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zindagiesagar
White दूर तक देखना है तुम्हें यकीनन उजाला कहीं तो होगा ठहर जाऊं तो फिर दोष किसे दूं ये बताना भी फिर तुम्हें ही होगा सफर में कोई साथ दे तो फिर चलूं ये गलतफहमी तो खुद को मिटाना होगा हवाओं का बहना सच है जैसे तुम्हें खुद को ऐसे बनाना होगा ©zindagiesagar #sunset_time दूर तक देखना है तुम्हें यकीनन उजाला कहीं तो होगा ठहर जाऊं तो फिर दोष किसे दूं ये बताना भी फिर तुम्हें ही होगा सफर में कोई सा
N S Yadav GoldMine
White विष्णुपुराण १।१७।२६) {Bolo Ji Radhey Radhey} 'पिताजी! वे विष्णु भगवान् केवल मेरे ही हृदय में नहीं बल्कि सम्पूर्ण लोकों में स्थित हैं। वे सर्वगामी तो मुझको, आप सबको और समस्त प्राणियों को अपनी-अपनी चेष्टाओं में प्रवृत्त करते हैं।' ऐसी बातें सुनकर तो राक्षसराज का क्रोध अत्यन्त भड़क गया, और वह भक्त प्रह्लाद को भयानक त्रास देने लगा। हरिनाम लेनेvवाले प्रह्लाद को विष पिलाया गया, पर्वत से गिराया गया, सर्पों से डसाया गया, आग में जलाया गया इत्यादि अनेक प्रकार से राक्षसों ने जबरदस्ती जोर-जुल्म ढहाये, किन्तु उसका कुछ भी अनिष्ट न कर सके :- जय श्री राधे कृष्ण जी.... जाको राखै साइयाँ मारि सकै नहिं कोय। बार न बाँका करि सकै जो जग बैरी होय॥ कहा करै बैरी प्रबल जो सहाय रघुबीर। दस हजार गजबल घटॺो घटॺो न दस गज चीर॥ जय श्री राम जी.... प्रबल शत्रु सामने हो तो भी सारे संसार का वार खाली चला जाता है, उसका कोई बाल भी बाँका नहीं कर सकता। भक्त पर अत्यन्त अत्याचार होने पर अन्त में खम्भे में से प्रह्लाद के प्यारे परम प्रभु को प्रकट होना ही पड़ा। ©N S Yadav GoldMine #car विष्णुपुराण १।१७।२६) {Bolo Ji Radhey Radhey} 'पिताजी! वे विष्णु भगवान् केवल मेरे ही हृदय में नहीं बल्कि सम्पूर्ण लोकों में स्थित हैं। व
Ashutosh Mishra
White हमें यकीन था तुम पर न दोगे दगा मुझे दिलाया था विश्वास तुमने भी ना साथ छोड़ेगे हम बना बैरी ये जमाना या किस्मत धोखा दे गई बनते बनते तकदीर के ,,तस्वीर ही बदल गई अल्फ़ाज मेरे✍️🙏🙏 ©Ashutosh Mishra #emotional_sad_shayari हमें यकीन था तुझ पर ना दोगे दगा मुझे दिलाया था विश्वास तुमने भी ना छोड़ेगे साथ हम बना बैरी ये जमाना या किस्मत धोखा द
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
मनहरण घनाक्षरी :- लोभ मोह माया छोडो , आपस में नाता जोड़ो । त्यागो अभी हृदय से , दुष्ट अभिमान को । नही अब सिर फोड़ो ,बैरी ये दीवार तोड़ो , चलो सब मिलकर, करो मतदान को । ये तो सब लुटेरे हैं , करते हेरे-फेरे हैं पहचानते है हम , छुपे शैतान को । मतदान कर रहे , क्या बुराई कर रहे, रेंगता है मतदाता , देख के विधान को ।।१ वो भी तो है मतदाता, क्यों दे जान अन्नदाता , पूछने मैं आज आयी , सुनों सरकार से । मीठी-मीठी बात करे , दिल से लगाव करे, आते हाथ सत्ता यह , दिखता लाचार से । घर गली शौचालय, खोता गया विद्यालय, देखे जो हैं अस्पताल , लगते बीमार से। घर-घर रोग छाया , मिट रही यह काया , पूछने जो आज बैठा , कहतें व्यापार से ।।२ टीप-टिप वर्षा होती , छत से गिरते मोती , रात भर मियां बीवी , भरते बखार थे । नई-नई शादी हुई , घर में दाखिल हुई , पूछने वो लगी फिर , औ कितने यार थे । मैने कहा भाग्यवान , मत कर परेशान , कल भी तो तुमसे ही , करते दुलार थे । और नही पास कोई , तुम बिन आँख रोई, जब तेरी याद आई , सुन लो बीमार थे ।।३ २८/०३/२०२४ महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR मनहरण घनाक्षरी :- लोभ मोह माया छोडो , आपस में नाता जोड़ो । त्यागो अभी हृदय से , दुष्ट अभिमान को । नही अब सिर फोड़ो ,बैरी ये दीवार तोड़ो , चलो
Shivkumar
हक़ीक़त को तुम और न हम जानते हैं । मुहब्बत को बस एक भरम जानते हैं । मैं क्या इसके बारे में मंज़िल से पूछूँ , थकान मेरी , मेरे क़दम जानते हैं । हमें भूल जाने की आदत है लेकिन, तुम्हे , हम , तुम्हारी क़सम जानते हैं । ये छुपना कहाँ और ये बहना कहाँ है, ये आंसू सब अपना धरम जानते हैं । आशु छलकती है क्यों आँख से हमको पता है , कहाँ सब लोग यु बिछड़ने का ग़म जानते हैं । दिया तो है मजबूर कैसे बताये उजालों की तकलीफ तो हम जानते हैं है जो भी कुछ हमें इस जहाँ में हम उसको खुदा का करम जानते हैं। ©Shivkumar #relaxation #हक़ीक़त को तुम और न हम जानते हैं । #मोहब्बत को बस एक भरम जानते हैं । मैं क्या इसके बारे में #मंज़िल से पूछूँ , #थकान म
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
घर से निकली गोपियाँ , लेकर हाथ गुलाल । छुपते फिरते हैं इधर , देख नगर के ग्वाल ।। लेकर हाथ गुलाल से , छूना चाहो गाल । आज तुम्हारी चाल का , पूरा रखूँ खयाल ।। आये कितनी दूर से , देखो है ये ग्वाल । हे राधा छू लेन दो , यही नन्द के लाल ।। हर कोई मोहन बना , लेकर आज गुलाल । मैं कोई नादान हूँ , सब समझूँ मैं चाल ।। भर पिचकारी मारते , हम भी तुझे गुलाल । तुम बिन तो अपनी यहाँ , रहती आँखें लाल ।। रिश्ता :- रिश्ता अपना भी यहाँ , देखो एक मिसाल । छुपा किसी से है नही , हम दोनो का हाल ।। रिश्ते की बुनियाद है , अटल हमारी प्रीति । क्या तोड़ेगा जग इसे , जिसकी उलटी रीति ।। रिश्ते में हम आप हैं , पति पत्नी का रूप । मातु-पिता को मानते , हैं हम अपने भूप ।। रिश्तों की बगिया खिली , तनय उसी के फूल । लेकिन उनमें आज कुछ , बनकर चुभते शूल ।। एक रंग है रक्त का , जीव जन्तु इंसान । जिनका रिश्ता ये जगत , जोड़ गया भगवान ।। रिश्ता छोटा हो गया , पति पत्नी आधार । मातु-पिता बैरी बने , साला है परिवार ।। ०७/०३/२०२४ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR घर से निकली गोपियाँ , लेकर हाथ गुलाल । छुपते फिरते हैं इधर , देख नगर के ग्वाल ।। लेकर हाथ गुलाल से , छूना चाहो गाल । आज तुम्हारी चाल का