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Himanshu Prajapati
हे भगवान मेहरारू भले करिया देह, लेकिन गढ़न तनी बढ़िया देह, नहीं त सुहागरात के दिन घूंघट उठवत हम डर जाब, सुहागरात से पहले ही मर जाब..! ©Himanshu Prajapati #boatclub हे भगवान मेहरारू भले करिया देह, लेकिन गढ़न तनी बढ़िया देह, नहीं त सुहागरात के दिन घूंघट उठवत हम डर जाब, सुहागरात से पहले ही मर ज
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MAHENDRA SINGH PRAKHAR
ग़ज़ल :- प्राण प्यारी तुम्हीं हो बताता नहीं । प्यार दिल में छुपा है जताता नहीं ।।१ हाथ तेरा कभी प्रेम से थाम लूँ । वक्त ऐसा कभी पास आता नहीं ।।२ होंठ सुर्खी तुम्हारी लिए जाँ रही । देख जिसको मैं दिल थाम पाता नहीं ।।३ मस्त आँखों से ऐसा पिलाया हमें । होश आया भी तो होश आता नहीं ।।४ हो गई जब कभी तू तू मैं मैं यहाँ । बात दिल में कभी वह बिठाता नहीं ।।५ सात फेरे हमारे तुम्हारे पड़े । बोसा फिर भी कभी माँग पाता नहीं ।।६ लाख साड़ी तुम्हारे लिए ला रखी । पर कभी तू पहन कर दिखाता नहीं ।।७ चाँद शरमाँ न जाए तुम्हें देखकर । इसलिए आज घूंघट उठाता नहीं ।।८ जी इसी बात से है प्रखर का जला । तू हमीं पर कभी हक जताता नहीं ।।९ १२/१२/२०२३ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR प्राण प्यारी तुम्हीं हो बताता नहीं । प्यार दिल में छुपा है जताता नहीं ।।१ हाथ तेरा कभी प्रेम से थाम लूँ । वक्त ऐसा कभी पास आता नहीं ।।२
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
ग़ज़ल :- जो रिश्तों का इस दुनिया में आज तमाशा करता है । मतलब आने पर वह ही अब देखो वादा करता है ।।१ बस मीठी बातें करता है वक़्त पे काम नहीं आता अपने पन का स्वाँग रचाकर कैसा दावा करता है ।।२ भूल गया क्या वह भी हमको अब दुनिया की बातों में । भूले बिसरे जो दिल को अक्सर बहलाया करता है ।।३ इंसानों की बस्ती में इक पत्थर जैसा शख़्स मिला। उससे क्या उम्मीद करें जो देख किनारा करता है ।।४ मातु-पिता का सुत जीवन में बस एक सहारा होता । जो बीवी के एक इशारे पर अब नाचा करता है ।।५ खत्म हुई अब रस्म पुरानी घूंघट आज उठाने की । जेठ ससुर के आगे चेहरा कौन छुपाया करता है ।।६ ऐ जी ओ जी की रीति नही नाम लियो सीधे पी का । डब्लू के पापा सुन लो अब कौन पुकारा करता है ।।७ रूठे हमदम से कह कोई लौट के जल्दी आ जाओ उनकी गलियाँ आज प्रखर देख निहारा करता है ।।८ २५/०९/२०२३ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR ग़ज़ल :- जो रिश्तों का इस दुनिया में आज तमाशा करता है । मतलब आने पर वह ही अब देखो वादा करता है ।।१
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
ग़ज़ल :- तुम्हारी बात का जिस पर नशा है । उठाने को तिरा घूंघट खड़ा है ।।१ नज़र भर देख भी ले जो तुम्हें अब । कहाँ फिर होश में रहता खड़ा है ।।२ तुम्हें जो छू रही है बे-इजाजत । वही मगरूर अब देखो हवा है ।।३ किसी के जो बुलाने से न आता । वही चंदा तुम्हें अब देखता है ।।४ कभी उसको गले से भी लगा ले । तुम्हारे प्यार में जो बावला है ।।५ इबादत में उसी की आज बैठा । जिसे हमने यहाँ माना खुदा है ।।६ बहुत बिंदास हो कर के चले थे । कि उसकी जुल्फ़ का साया घना है ।।७ वही है रूप की रानी जहाँ में । हमारा दिल सुनो जिस पर फ़िदा है ।। ८ उसी की ही अदाओं का असर ये । प्रखर जो आज दीवाना हुआ है ।।९ २६/०९/२०२३ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR ग़ज़ल :- तुम्हारी बात का जिस पर नशा है । उठाने को तिरा घूंघट खड़ा है ।।१
ANIL KUMAR
हमारा चाँद आया है कि बागों में खिली कलियाँ बहारों ने सजाया है कि बागों में खिली कलियाँ उसे कहना बहुत है बात दिल की है मेरे यारो हंसीं रब ने बनाया कि बागों में खिली कलियाँ हंसीं चेहरो की दुनिया में मेरा साजन है नंबर वन ख़ुदा मेकअप कराया हैकि बागों में खिली कलियाँ बसा आंखों में जंगल है कहीं खोया रहूं हरदम जलवा बिछाया है कि बागों में खिली कलियाँ पड़े भ्रम में सभी बादल खुला फिर देख के जूड़ा कहां बादल ये छाया है कि बागों में खिली कलियाँ छलकता पाक दरिया की रवानी की जवानी है अभी घूंघट उठाया है कि बागों में खिली कलियाँ बदन कमलों की कलियों-सा धवल पावन भी मुखड़ा है बड़े भागों से पाया है कि बागों में खिली कलियाँ अनिल कुमार ''निश्छल'' ©ANIL KUMAR #Gulaab #शेर #दर्द #जिंदगी #shairi #कभी #अनिल #अनिल_कुमार_निश्छल
Anil Ray
Satpal Das
Ravi Shankar Kumar Akela
कृषि मनुष्य को सुविधाएं प्रदान करने के लिए पौधों और पशुधन की खेती करने की प्रथा है। गतिहीन मानव जीवन शैली के उदय में कृषि प्रमुख विकास थी। शहरी आबादी को भोजन उपलब्ध कराने के लिए पौधों और खाद्यान्नों की खेती वर्षों पहले शुरू हुई थी। ©Ravi Shankar Kumar Akela #Parchhai कृषि मनुष्य को सुविधाएं प्रदान करने के लिए पौधों और पशुधन की खेती करने की प्रथा है। गतिहीन मानव जीवन शैली के उदय में कृषि प्रमुख व