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Nitin Meena Sharma

#LoveCouple तुम्हारे ख़त को चींटियों ने घेर रखा है...!! होंठो से लगाकर कलम, ख़त न लिखा करो..!! #2YearsOfNojoto

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#2YearsOfNojoto तुम्हारे ख़त को चींटियों ने घेर रखा है...!!
Nitin Meena 
होंठो से लगाकर कलम, ख़त न लिखा करो..!! #lovecouple 
तुम्हारे ख़त को चींटियों ने घेर रखा है...!!
होंठो से लगाकर कलम, ख़त न लिखा करो..!!

Pawan Kumar Sharma

तुम्हारे ख़त को चींटियों ने घेर रखा है 😊 क़लम होंठों से लगाकर , ख़त न लिखा करो..🌹 ❤❤❤❤❤❤ #शायरी #nojotophoto

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 तुम्हारे ख़त को चींटियों ने घेर रखा है 😊

क़लम होंठों से लगाकर , ख़त न लिखा करो..🌹

❤❤❤❤❤❤

रजनीश "स्वच्छंद"

बन चींटियों का झुंड चले हम।।।।।।।।।#thought #shayri #Fun #Love #poem #Comedy #Meme #Nojoto #nojotohumour #NojotoMeme #NojotoFun #kalakaksh # #Poetry #Life #Motivation #SAD #kavishala #nojotohindi #TST #znmd

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भुला अक्ल की इबारत, बन महज़ चींटियों का झुंड चले हम।।
देख सच, बन कबूतर, देख बिली, अपनी आंखें मूंद चले हम।।।

रजनीश "स्वच्छन्द" बन चींटियों का झुंड चले हम।।।।।।।।।#thought #shayri #fun #love #poem #comedy #meme #nojoto #nojotohumour #nojotomeme #nojotofun #kalakaksh #

कमबख्त_कलम

चींटियों की तुलना पानी की किल्लत और जरूरत के लिए की गई है। कि किसी किसी गाँव में लोग प्यासे रहते हैं पूरे पूरे दिन। 60 किलोमीटर दूर से पानी #Water #yourquote #yqbaba #yqdidi #Savewater #WorldWaterDay #Sambhav

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शहरों में घर के आगे की सड़कें धोई जाती है
किसी गाँव में चींटियाँ भी प्यासी मर जाती हैं।
🙏 चींटियों की तुलना पानी की किल्लत और जरूरत के लिए की गई है। कि किसी किसी गाँव में लोग प्यासे रहते हैं पूरे पूरे दिन। 60 किलोमीटर दूर से पानी

Hedayat Mustaqueem

अगर करना हो फतह मैदाने जंग को, तो हिम्मत से लड़ना होगा, क्योंकी कुछ बचेंगे तो कुछ मरेंगे ज़रूर। क्या हुआ जो हम कमजोर हैं बमुकाब्ला दूसरों

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(THIS POEM IS WRITTEN BY ME)
You can see in below. #NojotoQuote अगर करना हो फतह मैदाने जंग को, तो हिम्मत से लड़ना होगा,
क्योंकी कुछ बचेंगे तो कुछ मरेंगे ज़रूर।


क्या हुआ जो हम कमजोर हैं बमुकाब्ला दूसरों

Deep Kush

लौ में धधक आज भी है कुछ कर गुजरने की चाह आज भी है असफल हो जाऊ चाहे हज़ार बार पर रुकुंगा नही थक हार कर ये हुनर मैंने चींटियों से सीखी है मुझे #yqbaba #yqdidi #yqtales #yqdada #yqhindi

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लौ में धधक आज भी है 
कुछ कर गुजरने की चाह आज भी है
असफल हो जाऊ चाहे हज़ार बार
पर रुकुंगा नहीं थक हार कर
ये हुनर मैंने चींटियों से सीखी है
मुझे चलना है बस चलना है 
चलते चलते गिर भी गया तो रेंगना है 
मुझे रुंकना नही है बस रुंकना नही है
पा लेना है एक दिन मंजिल को 
खुद को इस हद तक तपाना है
अगर नही भी हो मंजिल किस्मत में 
तो उस ऊपर वाले से लड़ उसे छीन लाना है
मुझे खुद को इस काबिल बनाना है
मुझे चलना है बस चलते जाना है.......






 लौ में धधक आज भी है 
कुछ कर गुजरने की चाह आज भी है
असफल हो जाऊ चाहे हज़ार बार
पर रुकुंगा नही थक हार कर
ये हुनर मैंने चींटियों से सीखी है
मुझे

g

वरवरा राव की एक कविता---- ---------------------------- मैंने बम नहीं बाँटा था ना ही विचार। तुमने ही रौंदा था #azaadi

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Divyanshu Pathak

:💕🐒 इस देश में प्राणी मात्र के प्रति उदारता का महत्व है। गाय को चारा, पक्षियों को दाना एवं चींटियों को ‘कीड़ी नगरा’ जैसी परम्पराएं भले ही धर

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आपके बिन जिया न जाये तो दिल क्या करे.....💕🐒 :💕🐒
इस देश में प्राणी मात्र के प्रति उदारता का महत्व है। गाय को चारा, पक्षियों को दाना एवं चींटियों को ‘कीड़ी नगरा’ जैसी परम्पराएं भले ही धर

Mahfuz nisar

#veins मैं चींटियों का ये सामंजस्य आज फिर देख कर यही सोच रहा था। अफवाह हो या सच्चाई, ये सिर्फ़ इंसान ही नहीं, छोटी चीँटीयों के बीच भी फैलती

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मैं चींटियों का ये सामंजस्य आज फिर देख कर यही सोच रहा था।
अफवाह हो या सच्चाई,
ये सिर्फ़ इंसान ही नहीं,
छोटी चीँटीयों के बीच भी फैलती है,
जिसमें कभी तो कुछ दाने की बात होती है,
तो कभी कोई इन सबकी मृत्यु का ज़िम्मा लिए आगे कहीं इंतज़ार में होता है,
कतार में चलती चीटियों को मैंने कई दफा,
एक-दूसरे से बात करते हुए देखा है,
जब भी इनकी कतार को आप तोड़ते हैं,
या कतार के कुछ साथियों को मसल देते हैं,
वो अपना रास्ता बदल लेती हैं,
किंतु इससे पूर्व,
जो भी मसले गए चींटि को सबसे पहले देखती है,
वो अपना कर्तव्य ज़रूर निभाती है,
दूसरों को आगाह ज़रूर करती है।

✍mahfuz nisar © #veins मैं चींटियों का ये सामंजस्य आज फिर देख कर यही सोच रहा था।
अफवाह हो या सच्चाई,
ये सिर्फ़ इंसान ही नहीं,
छोटी चीँटीयों के बीच भी फैलती

रजनीश "स्वच्छंद"

मनःस्थिति।। अस्त्रसज्जित मैं खड़ा था, खल रही ललकार थी। मन के दानवों से युद्ध मे, मुझे दैव की दरकार थी। दुर्ग रक्षित संस्कृति का, भरभरा कर ढ #Poetry #Quotes #kavita #hindikavita #hindipoetry

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मनःस्थिति।।

अस्त्रसज्जित मैं खड़ा था, खल रही ललकार थी।
मन के दानवों से युद्ध मे, मुझे दैव की दरकार थी।

दुर्ग रक्षित संस्कृति का, भरभरा कर ढह रहा था,
उसमे पनपता एक पल्लव हाथ जोड़े कह रहा था।
वीर की थी पृष्ठभूमि जो, कब यहां साकार होगी,
कब तलक ये आत्मा, निकृष्ट और लाचार होगी।
विनय उस निर्बल की भी, पांव तले कुचली गई,
थी कहानी चल रही, जीवन मृत्यु की टकरार थी।
अस्त्रसज्जित मैं खड़ा था, खल रही ललकार थी।
मन के दानवों से युद्ध मे, मुझे दैव की दरकार थी।

अपने चरम पर दम्भ भी ले खड्ग था चल रहा,
मुरझा गया था बीज भी जो गर्भ में था पल रहा।
किसके हृदय को भेदता गजपाद का कम्पन रहा,
भेदहींन ज्ञान था, कौन विषधर कौन चन्दन रहा।
इस अंतहीन विषाद को छद्म सुख में मैं ढो रहा,
चींटियों का झुंड था बस, अपनी लम्बी कतार थी।
अस्त्रसज्जित मैं खड़ा था, खल रही ललकार थी।
मन के दानवों से युद्ध मे, मुझे दैव की दरकार थी।

बदला हुआ था रक्तवर्ण, जैसे हुआ शिथिल श्वेत,
जिसको समेटे जा रहा, बन्द मुट्ठी में जैसे हो रेत।
बालमन की संवेदना, उठ आज फिर से जगा रहा,
नवसृजित कदमों से कम्पित पग मैं आगे बढ़ा रहा।
फिर गगन छूने को पांव पंजे हाथ मैं विस्तारता हूँ,
फिर से सुननी है मुझे, जो कल मेरी जयकार थी।
अस्त्रसज्जित मैं खड़ा था, खल रही ललकार थी।
मन के दानवों से युद्ध मे, मुझे दैव की दरकार थी।

©रजनीश "स्वछंद" मनःस्थिति।।

अस्त्रसज्जित मैं खड़ा था, खल रही ललकार थी।
मन के दानवों से युद्ध मे, मुझे दैव की दरकार थी।

दुर्ग रक्षित संस्कृति का, भरभरा कर ढ
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