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Ajay Amitabh Suman
Ravendra
विक्रम मिश्र "अनगढ़"
Nisheeth pandey
जो साख से टूट गया उसे जाने दो, फिर से नव कोंपल सजाने दो। टूट के बिखरे सूखते पत्तियों का मोह देखों, सुख कर भी कहा अपने साख का खाद बनने दो । मर कर भी फिर से जीना, सुनो पत्तियों, कभी न व्यर्थ जाना। शायद पेड़ ने पत्तियों को पाठ पठाया, क्या खूब संकल्प पत्तियों ने उठाया। पेड़ और पत्तियों का जीवन अंतिम साँस तक संधर्ष से है भरा ग्रीष्म में तपती झुलसती है , अंगारों के सम जलती है। शुष्क हवा के थपेड़ों से, फिर पत्ता पत्ता दहलती है। नीले आकाश पर घनघोर बादल जब छाते हैं, पत्ते पत्ते तन मन को भीगोने से नहीं बचा पाते हैं। जीव जंतु मनुख तोड़ मेमोर जाते हैं, फिर भी नए कोपलों संग चलते जाते है। अवरोध बहुत आते हैं लेकिन, पर कभी वीर की भांति नहीं घबराते हैं। पेड़ रहता अडिग है अपने सपने के लिये चीख़ चीख़ कहता सपनों को साकार बनाने दो। संधर्ष दौर कहाँ कम होता जब आते भीषण झंझावात, तो कुछ पेड़ पत्ते फूल और फल गिर जाते हैं, नवीन सृजन को वो अपने, फिर बीज अंकुरित कर जाते हैं। ऐसा ही जीवनचक्र होता है, तूफ़ान तो आते जाते रहते हैं, नियति के तूफ़ानों से, अब जी भर के टकराने दो। अंकुरित से पेड़ तक बनने का सफर सरल न होता , पथ में अनेक विघ्न आते है। जो बाधाओं से न विचलित होते, वही पेड़ फलदायी मंज़िल पाते है। जो मानव ज़ख्म से लहूलुहान हो कर भी उठ जाते है, वह मानव इतिहास रच जाते है। इतिहास के नए कोंपल पर, एक फलदाई साख बन जाने दो। जो साख से टूट गया उसे जाने दो, फिर से नव कोंपल सजाने दो। #निशीथ ©Nisheeth pandey #Sukha जो साख से टूट गया उसे जाने दो, फिर से नव कोंपल सजाने दो। टूट के बिखरे सूखते पत्तियों का मोह देखों, सुख कर भी कहा अपने साख का खाद बनन
Ravendra
Ravendra
Nisheeth pandey
पेड़ का जीवन ------------/ जो साख से टूट गया उसे जाने दो, फिर से नव कोंपल सजाने दो। टूट के बिखरे सूखते पत्तियों का मोह देखों, सुख कर भी कहा- अपने साख का खाद बनने दो । मर कर भी फिर से जीना, सुनो पत्तियों, कभी न व्यर्थ जाना। शायद पेड़ ने पत्तियों को पाठ पठाया, क्या खूब संकल्प पत्तियों ने उठाया। जो साख से टूट गया उसे जाने दो, फिर से नव कोंपल सजाने दो। पेड़ और पत्तियों का जीवन अंतिम साँस तक संधर्ष से है भरा ग्रीष्म में तपती झुलसती है , अंगारों के सम जलती है। शुष्क हवा के थपेड़ों से, फिर पत्ता पत्ता दहलती है। नीले आकाश पर घनघोर बादल जब छाते हैं, पत्ते पत्ते तन मन को भीगोने से नहीं बचा पाते हैं। जो साख से टूट गया उसे जाने दो, फिर से नव कोंपल सजाने दो। जीव जंतु मनुख तोड़ मेमोर जाते हैं, फिर भी नए कोपलों संग चलते जाते है। अवरोध बहुत आते हैं लेकिन, पर कभी वीर की भांति नहीं घबराते हैं। पेड़ रहता अडिग है अपने सपने के लिये चीख़ चीख़ कहता सपनों को साकार बनाने दो। जो साख से टूट गया उसे जाने दो, फिर से नव कोंपल सजाने दो। संधर्ष दौर कहाँ कम होता जब आते भीषण झंझावात, तो कुछ पेड़ पत्ते फूल और फल गिर जाते हैं, नवीन सृजन को वो अपने, फिर बीज अंकुरित कर जाते हैं। ऐसा ही जीवनचक्र होता है, तूफ़ान तो आते जाते रहते हैं, नियति के तूफ़ानों से, अब जी भर के टकराने दो। जो साख से टूट गया उसे जाने दो, फिर से नव कोंपल सजाने दो। अंकुरित से पेड़ तक बनने का सफर सरल न होता , पथ में अनेक विघ्न आते है। जो बाधाओं से न विचलित होते, वही पेड़ फलदायी मंज़िल पाते है। जो मानव ज़ख्म से लहूलुहान हो कर भी उठ जाते है, वह मानव इतिहास रच जाते है। इतिहास के नए कोंपल पर, एक फलदाई साख बन जाने दो। जो साख से टूट गया उसे जाने दो, फिर से नव कोंपल सजाने दो। #निशीथ ©Nisheeth pandey #Pattiyan पेड़ का जीवन ------ जो साख से टूट गया उसे जाने दो, फिर से नव कोंपल सजाने दो। टूट के बिखरे सूखते पत्तियों का मोह देखों, सुख कर भी
Ravendra