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चारण गोविन्द
SURAJ आफताबी
इक लब की दूजे लब से अनन्त मीलों की दूरी साँसों की महक जैसे सब्जी के छौंक में मेथी कसूरी सोचा तो था ये सब तेरी आँखों से काजल चुराकर लिखते गर न मिलती स्याही तो होठों की लाली में डुबाकर लिखते ! मगर फिर सादा सरल स्मित रेखा में क्लिष्ट उलझाव हुआ साँसों से जो साँस टकराई फिर साँसों में भी शिष्ट ठहराव हुआ ये मेरी कल्पना से परे कि कैसे वो अदभुतता हो परिभाषित त्वचा पर जिसके लावण्य उतरा हो चंदन घिसते - घिसते नहीं तो सोचा था घूँघट भी माथे का कुमकुम चुराकर लिखते गर न मिलती स्याही तो होठों की लाली में डुबाकर लिखते ! नकफूल में हया के मूँगे की मीठी मँजूरी हिवड़े के धणी के इंतजार में हीना से लिपटी अँजुरी उक्त भावों को चलो मै अनुपम श्रृंगार बनाकर लिख दूँ बहुत ढूँढ़ ली स्याही चलो होठों की लाली में डुबाकर लिख दूँ ! कवि के भाव... 😊 लावण्य - सुन्दरता, रूप नकफूल - नाक का आभूषण हिवड़ा - दिल धणी - मालिक #yqdidi
CHOUDHARY HARDIN KUKNA
थाली भरकर ल्याई रै खीचड़ौ, ऊपर घी की बाटकी, जीमो म्हारो श्याम धणी, जिमावै बेटी जाट की। बाबो म्हारो गांव गयो है, ना जाने कद आवैलो, ऊके भरोसे बैठयो रहयो तो, भूखो ही रह जावैलो। आज जिमाऊं तैने रे खीचड़ो, काल राबड़ी छाछ की, जीमो म्हारो श्याम धणी, जिमावै बेटी जाट की थाली भरकर ल्याई रै खीचड़ौ, ऊपर घी की बाटकी …. बार-बार मंदिर न जुड़ती, बार-बार में खोलती, कईया कोनी जीमे रे मोहन, करडी- बोलती। तू जीमे तो जद मैं जिमूं, मानू ना कोई लाट की, जीमो म्हारो श्याम धणी, जिमावै बेटी जाटी की थाली भरकर ल्याई रै खीचड़ौ, ऊपर घी की बाटकी …. परदो भूल गयी सांवरियो, परदो फेर लगायो जी, सा परदो की ओट बैठ के, श्याम खीचड़ौ खायो जी, भोला-भाला भगता सूं, सांवरिया कइंया आंट की जीमो म्हारो श्याम धणी, जिमावै बेटी जाट की थाली भरकर ल्याई रै खीचड़ौ, ऊपर घी की बाटकी …. भकित हो तो करमा जैसी सावरियों घर आवेलो, भकित भाव से पूर्ण होकर हर्ष- गुण गावेलो। सांचो प्रेम प्रभु से होतो मूरत बोले काठ की, जीमो म्हारो श्याम धणी, जिमावै बेटी जाट की थाली भरकर ल्याई रै खीचड़ौ, ऊपर घी की बाटकी..... ©CHOUDHARY HARDIN KUKNA थाली भरकर ल्याई रै खीचड़ौ, ऊपर घी की बाटकी, जीमो म्हारो श्याम धणी, जिमावै बेटी जाट की। बाबो म्हारो गांव गयो है, ना जाने कद आवैलो, ऊके भरोस
Harishanker