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PrAshant Kumar
निकाल लाया हूँ एक पिंजरे से इक परिंदा, अब इस परिंदे के दिल से पिंजरा निकालना है ©PrAshant Kumar निकाल लाया हूँ एक पिंजरे से इक परिंदा अब इस परिंदे के दिल से पिंजरा निकालना है
jayant biswas
chandan
कभी अपने लिए कभी मेरे लिए आपको वक्त निकालना है जो भी वक्त हो मुझे वक्त से कोई शिकायत नहीं। ©chandan #mountain कभी अपने लिए कभी मेरे लिए वक्त निकालना है जो भी वक्त हो मुझे वक्त से कोई शिकायत नहीं।
Raah-e-fakira
RÌCHA VAISH
"शहीदों ने अंग्रेज़ों से जंग लड़ के देश को गुलामी से निकाला, हमें भ्रष्टाचार के खिलाफ जंग लड़ के देश को गरीबी से निकालना है। - स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं" ©RÌCHA VAISH "शहीदों ने अंग्रेज़ों से जंग लड़ के देश को गुलामी से निकाला, हमें भ्रष्टाचार के खिलाफ जंग लड़ के देश को गरीबी से निकालना है। - स्वतंत्रता दिवस
DrLal Thadani
छुपे हुए ज़ज्बा़त निकालना है मेरी शायरी में मेरे अल्फ़ाज़ गाना है डॉ लाल थदानी #अल्फ़ाज़_दिलसे सुप्रभात। मंज़िल तो एक बहाना है, अस्ल में तो हमें ख़ुद को पाना है... #ख़ुदकोपानाहै #collab #yqdidi #YourQuoteAndMine Collaborating with YourQu
Bawari
दिल और दिमाग की जंग से निकालना है मुझे और आज फिर खुद से मिलना है मुझे ना उड़ना है मुझे ना बहना है मुझे और अब नहीं कुछ कहना है मुझे अपने खुले आसमां में सुकून से रहना है मुझे आज फिर खुद से ही मिलना है मुझे ना प्यार ,ना मोहब्बत ,ना चाहत चाहिए दोस्ती में ही खुश हूं में क्योंकि मुझे बस थोड़ी सी राहत चाहिए ज़िन्दगी कुछ और बची है इसमें suffer से safar तक जाना है मुझे आज फिर खुद से ही मिलना है मुझे। उम्मीद की जंजीरों ने जकड़ रखा है पर ख्वाइशें उड़ना चाहती है क्या सही ,क्या ग़लत इन सब से निकालना चाहती है कुछ अधूरा सा छूटा है जो पीछे बस उसी को पूरा करना है मुझे बस आज खुद से ही मिलना है मुझे ना जाने कौन सी शाम मौत का पैग़ाम ले आकर आ जाए उससे पहले उन अधूरी ख्वाइशों को पूरा करना है मुझे बस आज खु़द से ही मिलना है मुझे। दिल और दिमाग की इस जंग से निकालना है मुझे आज फिर खुद से ही मिलना है मुझे।। दिल और दिमाग की जंग से निकालना है मुझे और आज फिर खुद से मिलना है मुझे ना उड़ना है मुझे ना बहना है मुझे और अब नहीं कुछ कहना है मुझे अपने खुल
Public Tv
सरासर झूठ है ये, सरासर झूठ है, तुम बेखबर थे, तुम्हें सबकुछ पता था, मणिपुर जल रहा था और तुम खामोश थे, चुप थे! ये खामोशी तुम्हारी सियासत का हुनर पहचानती है! ये सीना पीट कर वहशी–दरिंदो की तरह से खून पीना जानती है! इसे मालूम है, कब आग लगवानी है बस्ती में! इसे मालूम है, वहशी–दरिंदों को कहां तक छूट देनी है! इसे मालूम है, कब तक बरहना (नग्गी) औरतो को देखकर खामोश रहना है! इसे मालूम है, कब आँख से आंसू के धारों को निकालना है...... ©Public Tv #galiyaan सरासर झूठ है ये, सरासर झूठ है, तुम बेखबर थे, तुम्हें सबकुछ पता था, मणिपुर जल रहा था और तुम खामोश थे, चुप थे! ये खामोशी तुम्हारी