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Harvinder Ahuja
गुलाब सप्तमी यह गुलाब तेरे लिए है, खुद में तेरी खुशबू समेटे, इसकी हर इक पंखुड़ी, तेरी कोमलता का वर्णन करती है, यह खुद में समेटे बैठा है इक सपना, यह जीवन महकाएं की अपना, इन सपनों में ऐसे ही मत खो जाना, यह कांटे भी लिए बैठा है। ©Harvinder Ahuja # गुलाब सप्तमी
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KP NEWS HD कंवरपाल प्रजापति समाज ओबीसी for ©KP NEWS HD पितृपक्ष में पितृ धरती पर आकर अपने लोगों पर ध्यान देते हैं और उन्हें आशीर्वाद देकर उनकी समस्याएं दूर करते हैं. इस बार पितृ पक्ष की शुरुआत 29
Rishika Srivastava "Rishnit"
Shankarsingh rajput
N S Yadav GoldMine
है वासुदेव श्रीकृष्ण इसका यह मुख हिंसक जन्तुओं द्वारा आधा खा लिया गया है पढ़िए महाभारत !! 🙏🙏 महाभारत: स्त्री पर्व एकोनविंष अध्याय: श्लोक 1-17 {Bolo Ji Radhey Radhey} 📜 गान्धारी बोलीं- माधव। यह मेरा पुत्र विकर्ण, जो विद्वानों द्वारा सम्मानित होता था, भूमि पर मरा पड़ा है। भीमसेन ने इसके भी सौ-सौ टुकड़े कर डाले हैं। मधुसूदन। जैसे शरतकाल में मेघों की घटा से घिरा हुआ चन्द्रमा शोभा पा रहा है, उस प्रकार भीम द्वारा मारा गया विकर्ण हाथियों की सेना के बीच में सो रहा है। 📜 बराबर धनुष लिये रहने से इसकी विशाल हथेली में घट्ठा पड़ गया है। इसके हाथों में इस समय भी दस्ताना बंधा हुआ है; इसलिये इसे खाने की इच्छा बाले गीध बड़ी कठिनाई से किसी किसी तरह काट पाते हैं। माधव। उसकी तपस्विनी पत्नी जो अभी बालिका है, मांस लोलोप गीधों और कौओं को हटाने की निरंतर चेष्टा करती है परंतु सफल नहीं हो पाती है। 📜 पुरुष प्रवर माधव। विकर्ण नवयुवक देवता के समान कांतिमान, शूरवीर, सुख में पला हुआ तथा सुख भोगने के योग्य ही था; परंतु आज धूल में लोट रहा है। युद्ध में कर्णी, नालीक और नाराचों के प्रहार से इसके मर्मस्थल विदीर्ण हो गये हैं तो भी इस भरतभूषण वीर को अभी तक लक्ष्मी (अंगकान्ति) छोड़ नहीं रही है। 📜 जो शत्रु समूहों का संहार करने वाला था, वह दुर्मुख प्रतिज्ञा पालन करने वाला संग्राम शूर भीमसेन के हाथों मारा जाकर समर में सम्मुख सो रहा है। तात् श्रीकृष्ण इसका यह मुख हिंसक जन्तुओं द्वारा आधा खा लिया गया है, इसलिये सप्तमी के चन्द्रमा की भांति सुशोभित हो रहा है। 📜 श्रीकृष्ण। देखो मेरे इस रणशूर पुत्र का मुख कैसा तेजस्वी है? पता नहीं, मेरा यह वीर पुत्र किस तरह शत्रुओं के हाथ से मारा जाकर धूल फांक रहा है। सौम्य। युद्ध के मुहाने पर जिसके सामने कोई ठहर नहीं पाता था उस देवलोक विजयी दुर्मुख को शत्रुओं ने कैसे मार डाला? 📜 मधुसूदन। देखो, जो धनुर्धरों का आदर्श था वही यह धृतराष्ट्र का पुत्र चित्रसेन मारा जाकर पृथ्वी पर पड़ा हुआ है। विचित्र माला और आभूषण धारण करने वाले उस चित्रसेन को घेरकर शोक से कातर हो रोती हुई युवतियां हिंसक जन्तुओं के साथ उसके पास बैठी हैं। 📜 श्रीकृष्ण। एक ओर स्त्रियों के रोने की आवाज है तो दूसरी ओर हिंसक जन्तुओं की गर्जना हो रही है। यह अद्भुत द्श्य मुझे विचित्र प्रतीत होता है । माधव। देखो, वह देवतुल्य नव-युवक विविंशति, जिसकी सुन्दरी स्त्रियां सदा सेवा किया करती थीं, आज विध्वस्त होकर धूल में पड़ा है। 📜 श्रीकृष्ण। देखो, बाणों से इसका कबच छिन्न-भिन्न हो गया है। युद्ध में मारे गये इस वीर विविंशति को गीध चारों ओर से घेरकर बैठे हैं । जो शूरवीर समरांगण में पाण्डवों की सेना के भीतर घुसकर लोहा लेता था, वही आज सत्पुरुषोचित वीरशैया पर शयन कर रहा है। 📜 श्रीकृष्ण। देखो, विविंशति का मुख अत्यंत उज्ज्वल है, इसके अधरों पर मुस्कराहट खेल रही है, नासिका मनोहर और भौहें सुन्दर हैं यह मुख चन्द्रमा के समान शोभा पा रहा है। ©N S Yadav GoldMine #WoRaat है वासुदेव श्रीकृष्ण इसका यह मुख हिंसक जन्तुओं द्वारा आधा खा लिया गया है पढ़िए महाभारत !! 🙏🙏 महाभारत: स्त्री पर्व एकोनविंष अध्याय:
Anjana Gupta Astrologer
शीतला सप्तमी की हार्दिक शुभकामनाएं। नाम शीतला सप्तमी, पूजा करे अष्टमी। यह भ्रम आज तक ज्योतिषी नहीं तोड़ सके, तो पञ्चाङ्ग कि बात कौन मानेगा। शीतला सप्तमी की पूजा होती है, महिलाएं अष्टमी पूजती है। फिर ज्योतिषी कहते हैं, भद्रा इसमें त्याग है। अब बताओ देवी स्वयं ही भद्रा है। भद्रा में उसकी पूजा होनी चाहिए, लाभ मिलता है।परन्तु वहां भी न कार है। [ सूर्य की एक किरण का नाम भद्रा है, जो सूर्य सप्तमी को आती है। इसलिए उसका नाम शीतला सप्तमी रखा। उसकी सवारी गर्भद है। गधे की चाल से पृथ्वी लोक पर आती है। गधी के एक बूंद दूध की जन्म लेते ही बालक को दे दी जाय, माता के दूध पिलाने से पूर्व तो शीतला का प्रकोप कभी नहीं होगा। शीतले त्वं जगन्माता शीतले त्वं जगत् पिता । शीतले त्वं जगद्धात्री शीतलायै नमो नमः।। इतनी दिन गर्म खाते थे, गर्म स्वभाव होगया था, आज ठंडा खाओ, ठंडे स्वभाव के हो जाओ। शीतला देवी आप सभी की रक्षा करे। अंजना ज्योतिषाचार्य शीतला सप्तमी
manoj kumar jha"Manu"
भागीरथि सुखदायिनि मातस्तव जलमहिमा निगमे ख्यातः । नाहं जाने तव महिमानं पाहि कृपामयि मामज्ञानम् ॥2॥ हे भागीरथि ! तुम सब प्राणियों को सुख देती हो, हे माता ! वेद और शास्त्र में तुम्हारे जल का माहात्म्य वर्णित है, मैं तुम्हारी महिमा कुछ नहीं जानता, हे दयामयि ! मुझ अज्ञानी की रक्षा करो। माँ गङ्गा तुम्हें बारम्बार नमस्कार है। गङ्गा सप्तमी की हार्दिक शुभकामनाएं