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Jaysingh Nayak
HS KUSHAWAHA
💕 पूछा जो उसने...इश्क क्या है? हमने भी कह दिया बस एक अफवाह...जो उडती रहती है तुम्हारे और मेरे दरमियां•••||| ©HS KUSHAWAHA #mohabbat 💕 पूछा जो उसने...इश्क क्या है? हमने भी कह दिया बस एक अफवाह...जो उडती रहती है
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
कल तक जो गौरैया घर में , उड़ती रहती चूँ चूँ करती । दर्पण में मुख देख-देख कर चोंच मार कर चूँ चूँ करती ।। कल तक जो गौरैया घर में.... संग हमारे थाली से वह दाना जो चुगती रहती थी । ले जाकर अपने बच्चों को वह सुनों खिलाती रहती थी ।। कल तक जो गौरैया घर में .... हिल मिल कर सबसे रहती थी सिर काँधें बैठा करती थी । छप्पर-छप्पर उडती रहती जाने क्या-क्या वह कहती थी कल तक जो गौरैया घर में ... संग सदा ही आँगन में वह वह निशिदिन खेला करती थी । टाफी बिस्कुट साथ हमारे वह कल भी खाया करती थी कल तक जो गौरैया घर में .... २१/०३/२०२३ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR कल तक जो गौरैया घर में , उड़ती रहती चूँ चूँ करती । दर्पण में मुख देख-देख कर चोंच मार कर चूँ चूँ करती ।। कल तक जो गौरैया घर में.... संग हमार
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
संग रहे अर्धांगिनी , लेकर हाथ गुलाल । प्रीति-प्रीति में मैं करूँ, आगे अपने गाल ।। रंगों अपनी प्रीति से , तुम अब मेरे अंग । बहका-बहका मैं रहूँ , जैसे पीकर भंग ।। फाग मनाएंगे सजन , आज तुम्हारे संग । तुम बिन जीवन में नही , देखो कोई रंग ।। प्रीति रंग जबसे चढ़ा , हो गई मैं मलंग । उडती रहती संग में , जैसे डोर पतंग ।। संग तुम्हारे हो सदा , सुनो सभी त्यौहार । तुम पर ही छलके सदा , निशिदिन मेरा प्यार ।। खट पट तो होती रहे , रहे सदा जो साथ । प्रीत बढायेगी यही , छोड़ न मेरा हाथ ।। ०७/०३/२०२३ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR संग रहे अर्धांगिनी , लेकर हाथ गुलाल । प्रीति-प्रीति में मैं करूँ, आगे अपने गाल ।। रंगों अपनी प्रीति से , तुम अब मेरे अंग । बहका-बहका मैं र
Tarot Card Reader Neha Mathur
रखा रह गया प्यार ज़रा सा हल्वा था जो मां ने बनाया सभी के मन को था भाया फिर न जाने क्यों ज़रा छूट गया क्या मां को था किसीको देना बस एक कौर संभालकर रखा किस पर था उन्हे प्यार था उडेलना क्या था किसीको अपने हाथों से खिलाना था क्या वो गैया का बछड़ा या फिर चिडिया का खाना या बनना था किसी गरीब का निवाला या उस फूटपाथ के बच्चे को था खिलाना मैने भी मां के पीछे जाकर देखा आखिर था उसका राज़ जो गहरा आंखों में था अब आंसू का डेरा मैं भूली थी बाई के बेटे को खाना देना मां ने था उसे बड़े प्यार से खिलाया नही था बस एक कौर था पूरा डिब्बा पकवान के साथ था पूरा खाना भूली थी मैं घर के सहायक को खाना देना भूली थी मैं घर के सहायक को खाना देना। रखा रह गया प्यार ज़रा सा हल्वा था जो मां ने बनाया सभी के मन को था भाया फिर न जाने क्यों ज़रा छूट गया क्या मां को था किसीको देना बस एक कौर स