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Mungla Hiren
मेरी गलती यो की कोई गिनती नहीँ है फिर भी पापा है कि भूल के सारी गलती मेरी, मेरी मुस्कान पर इतराते है । चाहे थप्पड़ लगाते है, डरा धमका के सुलाते है, पर सोते हुये मेरे चहेरे को चुम्मीयो से नहलाते है। ©Mungla Hiren #पापा👳 #कविता
JS GURJAR
पापा आपकी बेटी बड़ी हो गई गिर गिर करके मैं उठने बाली चलते चलते मैं कापने बाली आज हर मुश्किल पे खम्म हो गई पापा आपकी बेटी बड़ी हो गई हर बात पे मैं चिल्लाने बाली छोटी चोट से मैं रोने बाली आज हरेक दर्द में खड़ी हो गई पापा आपकी बेटी बड़ी हो गई तेज आवाज से डर जानें बाली मैं एक हाथ में तो जान लिए थी एक मे मौत लिए स्थम्म हो गई पापा आपकी बेटी बड़ी हो गई यह दुनियां के सारे रीति रिवाज यह वे मतलब के यहां साज बाज निभाने को बड़ी रस्म हो गई पापा आपकी बेटी बड़ी हो गई स्वरचित एवं मौलिक रचना- ज्योति गुर्जर "सेव्या" ©JS GURJAR #कविता #पापा #बेटी
Manisha Kaushik
मैंने कभी कहा नहीं, लेकिन मैंने कभी कहा नहीं, लेकिन आप हमेशा से ही मेरी जरूरत रहे हो#पापा #मनीषा कौशिक #पापा #कविता #शायरी #विचार
KHUSHI GUPTA
इक चाह मेरी भी है, छोटी सी तुम तीनों से गंगा जमुना और सरस्वती सा निर्मल बन जाओ बुद बुद से मिलकर विशाल सागर बनता है एक एक दिन मिलकर अनमोल जीवन इक दिन अपने आप माटी से मिल जायेगा इसका मोल समझो एक एक दिन जोड़ कर ऐ जीवन बना है इस मोती को यू ही न गवाओ खूब खुश रहो अपनी दुनिया में अपने ही कर्म का फल है आने वाला पल ना रहो उदास अपने आप से ना ही किसी और को उदास बनाओ इक चाह मेरी भी है, छोटी सी तुम तीनों से गंगा जमुना और सरस्वती सा निर्मल बन जाओ मेरे जैसे कुछ माँ बाप और भी होंगे जग मे जिनकी पीड़ा का शब्द नहीं आँखों में न दिखने वाला आँसू और अंधकार छाया जीवन में उनके शब्द और उजाला बन जाओ क्रोध लोभ मोह सब नाशवान है उच्च आदर्श और त्याग की छाया बनो तुम्हारे नाम आते ही आदर अपने आप उत्पन्न हो कुछ ऐसा कर जाओ मेरा जीवन भी सफल हो एक उदाहरण और बन जाओ एक चाह मेरी भी है , छोटी सी तुम तीनों से गंगा जमुना और सरस्वती सा निर्मल बन जाओ चारो ओर अन्धेरा है तुम आत्म मन से देखो मुझे बाहर के बहार का नकलीपन अपनो और जग के तिरस्कार से मरणासन्न यह जीवन बाहर का बनावटी पन अन्दर से कुछ और हकिकत मेरा सच्चा साथी कौन, तुमसे बेहतर सांसारिक नाते सब अपनी अपनी जरुरत के कभी मै उनकी जरुरत का कभी वो मेरी जरुरत के मन का मीत नही कोई सब नाते स्वार्थ के आत्म मन का अन्धेरा यथावत कव तक बाहर के सहज भाव मे छिपे मर्म समझ जाओ समाज मे बहुत मजाक बना है अब तक ज्यादा कुछ नहीं चाहिए सम्मान की भूख लगी एक चाह मेरी भी है छोटी सी तुम तीनों से गंगा जमुना और सरस्वती सा निर्मल बन जाओ -संतोष गुप्ता पापा की कविता #findingyourself