को सब मानते हैं अभिमान, फिर क्यों करते हो किसी और की बेटी का अपमान | पराई है.. पराई है.. यह कहकर उसे हो तुम जलाते, अपनी सोची होती तो आज नहीं तुम पछताते | करते हो बेटी को लज्जित, फिर खुद को हो बड़ा बतलाते। करते हो ढोंग Mother Day , Women Day , और Daughter Day का तीनो ही रूप मे नहीं हो नारी को अपनाते, फ़िर क्यो इन दिवस को हो तुम मनाते | !!!!!!! ©अंकिता चौहान #बालिका दिवस
Prashant Mishra
सद्गुण से परीपूर्ण कोई तालिका बने लक्ष्मी,सरस्वती बने और कालिका बने करबद्ध प्रार्थना है मेरे देश में प्रभू झाँसी के रानी जैसी हरेक बालिका बने --प्रशान्त मिश्रा बालिका दिवस
Pathik Adhana
मैं एक मासूम बच्ची थी, मेरी आयु भी कच्ची थी, क्यों जलाया मेरा बचपन, मैं ऐसे ही तो अच्छी थी। मैं तेरी बेटी सयानी थी, तेरी हर बात मानी थी, मुझे क्यों दी सज़ा तूने, मैंने करी क्या हानि थी। मेरा वो बेढंग शर्माना, तेरी हर बात पर हंसना, तुझे क्यों रास ना आया, कभी मुझको तू समझाना। मैं पूछूँगी हर एक कारण, मुझे करना है निवारण, मुझे लड़ना होगा जग से, अभी ज़िंदा हैं कई रावण। बालिका वधु!!!
अज़नबी किताब
नाटक.. रंगमंच... कलाकार... कला... दर्शक.. कुछ ऐसा हुआ, में रंगमंच पे खड़ी थी, और मेरी कला मेरा हाथ थामे | दर्शक मेरी कला से मुझे पहचानते थे.. क्या खूब कला थी, खुदा की देख हुआ करती थी | एक बार बोली बात, में जमी को ख़त्म हो ने पर भी निभाती थी, कला थी.. वचन निभाने की, नाटक बन गयी.. रंगमंच पे उस खुदा के, में आज एक कटपुतली बन गयी... वचन निभाती नहीं, ऐसा सुना है मेने, दर्शकों से | क्या कहु, कला खो गयी, पर ये कला उनके लिए कायम है, जो सही में आज भी वचन को समझते है | कला खुदा की देन होती है, खुदा भी ख़ुश होते होंगे मेरे वचन ना निभाने से.. -अज़नबी किताब नाटक..
Arora PR
स्वप्नलोको के प्रलोबन मुझे कभी सममोहित नहीं कर सकते क्योकि मैं हर स्वप्न कोबन्द आँखों का नाटक ही समझता हूँ ©Arora PR नाटक