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Stories related to गजल छोड़ दो साथ गैरों का

Ashok Verma "Hamdard"

गजल

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White ग़ज़ल

सुना है कि नफ़रत करते हैं हम से,
नफ़रत से उनके सुकून मिलता है।

हमारी मोहब्बत जो गुनाह ठहरी,
तभी तो हर दर्द का जूनून मिलता है।

चलो दूर होकर दुआ हम करेंगे,
लगता है उन्हें भी सुकून मिलता है।

वफ़ा की सज़ा जब से मुक़र्रर हुई है,
तभी तो हर जुर्म में कानून मिलता है।

हमारे ही लहू से जलते चराग,
मगर नाम उनका फ़लून मिलता है।

— अशोक वर्मा हमदर्द

©Ashok Verma "Hamdard" गजल

Yashpal singh gusain badal'

#गजल

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White  जज्बात मुझसे दिल के संभाले नहीं गए,

आँखों में भरे अश्क थे निकाले नहीं गए,

खुशियां थी अमन था चैन था मुहब्बत थी,

सब था मगर वक़्त पर उछाले नहीं गए ।

तू गैर था मगर फिर भी अपना सा लगा था,

अपनों के दिए जिगर से छाले नहीं गए।

इक साया सा रहा बनके सालों यूं हमसफ़र,

बस इस स्याह रूह के इतर उजाले नहीं गए।

जीने का हुनर आता जो होती उम्मीद भी,

थे मौके बहुत मुझसे मगर खंगाले नहीं गए।

यशपाल सिंह ,"बादल"

©Yashpal singh gusain badal' #गजल

CHOUDHARY HARDIN KUKNA

#Thinking #गजल आज का विचार

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White 
आग किसने लगाई ज़रा ढ़ूँढ़ये 
कौन गद्दार है देश का ढ़ूँढ़ये 

वो यहाँ से कहाँ लापता हो गऐ 
कत्ल करके जो भागे ज़रा ढ़ूँढ़ये 

क्या पता अलगू जुम्मन कहाँ हैं छुपे 
इस वतन में वही ऐकता ढ़ूँढ़ये 

फिर रहे बम के गोले लिये हाँथ में 
खात्मा हो सके वो दवा ढ़ूँढ़ये 

बे सबब और को क्यों सताते हैं वो 
सोचकर कोई अच्छी सजा ढ़ूँढ़ये 

छोड़ सकते नहीं हम वतन को कभी 
नाम इतिहास में तो ज़रा ढ़ूँढ़ये 

और इसके सिवा काम कुछ भी नहीं 
आप तो बस हमारी जफ़ा ढ़ूँढ़ये 

नफरतों का चलन रोज़ बढ़ने लगा 
कौन ऐसा किये जा रहा ढ़ूँढ़ये 

हाल "हरदीन" वतन का ये कैसे हुआ 
क्या वजह और किसकी खता ढ़ूँढ़ये 

हरदीन कूकना 
मकराना, राजस्थान

©CHOUDHARY HARDIN KUKNA #Thinking #गजल  आज का विचार

MSA RAMZANI

गजल

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मेरी सांसों को हवाओं में बिखर जाना है, 
जिस्म को खाक के तूदो में उतर जाना है

उसका सिद्दत से मुझे चाहना बतलाता है, 
चढते दरिया को बहुत जल्द उतर जाना है,

दूर रहने का इरादा कभी मिलने की तडप
यह समझ में नहीं आता कि किधर जाना है

छत पे फैली हुई इस धूप को मालूम नहीं 
दिन के ढलते ही दीवारों में उतर जाना है

प्यार करना कोई आसां नहीं है, रमजानी 
गहरे पानी के समन्दर में उतर जाना है,
28/10/15

©MSA RAMZANI गजल

MSA RAMZANI

गजल

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तेरे ही रूप को आखों में भर रहे है हम 
तू ही बता कि कोई भूल कर रहे है हम।

सफर तमाम हुआ जब तो यह ख्याल आया 
कि एक उम्र न जाने किधर रहे है हम।

बड़े अदब से जो झुक कर सलाम करता है 
उस शख्स से क्यूं आज डर रहे है हम।

जिधर भी देखे कही आद‌मी नहीं मिलता 
ये कैसा शहर है जिससे गुजर रहे है हम।

करो न रंज तुम्हारा जो साथ न दे सके 
खुद अपने आप के कब हमसफर रहे है हम।

खुद अपने आप से गाफिल रहे मगर रमजानी 
तुम्हारी याद में कब बेखबर रहे है हम।
4/10/15

©MSA RAMZANI गजल

MSA RAMZANI

गजल

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पल में दूर हो जाती है 
जात अधूरी हो जाती है

आखों में नींद नहीं आती 
रात पूरी हो जाती है

पहले तो होती है चाहत 
फिर मजबूरी हो जाती है

कुछ लोगों की पल भर मे 
ख्वाहिशे पूरी हो जाती है

हद से प्यार गुजर जाये तो 
अक्सर दूरी हो जाती है
8/10/15

©MSA RAMZANI गजल

MSA RAMZANI

गजल

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White  मुन्तजिर सब मेरे जवाल के है 
मेरे अपने भी क्या कमाल के है

दोस्तो को समझ नहीं पाया 
ये सबब ही मेरे मलाल के है

एक दिन में चमन नही खिलता 
जख्म ये जाने कितने साल के है

खुश्बु एक चारसू है बिखरी हुई 
गालिबन दिन यही विसाल के है

इश्क बदनाम मुफ्त में ही हुआ 
जलवे सब हुस्न और जमाल के है

रंग तहजीब और जबान अलग 
पंछी लेकिन सब एक ही डाल के है

तेरी यादो का शुक्रिया ऐ दोस्त 
हिज्र में भी मजे विसाल के है

बरकते तो है लाजमी रमजानी 
मेरे पैसे भी तो हलाल के है
6/8/15

©MSA RAMZANI गजल

MSA RAMZANI

गजल

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White जमाने वालो से मुझे सदा बचा के रखो। 
किसी ग्लाफ के नीचे मुझे छुपा के रखो।।

इसी तरफ से कोई आज आने वाला है।
इसी मुंडेर पे दीपक कोई जला के रखो।।

तुम्हारी शर्म ही हुस्न व अदा का जेवर है।
 हया भी कहती है, आंखो को हो तुम छुपा के रखो।।

तुम्हारा घर ही तुम्हारे लिए वो जन्नत है।
बड़े सलीके से इस घर को तुम सजा के रखो।।

बडे बडे भी तो रहते है आजिजि से यहां।
अना को तुम भी रमजानी इक तरफ हटा के रखो।।
24/10/15

©MSA RAMZANI गजल

Nitin Pathak

Mohan Sardarshahari

# गजल

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Unsplash दोस्तों से मुश्किल है हकीकत छुपाना 
जैसे हवा से अलग रवानी को रखना। 

जिंदगी के अनुभव बेशक अलग-अलग होंगे 
मुश्किल नहीं मगर एक दूजे की कहानी समझना। 

इशारों में समझाना बहुत कर लिया 
चलो दोस्तों से करते हैं वही व्यवहार बचकाना। 

यदि कभी कुछ सुनाना पड़े दोस्तों को 
बस याद उनकी एक-एक शैतानी दिलाना। 

मिलकर यदि किसी दोस्त से छलक जाए आंसू 
शाम को उड़ा देना उनको तेरे नाम के पैमाना। 

देखी होंगी दशकों में कई नायाब इमारतें तूने 
होना हो रूबरू जवानी से, बार-२ तेरे कॉलेज जरूर जाना।।

©Mohan Sardarshahari # गजल
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