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अल्पेश सोलकर
' अक्षदा ' कोणाला फेकूनही मारू शकत नव्हतो... .. . आज ' ती ' पाटावर उभी होती... — % & ' अक्षदा ' कोणाला फेकूनही मारू शकत नव्हतो... .. . आज ' ती ' पाटावर उभी होती... #alpeshsolkar
Devanand Jadhav
दीप अमावस्या ©Devanand Jadhav 🪔दीप अमावस्या🪔..... 🔅हा हा म्हणता श्रावण जवळ येवुन ठेपला पण. गुरुवार दिनांक २८ जुलै रोजी गताहारी अमावास्या आहे. याला 'दीप अमावास्या' असे प
yogesh atmaram ambawale
उंच बांबूची काठी, त्याला सुंदर साडी. साडीवर तांब्या चांदीचे, पाने कडुलिंब,आंब्याचे. साखरेची माळ, आणि फुलांचा हार. गुढी जवळ सुंदर रांगोळी, पाटावर गुढीचा भार. तुम्हा सर्वांना,मराठी नववर्षाच्या, आणि गुढीपाडव्याच्या शुभेच्छा फार. शुभ प्रभात लेखक मित्र आणि मैत्रिणींनो आज गुढीपाडवा म्हणजेच मराठी नववर्ष दिन सर्वांना वाय क्यु कडून गुढीपाडव्याच्या हार्दिक शुभेच्छा...! हा
रजनीश "स्वच्छंद"
किस्से अनगिन मैं गढ़ता हूँ। कहानी एक सुनाने को, किस्से अनगिन मैं गढ़ता हूँ। दुख की बदली, आंखों का नीर, बन मीन मैं पढ़ता हूँ। सबल-निर्बल की चौड़ी खाई ले शब्द मैं पाटा करता हूँ, आंसू जो हैं भाप बने, आंसू आंखों से छीन मैं लड़ता हूँ। सुंदर स्वप्न पे हक सबका, जागीरदार बचा है कोई नहीं, उनके हक की ही ख़ातिर, प्रयत्न हो दीन मैं करता हूँ। प्रेम का धागा उलझा कहाँ है, मनुज मनुज भेद है क्यूँ, धागा स्वेत और ले कुरुसिया, सुंदर दिन मैं कढ़ता हूँ। धरा जो सबकी जननी है, धरा पे सबका हक तो हो, स्वम्बू से कर शीतल सबको, बंजर जमीन मैं तरता हूँ। पेट पीठ चिपके थे, फुटपाथों पर सोया भविष्य मिला, मज़हब मेरा कोई नहीं, फिर क्यूँ हो हींन मैं गड़ता हूँ। तुम सबल हुए महलों में रहे भौतिकता से लबरेज़, देख विषमता दुनिया की, ले आत्मा मलीन मैं बढ़ता हूँ। ©रजनीश "स्वछंद" किस्से अनगिन मैं गढ़ता हूँ। कहानी एक सुनाने को, किस्से अनगिन मैं गढ़ता हूँ। दुख की बदली, आंखों का नीर, बन मीन मैं पढ़ता हूँ। सबल-निर्बल की चौ
रजनीश "स्वच्छंद"
विरोधाभास।। मैं मर्त्यलोक का वासी हूँ, जीवन की बात सुनाता हूँ। क्षणभंगुर, अनन्त नहीं, बस मन की बात सुनाता हूँ। क्षुधा निवाला मेरी कहानी, हर भूखा एक नायक है। शब्दबाण लेखन में भर, जन जन की बात सुनाता हूँ। धरा जो उसकी जननी है, एक हिस्सा उसका भी हो, एक टुकड़े की नहीं, मैं कण कण की बात सुनाता हूँ। जिन हाथों ये महल बने, भौतिकता का आधार रहे। उनके कष्ट-आंसू और उनके क्रंदन की बात सुनाता हूँ। इस भोग-विलासी दुनिया के आधार रहे जो रक्त-कण, सूखी उनकी जमीं और उनके गगन की बात सुनाता हूँ। रौंदे गए जो कुसुम-कली, पतझड़ का सालों मौसम है, बंजर धरा में पसरे-पले उस उपवन की बात सुनाता हूँ। भोग लगाया ईश्वर को, मज़ारों को चादर से पाटा है, पीठ से चिपके पेट और निर्वस्त्र तन की बात सुनाता हूँ। कुछ बासन्ती अंधे ऐसे जिनको पतझड़ का भास नहीं, उनको उनकी ही बस्ती की रुदन की बात सुनाता हूँ। आर्त्तनाद से गूंजी धरती, कानो में तेल डाल जो सोये थे, ले लेखनी भर स्याही, हक-गर्जन की बात सुनाता हूँ। ©रजनीश "स्वछंद" विरोधाभास।। मैं मर्त्यलोक का वासी हूँ, जीवन की बात सुनाता हूँ। क्षणभंगुर, अनन्त नहीं, बस मन की बात सुनाता हूँ। क्षुधा निवाला मेरी कहानी, ह
sandy
#भूतयोनी रात्रीच्या काळोखात ....मंद दिव्याच्या प्रकाशात....मी चालले होते.. काळोख होताच...कारण मधले दिवेच गेले होते.... वारा सुटला होता...पा
sandy
परवा गल्लीतून जात होते. साठीतील एक आजीबाई त्यांच्या नातवंडांत रमल्या होत्या. चार-पाच वर्षांची गोजिरवाणी मुले त्यांच्या अवतीभवती बसलेली. कोणी
sandy
आयुष्य नावाचे कांदेपोहे..#BreakTheStereotype काही दिवसांपूर्वी सहज आपलं घरी बसून कंटाळले आणि बाळ झाल्यापासून स्वतःसाठी असा वेळच मिळत नव्हता