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सुसि ग़ाफ़िल

धरती पर यूं ही लोगों का आना जाना लगा रहता है बहुत सारे लोग मिलते हैं कुछ बिछड़ जाते हैं कुछ साथ रह जाते हैं और जो साथ रह जाते हैं वह दिल के

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Universal Truth

धरती पर यूं ही लोगों का आना जाना लगा रहता है बहुत सारे लोग मिलते हैं कुछ बिछड़ जाते हैं कुछ साथ रह जाते हैं और जो साथ रह जाते हैं वह दिल के करीब होने लगते हैं और जो दिल के करीब होने लगते हैं धीरे-धीरे हम उन पर निर्धारित होने लगते हैं आश्रित होने लगते हैं और मुझे लगता है हमारा उन पर आश्रित होना उन्हें बोर करने लग जाता है वह ऊब जाते हैं हमसे और धीरे-धीरे दूर जाना शुरु कर देते हैं और यह दूरियां एक गहरे दर्द का सागर बन जाती है जो उनमें से एक सोचता है पास रहने की दूसरा सोचता है दूर जाने की परिणाम स्वरूप बस दर्द ही दर्द मिलता है! धरती पर यूं ही लोगों का आना जाना लगा रहता है बहुत सारे लोग मिलते हैं कुछ बिछड़ जाते हैं कुछ साथ रह जाते हैं और जो साथ रह जाते हैं वह दिल के

Rahul Singh

मैं लड़का बड़ा फ़िज़ूल हूं रखता अपने कुछ वसूल हूं मतलब नहीं मुझे कुछ दुनियादारी से, मैं अपनी ही मस्ती में चूर हूं, हां मैं ऐसे ही ठीक हूं #poem #hindishayari #autobiographytitle #rakagraphy

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मैं लड़का बे फ़िज़ूल हूं मैं लड़का बड़ा फ़िज़ूल हूं
रखता अपने कुछ वसूल हूं
मतलब नहीं मुझे कुछ दुनियादारी से, 
मैं अपनी ही मस्ती में चूर हूं, 
हां मैं ऐसे ही ठीक हूं

Santosh Verma

TubeLights

यूं ही #Poetry

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ये प्यार है या लगाव है ,
जो भी है, बेमिसाल है ।

©TubeLight यूं ही

Harvinder Ahuja

# यूं ही #शायरी

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हमसे बिछड़ के वहाँ से एक पानी की बूँद न निकली,
तमाम उम्र जिन आँखों को हम, झील कहते रहे।

©Harvinder Ahuja # यूं ही

Ashutosh Mishra

यूं ही #बात

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कुछ लोग थे कि वक़्त के सांचे में ढल गए,
कुछ लोग थे कि वक़्त के सांचे में बदल गए।

©Ashutosh Mishra यूं ही

शालिनी सिंह

यूं ही..

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मेरी ये बेबस आंखें रातों में अक्सर 
आपको ढूंढा करती हैं..
काश..
इस दुनिया में हर जगह
सिर्फ आप ही आप होते..
सोचती रहती हूं
कैसा होता वो मंजर 
जब आप सो रहे होते 
इस बिस्तर पर मेरे पास..
और मै नींद से जागकर 
आपके इस प्यारे से चेहरे को 
देखकर कुछ देर 
मन ही मन मुस्कुरा लेती..
फिर आपके बालों में हाथ फेरकर..
धीमे से सिर पर हाथ रखकर..
आपके माथे को चूम लेती..
फिर धीरे से आपको चादर ओढ़ाकर..
कुछ देर यूं ही आपका चेहरा देखते-  देखते 
आपकी  बाजू में लेटे- लेटे..
एक चैन की नींद सो जाती..

 यूं ही..

शालिनी सिंह

यूं ही..

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सारी दुनिया जीतकर जो किसी एक के आगे घुटने टेक दे..
अपने सागर से अथाह मन में जो किसी नदी की तरह 
अपने बेपरवाह मन को समेट ले..
सर्वशक्तिमान होकर भी जो किसी एक के सामने प्रेम में हार जाए..
किसी एक की मुस्कान के लिए अपना सब कुछ त्याग जाये..
पत्थर सा होकर भी किसी एक के कंधे पर सर रखकर रो जाए..
खुद अधूरा होकर भी जो किसी के जीवन को पूरा करे..
खुद कमज़ोर होकर भी किसी की ताक़त बने..
जो समझदार होकर भी किसी के प्रेम में बच्चों सा जा बने..
बिलकुल ऐसा सा प्रेम करना हैं मुझे..
 स्त्री सा नही पुरूष सा प्रेम करना हैं मुझे..

©शालिनी सिंह यूं ही..

शालिनी सिंह

यूं ही #poem

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रात्रि का पहर 
हजारों सवाल
अशांत मन
खोया हुआ एक पथिक
चले जा रहा सुकून की 
तलाश में.. यूं ही

शालिनी सिंह

यूं ही

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"मैं" ना रह जाए शेष , सर्वस्व हो अर्पण 
प्रेम का दूजा नाम ही तो हैं समर्पण यूं ही
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