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कवि मनोज कुमार मंजू
दीवारें भी अब तो घर की संस्कृतियों पर हसती हैं। घूम रही गलियों में मंथरा कैकेयी घर घर बसती है।। ©कवि मनोज कुमार मंजू #दीवारें #घर #संस्कृति #गलियां #मंथरा #कैकेयी #मनोज_कुमार_मंजू #मँजू
Preeti Karn
अश्रु अभ्यागत बने याचना अनुरक्त है धैर्य संयम खो रहा अब सलिल हृदय क्यों मौन है।। प्रीति #निशीथ: अर्द्ध रात्रि #अनुताप: पश्चाताप, खेद #सलिल: जल #अभ्यागत: अतिथि #yqdidi #yqhindiquotes
Aman Kumar
संगत से इंसान का स्वभाव पर कोई फर्क नहीं पड़ता क्योंकि विभीषण रावण के साथ रहकर भी नहीं बिगड़ा और कैकेयी राम के साथ रहकर भी नहीं सुधरी ©Aman Kumar संगत से इंसान का स्वभाव पर कोई फर्क नहीं पड़ता क्योंकि विभीषण रावण के साथ रहकर भी नहीं बिगड़ा और कैकेयी राम के साथ रहकर भी नहीं सुधरी #Shaya
N S Yadav GoldMine
कैकेयी के द्वारा राम को वचन मुक्त करने के पश्चात भी वे वन में क्यों गए जरूर पढ़िए !! 📜📜 {Bolo Ji Radhey Radhey} {जय श्री सीताराम जी} कैकेयी द्वारा वचन मुक्त :- 🌄 भगवान श्रीराम को माता कैकेयी ने मंथरा की चालों में फंसकर उनके राज्याभिषेक से एक दिन पहले उन्हें 14 वर्षों का वनवाद दिलवा दिया था। इसी कारण भगवान श्रीराम अपने भाई लक्ष्मण व पत्नी सीता सहित वन में चले गए थे। अपने पुत्र के वन जाने के दुःख में राजा दशरथ ने अपने प्राण त्याग दिए थे। इसके बाद जब भरत कैकेय से अयोध्या वापस आये तब उन्हें सब षड़यंत्र का ज्ञात हुआ। जय श्री राधे कृष्ण जी..... भरत गये चित्रकूट :- 🌄 भगवान राम के चित्रकूट में होने का समाचार सुनकर भरत अपनी तीनों माताओं, अन्य राज परिवार के सदस्यों समेत वहां पहुँच गए व प्रभु श्रीराम से अपनी माता के किये कर्मों के लिए क्षमा मांगी। उन्होंने अयोध्या का राज सिंहासन पुनः भगवान श्रीराम को सौंप दिया व अयोध्या वापस चलने को कहा। इस पर श्रीराम ने स्वयं के पिता के वचन से बंधे होने के कारण वापस अयोध्या लौटने को मना कर दिया। कैकेयी ने वापस लिए दोनों वचन :- 🌄 उस सभा में कैकेयी भी उपस्थित थी व प्रभु श्रीराम के वचनों से बंधे होने की बात सुनकर उन्होंने उसी समय राजा दशरथ से मांगे अपने दोनों वचन वापस ले लिए। उन्होंने राम से अपने किये के लिए क्षमा मांगी व कहा कि वे राजा दशरथ से मांगें अपने दोनों वचनों को अभी वापस लेती हैं ताकि राम पुनः अयोध्या लौट सके। केवल राजा दशरथ को था अधिकार :- 🌄 जब माता कैकेयी ने अपने दोनों वचन वापस ले लिए तब श्रीराम ने उन्हें कहा कि वचन वापस लेने का अधिकार केवल उसी का होता है जिसने वचन दिया हो। चूँकि महाराज दशरथ ने रानी कैकेयी को दो वचन दिए थे जिसमे कैकेयी ने राम को 14 वर्षों का वनवास व भरत का राज्याभिषेक माँगा था। चूँकि रानी कैकेयी ने अपने वचन दशरथ की मृत्यु के बाद वापस लिए थे इसलिये उन्हें माना नही जा सकता था। राजा दशरथ की मृत्यु के पश्चात उनके वचन को पूरा करना श्रीराम का कर्तव्य था। यदि वे जीवित होते और उस समय रानी कैकेयी अपने वचन वापस लेती तब श्रीराम वन में जाने के लिए बाध्य नही होते। इसलिये प्रभु श्रीराम ने माता कैकेयी के द्वारा अपने दोनों वचनों को वापस लिए जाने के पश्चात भी वन में जाने का निर्णय लिया था। ©N S Yadav GoldMine #Pattiyan कैकेयी के द्वारा राम को वचन मुक्त करने के पश्चात भी वे वन में क्यों गए जरूर पढ़िए !! 📜📜 {Bolo Ji Radhey Radhey} {जय श्री सीताराम ज
OMG INDIA WORLD
#RIPRohitSardana रामायण में दो व्यक्ति थे, एक विभीषण और एक कैकेयी, विभीषण रावण के राज में रहता था, फिर भी नहीं बिगड़ा, कैकेयी राम के राज में रहती थी, फिर भी नहीं सुधरी, तात्पर्य सुधरना और बिगड़ना केवल मनुष्य की सोच और स्वभाव पर निर्भर करता है। ©OMG INDIA WORLD रामायण में दो व्यक्ति थे, एक विभीषण और एक कैकेयी, विभीषण रावण के राज में रहता था, फिर भी नहीं बिगड़ा, कैकेयी राम के राज में रहती थी, फिर भी
यशवंत कुमार
वो चेहरा 'तुम्हारा' है मेरी बातों का मेरे जज्बातों का मेरे ख्यालों का मेरे सवालों का Read in caption... वो चेहरा "तुम्हारा " है। मेरी बातों का मेरे जज्बातों का मेरे ख्यालों का मेरे सवालों का मेरी तन्हाईयों का मेरी परछाईयों का
Rohit Potdar
का बरं का ? "Koni Pratyaksha pyeksha Gelyavarach jasta prem jaanavte." Haa difference vedich sarkavta aala nahi. Tar aayushya aani tyatli loko, fakt aathvan mahnun rahun jhatil aani tasecha jagave lagtil. का बरं का ?
shalini jha
भावनाओं के सागर में डूबती गहरे उतर देखा है मैंने ठहरा हुआ सा मन का वो बसंत उमंगो के आकाश में रक्तिम पलाश से लगी आग जो अब तक बुझी नहीं सौरभ से परिपूर्ण जागृत शिखा सी आत्मा का अनुताप पलकों पर सुन्दर कोमल सपनों का बसेरा कई अभिलाषाएँ एक खिंचाव .. उत्ताल तंरग पर नाचती संध्या हृदय के गीतो में समाहित सुरभित सुगंध झोंका पवन का झड़ते पात संग भावों के झड़ते पनपते रंग मन के झरोखों को खोलता हुआ सा एक पुकार और अबुझ फागुन का शोर बस तुम्हारी ही ओर .. ©shalini jha भावनाओं के सागर में डूबती गहरे उतर देखा है मैंने ठहरा हुआ सा मन का वो बसंत उमंगो के आकाश में रक्तिम पलाश से लगी आग जो अब तक बुझी नहीं