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Author Harsh Ranjan

ईश

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लोकतंत्र में राम का मखौल नहीं, नेताओं की आलोचना ईशनिंदा कहलाती है। ईश

वेदों की दिशा

.।। ओ३म् ।।

प्रणवो धनुः शरो ह्यात्मा ब्रह्म तल्लक्ष्यमुच्यते।
अप्रमत्तेन वेद्धव्यं शरवत्‌ तन्मयो भवेत्‌ ॥

ॐ (प्रणव) है धनुष तथा आत्मा है बाण, और 'वह', अर्थात् 'ब्रह्म' को लक्ष्य के रूप में कहा गया है। 'उसका' प्रमाद रहित होकर वेधन करना चाहिये; जिस प्रकार शर अर्थात् बाण अपने लक्ष्य में विलुप्त हो जाता है उसी प्रकार मनुष्य को 'उस' में (ब्रह्म में) तन्मय हो जाना चाहिये।

OM is the bow and the soul is the arrow, and That, even the Brahman, is spoken of as the target. That must be pierced with an unfaltering aim; one must be absorbed into That as an arrow is lost in its target.

( मुण्डकोपनिषद् २.२.४ ) #मुण्डकोपनिषद् #mundakopanishad #उपनिषद #उपनिषद #ब्रह्मा #वह #him

Author Harsh Ranjan

ईश

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लोकतंत्र में राम का मखौल नहीं, नेताओं की आलोचना ईशनिंदा कहलाती है। ईश

वेदों की दिशा

।। ओ३म् ।।

यस्मिन्‌ द्यौः पृथिवी चान्तरिक्षमोतं मनः सह प्राणैश्च सर्वैः।
तमेवैकं जानथ आत्मानमन्या वाचो विमुञ्चथामृतस्यैष सेतुः ॥

'वह', जिसमें द्युलोक, पृथ्वी एवं अन्तरिक्ष, मन तथा प्राण की समस्त गलियां अन्तर्भूत हैं, ओत-प्रोत हैं, 'उसको' तुम एकमेव 'आत्मरूप' जानो; इससे भिन्न अन्य वचनों का सर्वथा त्याग कर दो, यही है अमृत का सेतु।

He in whom are inwoven heaven and earth and the midregion, and mind with all the life currents, Him know to be the one Self; other words put away from you: this is the bridge to immortality.

( मुंडकोपनिषद २.२.५ ) #मुण्डकोपनिषद #उपनिषद

वेदों की दिशा

।।ॐ।।

अ॒न्धन्तमः॒ प्र वि॑शन्ति॒ येऽस॑म्भूतिमु॒पास॑ते। 
ततो॒ भूय॑ऽइव॒ ते तमो॒ यऽउ॒ सम्भू॑त्या र॒ताः ॥९ ॥

पद पाठ

अ॒न्धम्। तमः॑। प्र। वि॒श॒न्ति॒। ये। अस॑म्भूति॒मित्यस॑म्ऽभूतिम्। उ॒पास॑त॒ इत्यु॑प॒ऽआस॑ते ॥ ततः॑। भूय॑ऽइ॒वेति॒ भूयः॑ऽइव। ते। तमः॑। ये। ऊँ॒ऽइत्यूँ॑। सम्भू॑त्या॒मिति॒ सम्ऽभू॑त्या॒म्। र॒ताः ॥९ ॥

(ये) जो लोग परमेश्वर को छोड़कर (असम्भूतिम्) अनादि अनुत्पन्न सत्व, रज और तमोगुणमय प्रकृतिरूप जड़ वस्तु को (उपासते) उपास्यभाव से जानते हैं, वे (अन्धम्, तमः) आवरण करनेवाले अन्धकार को (प्रविशन्ति) अच्छे प्रकार प्राप्त होते और (ये) जो (सम्भूत्याम्) महत्तत्त्वादि स्वरूप से परिणाम को प्राप्त हुई सृष्टि में (रताः) रमण करते हैं (ते) वे (उ) वितर्क के साथ (ततः) उससे (भूय इव) अधिक जैसे वैसे (तमः) अविद्यारूप अन्धकार को प्राप्त होते हैं ॥

(These) Those who know God (Asambhuti) except the infinitely unintelligible entity, Raja and Tamogunamya, the root object of nature (Upasate), they (Andam, Tama), the covering darkness (the entry) will get well and (these)  ) Those who achieve the result of the (Sambhutyam) Mahātattvādī form (Rātāh) in the creation (Ram): They (U) with vitarka (s) (more) than (the earth) are more like (Tama) in the dark darkness.  
 
ईशोपनिषद मंत्र ९ #उपनिषद #ईशोपनिषद

वेदों की दिशा

।। ॐ ।।

तस्माद्वा एते देवा अतितरामिवान्यान्देवान्यदग्निर्वायुरिन्द्रस्ते ह्येनन्नेदिष्ठं पस्पर्शुस्ते ह्येनत्प्रथमो विदाञ्चकार ब्रह्मेति ॥

केनोपनिषद चतुर्थ खण्ड मंत्र २ #केनोपनिषद #उपनिषद

वेदों की दिशा

।। ॐ ।।

प्रतिबोधविदितं मतममृतत्वं हि विन्दते।
आत्मना विन्दते वीर्यं विद्यया विन्दतेऽमृतम्‌ ॥

जब यह ऐसे प्रत्यक्ष बोध के द्वारा जाना जाता है जो ‘इसे’ प्रतिबिम्बित करता है, तभी व्यक्ति 'इसका’ विचार बना पाता है, क्योंकि उससे व्यक्ति को अमृतत्व की उपलब्धि होती है; उपलब्धि के लिए व्यक्ति को आत्मा से वीर्य (शक्ति) प्राप्त होता है तथा विद्या से अमृतत्व की प्राप्ति होती है।

When It is known by perception that reflects It, then one has the thought of It, for one finds immortality; by the self one finds the force to attain and by the knowledge one finds immortality.

केनोपनिषद द्वितीय खण्ड ४ #केनोपनिषद  #उपनिषद

Rajesh Singh Rajput

तुम पर  इश्क़ लिखा पाना कहा मुमकिन है...

इतने खूबसूरत तो लब्ज भी नहीं मेरे..!!

kize basu

©Rajesh Singh Rajput #ईश

#InternationalMensDay2020

Akashdeep

ईश आराधना

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बाल न बांका कर सके
कर सके ना कोई अपमान,
जिसके रक्षा स्वयं करते हो
पवन पुत्र हनुमान ।।

श्री राम जय राम जय जय राम।
श्री राम जय राम जय जय राम।
शुभ प्रभात आपका दिन मंगलमय हो
🌅🌅🌄🌅🌄🌅🌄🌅🌄 ईश आराधना

वेदों की दिशा

।। ओ३म् ।।

अग्नीर्मूर्धा चक्षुषी चन्द्रसूर्यौ दिशः श्रोत्रे वाग्‌ विवृताश्च वेदाः।
वायुः प्राणो हृदयं विश्वमस्य पद्‌भ्यां पृथिवी ह्येष सर्वभूतान्तरात्मा ॥

अग्नि 'उसका' मस्तक (मूर्धा) है, चन्द्रमा तथा सूर्य उसके नेत्र हैं, दिशाएँ उसकी श्रवणेन्द्रियाँ (श्रोत्र) हैं तथा प्रकट हुए वेद उसकी वाणी हैं, वायु उसका प्राण है, विश्व उसका हृदय है, उसके चरणों में पृथ्वी आसीन है, 'वह' समस्त उद्भूत सत्ताओं का 'अन्तरात्मा' है।

Fire is the head of Him and his eyes are the Sun and Moon, the quarters his organs of hearing and the revealed Vedas are his voice, air is his breath, the universe is his heart, Earth lies at his feet. He is the inner Self in all beings.

( मुंडकोपनिषद २.१.४ ) #मुण्डकोपनिषद #उपनिषद #mundak_upnishad
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