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खराब अल्फाज
लाज शर्म सब बेच भीख मांगने लगा हूँ, दो वक्त की रोटी खाने के लिये गिड़गिड़ाने लगा हूँ। धूप ना छाँ देख गाड़ी के पीछे भागने लगा हूँ, 1 रुपया के चक्कर में नंगे पांव रोड पे खड़ा हूँ। कार साफ कर दिया है साहेब! सदा खुश रहो ये आशीर्वाद देने लगा हूँ। क़िस्मत में तो लिखा भीख मांगना, अब क़िस्मत को कौसने लगा हूँ। Green सिगनल होने वाला है साहेब! अब हाथ फैला के 1 रुपया मांगने लगा हूँ। कार स्टार्ट मत करना साहेब! अपने बच्चो के लिये 1 रुपया मांगने लगा हूँ। वो भूखे ना सोय आज रात इसलिये आपसे विनती करने लगा हूँ। ना दो साहेब 1 रुपया आप, खुश रहो हमेसा आप ये दुआ देने लगा हूँ। ये लखनऊ के हजरतगंज के चौराहा की कहानी है जो हर रोज़ हर पल होता है वो आज बयां करा है #shivamkhare #khrab_alfaj #NOJOTO
The Half Mask Writer
मारा गया मोहब्बत में, नफ़रत के बाशिंदों से अब चौराहे पर लटकता ज़िस्म देखकर रूह भी उसकी रोती होगी #चौराहा
#ब्रह्म
★★चौराहा ★★ चौराहा देखा तो आया मन में एक बिचार तुम तो यार बना देते हो एक राह को चार साथ-साथ जो चले वटोही यहाँ बिछड़ जाते हैं कुछ दायें मुड़ जाते तो कुछ बायेँ मुड़ जाते हैं इस समाज को सदा विभाजित ही करना है आता सीधी राह चले मानव यह तुम्हें नहीं है भाता कुछ बेचारे पथिक तुम्हें पा भ्रम में पड़ जाते हैं किंकर्तव्यविमूढ देखते पाँव अटक जाते हैं सही राह को चिन्हित जो नर जरा न कर पाते हैं मंजिल उनकी कहीं और वे कहीं पहुँच जाते हैं कितना अच्छा होता सब नर सीधे रस्ते चलते एक दूजे की बाँह पकड़ते गिरते और सँभलते मेरी बात सुनी,,,, चौराहा थोड़ा हँसकर बोला तुम सरसरी निगाह डालते अन्तर नहीं टटोला गर मेरा अस्तित्व न हो तो मंजिल नहीं मिलेगी मानव के कुण्ठित समाज की दिशा नहीं बदलेगी भटके राही यहाँ मिले हैं कुछ दूरी तय करके जाने कितने जीवन बदले सुखद मोड़ लेकर के नित्य नवीन मोड़ ही तो है जीवन की परिभाषा परिवर्तन का बोध दे रहा दिल को बहुत दिलासा नकारात्मक हावी तुम पर ऐसी सोच मढे़ हो बिन सोचे समझे कुतर्क बस कितने दोष गढ़े हो तरह तरह के पथ आकर के जहाँ एकत्रित होते राही वहाँ नियम पालन कर स्वयं नियत्रिंत होते सुखद दुखद परिणाम सर्वदा मानव जीवन में हैं बटवारे में नहीं हमारा जन्म संगठन में है सकारात्मक सोचा जिसने उसने हमें सराहा चार राह आपस में मिलती तब बनता चौराहा ©अरुण ©#ब्रह्म #चौराहा #zindagikerang
PANKAJ KUMAR SINHA
*मैं शहर का प्रसिद्ध पुराना चौराहा हूं* आज खड़ा विवस , लाचार कराहा हूं। ज़िन्दा शहर में एकमात्र वाशिंदा हूं। पत्ते में बन्धे पान और कुल्हड़ की चाय का चौपाल हूं। सुबह-शाम स्कूली बच्चों का शिक्षक और अभिभावक हूं। आए- गये ,छुटे भटके यात्रियों का विश्वसनीय पता हूं। बेकार , साहुकार , जेबकतरों और वेश्याओं का रोजगार हूं । फलो-सब्जियों,गरम जिलेबियो , पानी- पुरी और फूलों का व्यापार हूं। मजदूरों, मछुआरों, वेघर श्वानो का एकमेव घरौंदा हूं। मन्दिरों की दीवार, गिरजाघरों की छत और मस्जिदो का अज़ान हूं। **मैं शहर का प्रसिद्ध पुराना चौराहा हूं** पुराना चौराहा
Chandan Ki kalam
गिनती पूछो उससे वो रोज़ कितने हसींनों को देख लेता हैं वो रोज़-ब-रोज़ चौराहों पर जा अपनी ऑंखें सेंक लेता हैं ©Chandan Ki kalam शायरी #हसींनों #चौराहा
USM Blogs
दिल्ली तो उनको याद रहा लखनऊ से निस्बत तोड़ गए वायदे की ना कोई लाज रखी तहज़ीब से मुंह वो मोड़ गए dilli to unko yad raha lucknow se nisbat tod gaye wayde ki na koi laaj rakhi tehzeb se munh wo mod gaye #लखनऊ