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manoj kumar jha"Manu"
सत्व गुण जिस समय शरीर में तथा मन में और इंद्रियों में चेतनता और विवेक शक्ति उत्पन्न होती है, उस समय ऐसा जानना चाहिए कि सत्व गुण बढ़ा है।- श्रीमद्भगवद्गीता भगवान उवाच अ०१४/११ #गीता_ज्ञान सत्व गुण सबसे उत्तम है।
Divyanshu Pathak
सुनो... मुक्ति का मार्ग तो संग्रह के विपरीत छोड़ना सिखाता है। आप जब किसी को पकड़ते हो तो स्वयं भी तो उससे बंधते हो। उससे जुड़ी क्रियाएं-प्रतिक्रियाएं मन पर छायी रहती हैं। मन को शांत नहीं होने देती। आगे से आगे लोभ में प्रवृत्त करती है। तृष्णा का रूप लेती हैं। क्रोध एवं आक्रामकता बढ़ती है। 💕😊💕🙏🌷🌷🙏 : विद्या भाव उदारता देता है। अविद्या का प्रभाव संग्रह या परिग्रह की ओर आकर्षित करता है। तृष्णा का कारक बनता है। तम का साम्राज्य है।
सुरेश सारस्वत
मैं हर रोज़ कोई नई कहानी खोजता हूँ अपने शहर अजनबी के दर्द में अपनापन बिखरा-बिखरा मिलता है चारों तरफ कोना-कोना दर्द को बयान करता हुआ अंदर से रोता हुआ पर बाहर एकदम खामोश ये मेरे शहर के खुदगर्ज़ खुदा के करीबी दोस्त मेरे अपनों से बिलकुल ज़ुदा, मेरे हम दर्द अपने दर्द से ज्यादा परवाह करते हैं अपना दर्द भूल कर दिखाते हैं मुस्कान की रोशनी नई राह भूल कर रिसते जख्म दिखाते हैं जज़्बा बनते हुए मैं .... शायद यही है सत्व दर्शन ©सुरेश सारस्वत #Flower यही है सत्व दर्शन
vk motivation
गुण गुणवान में ही गुण होते है वे निर्गुण के पास जाकर दोष बन जाते है जिस प्रकार नदियों का मीठा जल समुद्र में मिलने के बाद पीने के अयोग्य हो जाता है। ©viraj #गुण
Amannn
दहेज़ लेना भी कोई आसान बात नहीं हैं, इसके लिए इंसान के अंदर निर्लज्जता, भिकारी-पन, लालची जैसे गुणों का होना आवश्यक होता हैं... भाई इतने गुण तो मुझमें नहीं है..😅 #गुण
vk motivation
अभिवादन करने वाले व नित्य बड़े बुजुर्गो की सेवा करने वाले मनुष्य के चार गुण वृद्धि को प्राप्त होते है_आयु, विद्या,यश और बल। ©viraj #गुण
देव बाबू ,की कलम से /-/emat ,s
श्रेष्ठ कुल मे जन्म लेने से कोई श्रेष्ठ नहीं होता साहेब_____ श्रेष्ठता तो गुणों से निर्मित होती है जैसे कि - दूध , दही , छाछ , घी , मक्खन सब एक ही कुल के होते हुए भी अलग अलग मूल्य पर बिकते हैं गुण
Dr. Sunil Haridas
प्रत्येक माणसामध्ये एक तरी गुण चांगला असतो. परंतू नम्रता,आदर,स्नेह,विनम्रता हे जे गुण आहेत ते दैवी गुणांचे मुळ आहेत यामुळे ताणतणाव तर कमी होतोच आणि -हदयामधील जो परमेश्वर आहे त्याचा सन्मान पण होतो ©Dr. Sunil Haridas गुण
Subhash_Rajasthani
गुण गुणों की प्रकृति तीन भागों में बंटी हुई हैं- 1. सत्तोगुण 2. रजोगुण एवं 3. तमोगुण किए गए कार्य की प्रकृति देखकर यह अंदाजा लगाना बिल्कुल आसान हो जाता है कि हमारा कार्य कौनसी श्रेणी में रखा जा सकता है। यदि किए गए कार्य में ईश्वरीय भाव छुपा है तो वह सतोगुण, मानवीय भाव छुपा है तो वह रजोगुण एवं दानवीय भाव छुपा है तो वह तमोगुण कहलाता है। अब यह हम पर निर्भर करता है कि हम कौनसा गुण धारण करें। जन्म से लेकर मृत्यु तक इन गुणों का स्वरूप हमारे जीवन में हर क्षण - हर घड़ी विद्यमान रहता है। ©Subhash Rajasthani #गुण