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Divyanshu Pathak
आजकल खूब जोर-शोर से सरकारी अभियान चल रहे हैं कि होने वाले बाल-विवाहों को सख्ती से रोका जाएगा। मां-बाप को पुलिस की लाठियां खानी पड़ेंगी। सरकार के किसी अधिकारी को यदि आप यह कह दो कि इनका असली विवाह तो अठारह साल की उम्र के बाद (गौणा) होता है। तब तक तो इसे सगाई मान सकते हैं। इस बात पर अधिकारी और समाज की विकासवादी महिलाएं आपके कपड़े फाड़ देंगे। :💕👰👴 क्योंकि वे हर परम्परा को रूढि मानते हैं। आप पुरातनपंथी, दकियानूस और न जाने क्या-क्या पदक प्राप्त कर लेंगे। लेकिन यही लोग कितने खुश हैं
Divyanshu Pathak
इसके बाद मां- बाप जो कुछ भी सिखाते हैं उसको पहले अपने अनुभवों से काम लेने या नाप-तोलने का आधार बना लेते हैं। जब तक एक पक्षीय जीवन दिशा रहती है वही कन्या काल है। लड़कियां संवेदनाओं में अधिक गहरी होती हैं। अत: प्रकृति उनको जल्दी जीवन-संग्राम में उतार देती है। लड़कों को परिपक्व होने में अधिक समय लगता है एक लड़की- एक लड़के की तुलना में अधिक संकल्पवान होती है जब कि लड़का विकल्पों में अधिक भटकता है। कभी भी माया के झपट्टे में आ सकता है। जैसे-जैसे लड़कियों में पौरूष बढ़ रहा है वे भी झपट्टों का शिकार होने लगी हैं। 💕💞🐇शुभरात्री🐇🐇💕💞💞 ☕ घर के बदलते वातावरण,स्वतंत्रता की जगह स्वच्छन्दता की मां- बाप के मन की छटपटाहट,झूठ के अनेक मुखौटे भी अपना प्रभाव जमाते ह
Divyanshu Pathak
इंसान बनाओ मां ! : समाज का भौतिक जीवन स्तर, संस्कृति, मानसिकता, अपेक्षाभाव तथा मूल्यहीन जीवन विस्तार भी ऎसी घटनाओं के लिए जिम्मेदार है। न तो कोई मां-बाप अपने बच्चों को कुछ समय देते हैं, न शिक्षकों को उनके जीवन से सरोकार रह गया है। शिक्षा के पाठ्क्रम तय करने वाले दिमाग से नकल करने वाले हैं। पढ़ाई को भी स्टेटस सिंबल बना दिया है। पेट भरना इसका उद्देश्य है। आज का शिक्षित, मन और आत्मज्ञान की दृष्टि से तो अपूर्ण ही कहा जाएगा। अपूर्ण व्यक्ति ही मनुष्योत्तर (पाशविक) कार्य के प्रति आकर्षित होता है। वरना जिस देश में इतना युवा वर्ग हो, वहां अपराधी चैन से जी सकता है! झूठे सपनों ने, बिना पुरूषार्थ के धनवान बन जाने की लालसा ने युवा वर्ग को चूडियां पहना दीं। छात्रसंघ चुनाव में तो वह अपनी शक्ति का राजनीतिक प्रदर्शन कर सकता है, किन्तु मौहल्ले के गुण्डे से दो-दो हाथ नहीं कर सकता। धूल है इस जवानी को, जो देश की आबरू से खिलवाड़ करे। भौतिकवाद ने जीवन को स्वच्छन्दता दी है। तकनीक ने जीवन की गति बढ़ा दी है। एक गलती करने के बाद पांव फिसल जाता है। लौटकर सीधे खड़े हो पाना कठिन
Divyanshu Pathak
मुझे अच्छा लगता हैं मन का आवारा पन विचारों की स्वच्छन्दता भावनाओ का प्रस्फुटित होना। मुझे अच्छा लगता है अनुबंधों को तोड़ना रूढ़ियों को छोड़ना अनुभवों को जोड़ना बृज की मस्ती देव भूमि की भक्ति धोरारी धरती की शक्ति मुझे अच्छी लगती है। मुझे 'प्रेम' करना पसन्द है । 'वियोग' से 'योग' की ओर जाना भी मुझे 'कृष्ण' भी पसन्द है 'राधा' भी । मुझे आद्या पसन्द है मुझे यौवनं भी मुझे 'क्षर' भी पसन्द है तो 'अक्षर' भी "एक अनदेखा ठहराव" 💐💐💐💐💐💐 मुझे अच्छा लगता हैं मन का आवारा पन विचारों की स्वच्छन्दता भावनाओ का प्रस्फुटित होना। 💐💐💐💐💐💐💐💐💐 मुझे अच्छा लगता है अ
Divyanshu Pathak
: स्त्री होने से कोई एतराज नही हैं मुझे तेरे सिर्फ़ औरत रह जाने का डर है। : बंदिशें समझती हो न तुम जिसे तेरे स्वरूप को ढालने का यंत्र है बस धुरी हो तुम भविष्य की सृष्टा है बर्तमान की । : तुझसे ही तो संस्कार है ममता है तुम माया हो जींवन की सामर्थ्य हो अग्नि परीक्षा तप है तेरे खरे होने का तेरे भाग से ही तो बनने है सृष्टि के गहने । : करुणा सौम्यता नवीनता सरलता गुण है तेरे सौंदर्य का प्रतिमान हो तुम पोषित मत करो अहंकार को पश्चिम की हवा में मत बहने दो आप को अधिकारों के नाम पे तुम स्वयं अधिकार हो । : समय के साथ नर-नारी के देह में तो कोई परिवर्तन नहीं आया, किन्तु चिन्तन और जीवन शैली में बहुत परिवर्तन आया है। यह परिवर्तन किस सीमा तक हितकर ह
Divyanshu Pathak
भारत का संघर्ष ‘गरीबी में आटा गीला’ जैसी स्थिति से जूझने जैसा है। हमारे सामने अधिकांश पश्चिमी देश विकसित देशों की श्रेणी में आते हैं। भारत विकसित नहीं है। #सुप्रभातम #विज्ञान_का_ताण्डव के साथ #पाठकपुराण के साथ एक विचार जो #गुलाब_कोठारी जी ने दिया मैं उनके विचार से आपको अबगत कराता हूँ। : आर्थिक
priyanka kumari
सीमा-एक शुरुआत.. #NojotoQuote मुझे तो उन लोगों ने बनाया जो दूसरो को समझाते रहे हैं.. पर आज तक खुद को न समझ पाए। कैसे समझाऊं उन सबको अपनी अहमियत.. हां हूँ मैं एक सीमा..