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DR. LAVKESH GANDHI
जमाने भर की रश्में क्या मेरे लिए ही हैं जमाने में रश्मों की तो जनाजे ही निकल गए # रस्में # # रस्मों के जनाजे# #yqrasm #yqrivaj #
Anand Kumar Ashodhiya
किस्सा रसकपूर - रागनी 9 परवाने लिए बाँच भूप ने धरी एक एक चिट्ठी न्यारी हलकारे तै बूझन लाग्या कित खुगी दिल की प्यारी मैं छह महिने तै लड़ूँ लड़ाई वा बण बैठी महाराणी ब्याहे मर्द की चिन्ता कोन्या के पड़गी बात पुराणी मेरी आत्मा तड़फे उस बिन वा के जाणे चोट बिराणी ना कोए चिट्ठी ना कोए पत्री मन्ने पड़गी याद कराणी शरीर एकला लड़ रहया जंग में एक जंग मन मे जारी वा रँगमहलां में ऐश करै कौण उसके दिल मे बसग्या मन्ने भुलाके उसके दिल मे किसका दिवा चसग्या कौण पौनिया विषधर होग्या जो मेरे चन्दण कै घिसगया रतनसिंह बण साँप आस्तीन मेरी खुशियां नै डसग्या मेरे तै दिल भरग्या उसका इब किसते ला ली यारी नई फौज की भरती करकै वा के करणा चाहवै सै राजद्रोह में दण्डित हो कै क्यूँ मरणा चाहवै सै अमीर खान के डेरे पै जा क्यूँ शरणा चाहवै सै मेरे दुश्मन के पाहया मे वा क्यूँ गिरणा चाहवै सै अधराजण का ओहदा पा कै वा रीत भूलगी सारी मानसिंह पै करी चढाई, मन्ने उसकी सलाह मान कै राजसिंहासन बिठा दई, मन्ने अपणी जगहा जाण कै दूध के धोखे कपास खा लिया इब पीऊँ शीत छाण कै आनन्द शाहपुर जंग झो रहया, उकै दया नहीँ डाण कै कथन समझ मे आ ज्यावै जब कर गावण की त्यारी गीतकार : आनन्द कुमार आशोधिया ©Anand Kumar Ashodhiya #रसकपूर #MereKhayaal
Rasik chalwadi
आंगनात माझ्या क्षनभर थांबलं काळिज चीरताना खुदकन हासलं.. नाजुर पंखाना हळुच पाहता मनात माझ्या मोहुन गेलं.. चिरल्या काळजात नजर बसता खंत आंतरी देऊन गेलं खंत आंतरी देऊन गेलं.. -रसिक. रसिकप्रेम प्रोडक्शन.
SeemaRajbhar
और उसके बाद एक दिन ऊसकी मां नाटक कर कर मर जाती अपने मां के कहे अनुसार वो अपने मां के मुह मे रसगुल्ले डाल देता है जाते समय लोग बोलते हैं राम नाम सत्य है उनकी मां बोलती है ऊपर से बेटा रसगुल्ला बड़ा मस्त है ©SeemaRajbhar चुटकुले रसगूल्ले
Anand Kumar Ashodhiya
किस्सा रसकपूर - रागनी 13 हो भूरदेव किलेदार तूं दादा मैं पोती मतना बुझै बात आत्मा रोती मैं पतिव्रता नार, अडिग रही सत पै कदे आवण दी ना आँच राज के पत पै अधराजण का अभमान, चढया ना मत पै सदा रखी आन और बान, निगाह रही गत पै करया नहीं कोए खोट, लाग रही चोट, सजा मैं ढोती मनैं पूजे शिवजी राम, कन्हैया काळा मैं पढ़ती रही नमाज, करया ना टाळा ना कदे हारी अपणे, दीन धर्म का पाळा मैं तै रटती रही सदा, सजन की माळा मैं तै मूधी पड़ पड़, पैड़ सजन की टोहती फतेकंवर राणी नै लूट लई छळ कै गहरी खेली चाल सारियाँ ने रळ के उनै भरे सजन के कान मेरे तै जळ कै वे तै फेर गई तलवार दूधारी गळ पै रही लाग, विरह की आग, ना रात दिन सोती मैं फिरूँ टोहुँवती राम, त्याग देइ बण मै लेई फेर नजर की मेहर, सजन नै छण मै मनैं बसा लिए भगवान, देह कण कण मै मनै छोड़ डिगरग्या आनन्द एकला रण मै मैं रही लाग, छुडावण दाग, मैल बिन धोती गीतकार : आनन्द कुमार आशोधिया ©Anand Kumar Ashodhiya #रसकपूर #हरयाणवी
Anand Kumar Ashodhiya
किस्सा रसकपूर - रागनी 16 मेवे की फळी, वा रस की डळी, हुई जहर घुळी, ना चाखण की रह रही कोयल सी कूक, हो रही सै मूक, गई फर्ज चूक, ना गावण की रह रही छह महीने तै, ना चिट्ठी पत्री वा बणकै बैठगी, राणी छत्री ना कोए सन्देशा, हुआ अंदेशा, जो हुआ हमेशा, ना चाहवण की रह रही चोरी चोरी वा दगा कमावै घर के भीतर यार बसावै उकै हया नहीँ, उकै दया नहीँ, उनै सहया नहीँ, इब दुख पावण की रह रही रसकपूर मेरे दिल की प्यारी दिल पे करगी वार दुधारी वा देगी दगा, मैं रहग्या ठग्या, दिया सुता जगा, कसर के ठावण की रह रही बेगैरत मेरे मन तै गिरगी आनन्द शाहपुर पक्की जरगी वा ले रही मज़ा, ठा ल्याई क़ज़ा, मैं दयूंगा सजा, बात ना भुलावण की रह रही गीतकार : आनन्द कुमार आशोधिया ©Anand Kumar Ashodhiya #रसकपूर #हरियाणवी