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ugly Boy
PRIYANKA GUPTA(gudiya)
UNIVERSAL AMROHA
पूस की रात भी क्या होती है बड़ी अजब रात होती है पूस के महीने की एकदम शांत और कड़ाके वाली ......✍️ आशीष कुमार ©KNOWLEDGEHUB AMROHA कड़क सर्दी वाली रात पूस का महीना##nojoto#poetry#viral
Manak desai
keshav
AJAY NAYAK
सज गए हैं एक एक करके सब घर द्वार लग गए हैं एक एक करके सब तोरण हार बस अब इन्तजार है संध्याकाल का जब लगनी है एक एक दीपों की बहार । बिखेरने को तैयार हैं रंगोलियां भी अपनी छटा अंदर गुंजियों ने भी महका दिया है घर पूरा। दर्जी के यहां आ गए हैं सबके नए नए कपड़े बिसाता से भी आ गया है सब पूजा सामान अब सब नए नए कपड़े पहन ऐसे चमक उठे जैसे कोई हारी बाजी लगी हो सूरज चंद्रमा से। बाजारों में भी है उमड़ पड़ी इतनी भीड़ जैसे, बस आज ही है सब कुछ खरीदना। छत पर लगी झील मील झील मील करके छोटी बड़ी रंगबिरंगी ब्लबे भी हैं चमक उठी दे रहीं हैं अंधेरे को भी एक कड़क संदेश ए तम तेरे लिए तो हम ही हैं बहुत काफी । फड़क उठा है मंदिरों का पताका बज उठा है हर मंदिर का घंटा देखो छोटे, बड़े फाटकों के शोर से गुंजायमान हो रहा है पूरा भारत लंका विजय प्राप्त कर आ रहे हैं हमारे सीताराम हर घर घर। –अjay नायक ‘वशिष्ठ’ ©AJAY NAYAK #diwalifestival सज गए हैं एक एक करके सब घर द्वार लग गए हैं एक एक करके सब तोरण हार बस अब इन्तजार है संध्याकाल का जब लगनी है एक एक दीपों की
Nisheeth pandey
शीर्षक - बहती हवाँ और मैं 〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️ दृश्य यूँ था काली घटा से आसमान ढका था बहती हवाँ शीतल मन ले कर शीतलता से ,भाव विभोर कर रहीं थी छत की ऊंची दीवार पे चढ़, बहती हवाँ संग रोमांचित मन हो रहा था मानो बहती हवाँ में विलुप्त था, तृप्त मन हो रहा था बहती हवाँ आगोश के भवँर में लपेट रहीं थी मन मुग्ध तन चंचल हल्की फुल्की बारिश बूँदों की सिहरन मेरे मन ने पुझा ऐ हवाँ तुम रोज यूँ ही मिलते क्यों नहीं बहती हवाँ की तेज बहाव करीब आ कर बड़े अदब से कहा- मैं रोज तुम्हारे करीब से गुजरती ,ये और बात तुम मुलाक़ात नहीं करते ?” हवाँ ने कहा - जब तुम आसमानों में बादलों की चित्रकारी देखते वहां दृष्टिकोण में मैं ही हूँ। भीनी माटी की सुगन्ध तुम तक पहुँचती वह मैं ही हूँ। खिड़की पर जब बारिश देखते ,तुम तक बारिश की बूँदों को पहुँचाती मैं ही हूँ। सुगन्ध से गुलाब के फूलों से परिचित मैं ही करवाती हूँ। अदरक वाली कड़क मीठी चाय से महक धूएँ बन तुम तक आती मैं ही हूँ । तुम्हारे पसंदीदा गानों की धून बन कर मैं ही आती हूँ । शर्ट के टूटे हुए बटन में मैं ही उछलती हूँ । तुम्हें खिंच पहाड़ों में मैं ही लाती हूँ। बहते झरनों की आवाज तुम तक मैं ही लाती हूँ। कभी निशीथ पहर में तुम्हें चाँद तक मैं लाती हूँ नदी किनारों में बैठे तुम तुम्हारे पाँव को पानी से मैं ही सहलाती हूँ। मौसम की बहारों का चित्त मैं ही लाती हूँ अभी तुम्हें बारिश की पानी के गीली गीली एहसास मैं ही दिलाऊँगी लेकिन तुम्हें मुझे एहसास करने की फुर्सत कहाँ मिल पाती है 🥰 @निशीथ ©Nisheeth pandey #ChaltiHawaa दृश्य यूँ था काली घटा से आसमान ढका था बहती हवाँ शीतल मन ले कर शीतलता से ,भाव विभोर कर रहीं थी छत की ऊंची दीवार पे चढ़, बहती ह
AJAY NAYAK
सज गए हैं एक एक करके सब घर द्वार लग गए हैं एक एक करके सब तोरण हार बस अब इन्तजार है संध्याकाल का जब लगनी है एक एक दीपों की बहार । बिखेरने को तैयार हैं रंगोलियां भी अपनी छटा अंदर गुंजियों ने भी महका दिया है घर पूरा। दर्जी के यहां आ गए हैं सबके नए नए कपड़े बिसाता से भी आ गया है सब पूजा सामान अब सब नए नए कपड़े पहन ऐसे चमक उठे जैसे कोई हारी बाजी लगी हो सूरज चंद्रमा से। बाजारों में भी है उमड़ पड़ी इतनी भीड़ जैसे, बस आज ही है सब कुछ खरीदना। छत पर लगी झील मील झील मील करके छोटी बड़ी रंगबिरंगी ब्लबे भी हैं चमक उठी दे रहीं हैं अंधेरे को भी एक कड़क संदेश ए तम तेरे लिए तो हम ही हैं बहुत काफी । फड़क उठा है मंदिरों का पताका बज उठा है हर मंदिर का घंटा देखो छोटे, बड़े फाटकों के शोर से गुंजायमान हो रहा है पूरा भारत लंका विजय प्राप्त कर आ रहे हैं हमारे सीताराम हर घर घर। –अjay नायक ‘वशिष्ठ’ ©AJAY NAYAK #दीपावली सज गए हैं एक एक करके सब घर द्वार लग गए हैं एक एक करके सब तोरण हार बस अब इन्तजार है संध्याकाल का जब लगनी है एक एक दीपों की बहार ।