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Stories related to मनहरण घनाक्षरी छंद विधान

Bharat Bhushan pathak

poetry hindi poetry hindi poetry on life poetry in hindi इस छंद में विशेष :-5वीं,8वीं 17वीं व 20वीं मात्रा लघु।

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दिग्पाल (या मृदुगति) छंद 
मापनी- 221 2122 221 2122 
लगावली- गागाल गालगागा गागाल गालगागा 
छंदाधारित फिल्मी गाने- 
1) छोडो न/ मेरा’ आँचल/, सब लोग/ क्या कहेंगे 
2) सारे ज/हाँ से’ अच्छा/ हिन्दोस/तां हमारा 


मानो अभी यहाँ जो बातें तुम्हें बताऊं।
संस्कार इस जगत में पूजित हुआ सुनाऊं।।
पशुवत हुआ मनुज जो संस्कारहीन होता।
सोचें भला जगत जो वह प्रेमनीर सोता।।

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इस छंद में विशेष
:-5वीं,8वीं 17वीं व 20वीं मात्रा लघु।

Bharat Bhushan pathak

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Unsplash नाथ अनाथ सनाथहि हो जब माता पिता अरु संगन भ्राता।
क्लेश नहीं जब द्वेष नहीं तब दृश्य अतीव मनोरम छाता।।

©Bharat Bhushan pathak #छंद #छंदज्ञान #प्रयत्न#प्रयत्न_करते_रहो  hindi poetry on life poetry hindi poetry poetry lovers#मत्तगयंदसवैयाछंदप्रयास

N S Yadav GoldMine

#library {Bolo Ji Radhey Radhey} किसी को रुलाकर, कोई भी ज्यादा दिन हंस नही पाया है, विधि का अटल विधान है, जो कोई समझ नही पाया है। सब कुछ का

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Unsplash {Bolo Ji Radhey Radhey}
किसी को रुलाकर, कोई भी
ज्यादा दिन हंस नही पाया है,
विधि का अटल विधान है, जो
कोई समझ नही पाया है।
सब कुछ का प्रकति हिसाब
रखती हैं, और समय उसका
गिन-2 कर हिसाब लेता है।
जय श्री राधेकृष्ण जी।।
N S Yadav GoldMine.

©N S Yadav GoldMine #library {Bolo Ji Radhey Radhey}
किसी को रुलाकर, कोई भी
ज्यादा दिन हंस नही पाया है,
विधि का अटल विधान है, जो
कोई समझ नही पाया है।
सब कुछ का

Bharat Bhushan pathak

#मण्डूक_दोहे#छंद#वृक्ष#पेड़#नोजोटो_हिन्दी hindi poetry on life love poetry in hindi sad urdu poetry poetry deep poetry in urdu मण्डूक दोहे

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मण्डूक दोहे
पृथ्वी धारे तब हमें,काटें जब ना पेड़।
जान लीजिए सूत्र ये,प्राणों के यह मेंड़।।१

माने मेरी बात ये,उपयोगी उपहार।
देते खाना अरु दवा,रोपें वृक्ष हजार।।२

रोपें नित्य पेड़ एक,होता जो फलदार।
पुत्र जैसे ही मानें,सदा करे उपकार।।३


कहे धरा हमको यही,मानो मेरी बात।
वैरी सुन लो ना बनो ,नहीं करो आघात।४

 मेटे जो खुद को यहाँ,हमको देते ठौर।
 भूले न उनको छाँटें ,भोजन जो दे सौर।।५

इनसे ही होता यहाँ,सदा सुखी संसार।
शस्य-श्यामला हो धरा,हरियाली विस्तार।।६

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मण्डूक दोहे

ऋतु गुलाटी ऋतंभरा

माता कालरात्रि पर तांटक छंद मे आवाहन

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