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Sangeeta Kalbhor
बात नही की.. एक अरसा गुजर चुका है मैंने अपने आप से मुलाकात नही की की है हजारों बातें औरों से मैंने अपनेआप से बात नही की कुछ टूटता है आवाज भी होती है मेरे अंदर के मैं से आगाज भी आती है न जाने क्यूँ पर मैंने अपने ही आप से आवाज नही दी की है हजारों बातें औरों से मैंने अपनेआप से बात नही की ये मेरा वो मेरा घर मेरा द्वार मेरा ससुराल मेरा मायका मेरा रसोई घर का जायका मेरा सभी को अपनाया मैंने अपनेआप को अपनाने की हिंमत नही की की है हजारों बातें औरों से मैंने अपनेआप से बात नही की..... मी माझी..... ©Sangeeta Kalbhor #oddone बात नही की.. एक अरसा गुजर चुका है मैंने अपने आप से मुलाकात नही की की है हजारों बातें औरों से मैंने अपनेआप से बात नही की कुछ टूटता
दीपा साहू "प्रकृति"
"रसोई" ये रसोई का दरवाजा , दिल नहीं करता अंदर जाने को। ये बर्तन ,ये दीवारें,पानी से भरे सुराहें। रोज की इनसे लड़ाई ,आँखें छलछलाई। कभी दूध उबलता आंच बुझती। चाय की एक कप न एक चुस्की। आवाज़ इधर से आती है, आवाज़ उधर से आती है। मेरा टॉवल,मेरी चाय,मेरा नास्ता, मेरा टिफिन,दी बना दो मेरा पास्ता। दो हाथ ही होते हैं,उन्हें कहां रोके हैं। तन थक गया मन थक गया पर खुद को कहाँ टोके हैं। एक पल इनसे चुराने को, खुद को खुद से मिलाने को, एक दिन का काम छुड़ाने को, अस्त व्यस्त हो जाती है घर की धरती भी रो जाती है। एक लम्हा जो नज़र न आए, बस पुकार ही पुकार हो जाती है, खुद के लिए कोई वक़्त ही नहीं, रसोई की ही बस हो जाती है। खुद के लिए क्या जी पाती है।। ©दीपा साहू "प्रकृति" #Prakriti_ #deepliner #poem #Poetry #story #followers #Nozoto "रसोई" रसोई का दरवाजा , दिल नहीं करता अंदर जाने को। ये बर्तन ,ये दीवारें,पानी
Virendra Singh Diwakar
यह कोई कविता नहीं उसकी जिंदगी का किस्सा है जो दर्द बताने वाला हूं उसकी जिंदगी का हिस्सा है चंद खून की छींटे लज्जित कर देती है उसको कोई क्यों नहीं सोचता कितना दर्द होता होगा उसको नारी होना आसान नहीं समझाओ उन नसमझो को रूह कांप जाती जब चोट लगती हैं मर्दों को मंदिर और रसोई में भी जाने को रोक लगाते हैं कुछ लोग पास में बैठने से भी मुँह बिगाड़ लेते है न जाने क्यों लोग इसे बीमारी समझते हैं *उसे दर्द से ही तो घरों में चिराग जलते है* यह कोई कविता नहीं उसकी जिंदगी का किस्सा है जो दर्द बताने वाला हूं उसकी जिंदगी का हिस्सा है VS.Diwakar ©Virendra Singh Diwakar #Women #womenempowerment #Women_Special यह कोई कविता नहीं उसकी जिंदगी का किस्सा है जो दर्द बताने वाला हूं उसकी जिंदगी का हिस्सा है चंद खून
Sangeeta Kalbhor
जहाँ जहाँ से मैं गुजरु मैं एक पुकार सुनती हूँ कोई है यहाँ मुझे समझनेवाला सुनकर मैं सहमीसी जाती हूँ रसोई मेरी ,बर्तन मेरे घर के सारे काम मेरे मैं बस किये और किये ही जाती हूँ कोई है यहाँ मुझे समझनेवाला सुनकर मैं सहमीसी जाती हूँ पति का अपना रौब है बच्चों के अपने शौक है मैं सबको खुश करके थक जाती हूँ कोई है यहाँ मुझे समझनेवाला सुनकर मैं सहमीसी जाती हूँ सबके लिए हूँ मैं काम के लिए हूँ मैं सबकी होकर भी अकेला खुदको पाती हूँ कोई है यहाँ मुझे समझनेवाला सुनकर मैं सहमीसी जाती हूँ..... मी माझी..... ©Sangeeta Kalbhor #outofsight जहाँ जहाँ से मैं गुजरु मैं एक पुकार सुनती हूँ कोई है यहाँ मुझे समझनेवाला सुनकर मैं सहमीसी जाती हूँ रसोई मेरी ,बर्तन मेरे घर के
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
दोहा जब भी तुम आहार लो , ले लो राधा नाम । रोम-रोम फिर धन्य हो , पाकर राधेश्याम ।। कभी रसोई में नहीं ,करना गलत विचार । भोजन दूषित बन पके , उपजे हृदय विकार ।। प्रभु का चिंतन जो करे , सुखी रखे परिवार । आपस में सदभाव हो , सदा बढ़े मनुहार ।। प्रभु चिंतन में व्याधि जो , बनते सदा कपूत । त्याग उसे आगे बढ़े , वह है रावण दूत ।। प्रभु की महिमा देखिए , हर जीव विद्यमान् । मानव की मति है मरी , चखता उसे जुबान ।। पारण करना छोडिए , विषमय मान पदार्थ । उससे बस उत्पन्न हो , मन में अनुचित अर्थ ।। २९/०२/२०२४ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR दोहा जब भी तुम आहार लो , ले लो राधा नाम । रोम-रोम फिर धन्य हो , पाकर राधेश्याम ।। कभी रसोई में नहीं ,करना गलत विचार । भोजन दूषित बन पके ,
Ravendra
anand saroj
Prakash writer05
ए अम्मा! साँझ को टिरेन पकड़नी है! इस्टेसन दूर है, तो अभई निकल रहे हैं! बलउ के टेक्टर से चले जाएंगे! थोड़ी पहले निकल रहे हैं, जानते हैं न, की जब हम झोला टांगते है तुम्हरे सामने तो लगती हो रोने, फिर टिरेन में यात्रा और मुश्किल लगने लगती है! आलू के सब्ज़ी और 7 रोटी बना के बाँध लिए हैं, थोड़ा चना और गुड भी रखे हैं! बाहर नलके से पानी भर लेंगे! डाक्टर से दवाई ला दिए हैं, रसोई वाले ताखा पर है, उठा लेना नहीं तो सिता जायेगी! और समय समय से खाना भी है! गोली सफ़ेद वाली, खाली पेट सुबह! बाकी की संतरी रंग और चौकोर वाली सुभे साम! तुम्हारा कपड़ा धो के पसार दिए हैं! शाम को जागना तो उठा लेना! बाबूजी सुबह किराया भाड़ा दे दिए थे, तो उसका टेंसन न लेना! उनको कह दिए थे की निकल जाएंगे दुपहर में! बाकी खाता में पइसा पड़ा है, काम चल जाएगा इस महीने! मोटकी रजाई घाम दिखा के बड़के बक्सा में, और तुम्हारे सारे सुइटर बाबूजी के सुइटर भी उसमें ही रखे हैं! शाल दुशाला सब साफ़ है! निकाल के ओढ़ पहिन लेना! तुम्हारी जूती मोची से सिलवाय लाये थे! वहीँ आँगन में पन्नी में लपेट के रखे हैं! खाना बनाना हो तभी उतारना! नहीं तो पहनी रखना! गैस भरा दिये 3 महिना तक चली, 10 किलो शीशम की लकड़ी चीर ऊपर कमरे में रख दिए हैं! भगेलू को 5 10 रूपया दे के उतरवा लेना! तुम्हारे फोन में 239 रुपया का रिचार्ज करवा दिए हैं, जब मन करे फोन घुमा लेना! और रोना मत, खाना पीना समय से खाना! जल्दी नौकरी से लौटेंगे! तुम्हारे जागने तक हम टिरेन में बइठ गए रहेंगे! तो ख़त पढ़ के एक आँसू मत रोना! पैर छुए हैं, आसिरबाद भेज देना! ~ तुम्हारे बेटे//लल्ला/करेजा का टुकड़ा! ©Prakash writer05 #ए अम्मा! साँझ को टिरेन पकड़नी है! इस्टेसन दूर है, तो अभई निकल रहे हैं! बलउ के टेक्टर से चले जाएंगे! थोड़ी पहले निकल रहे हैं, जानते हैं न, की