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Kundan Shah
Deepa Kandpal
❣️"फुलदेही पर्व"❣️ बच्चों की टोली मचाते हुए हल्ला फूलों की करने पहुंचे है आज हमारे घर वर्षा रंग बिरंगे सुंदर फूल लेकर पहुंचे जो आज हमारे घर गांव के द्वार वो नन्हें प्यारे से बच्चे फूलों को बरसाते हुए "फूलेदई छम्मा देई दैणी द्वार भरी भकार ये देली स बारंबार नमस्कार पूजैं द्वार बारंबार फूले द्वार" खुशी से लोक गीत गाते मिठाइयां गुड़ चावल अपनी भेंट लेते हुए हर्षोल्लास आनंद के साथ एक देहली से दूसरे देहली पर फूलों को बरसाकर बसंत आगमन की खुशी में उत्तराखंड लोक पर्व फूलों का त्योहार फुलदेही पर्व मनाते है आज !! "मेरे शब्द"✍️🙏 दीपा कांडपाल😊🌹 ©Deepa Kandpal उत्तराखंड के लोक पर्व फूल देही पर्व की हार्दिक शुभ मंगलकामनाएं💐💐🌹❣️ #Flower #फुलदेही #uttrakhand #दीपाकांडपाल #मेरेशब्द #onlinepoetry #Hind
Abeer Saifi
ये रास्ते पे पानी क्यूँ है, नाला फूटा मालूम पड़ता है। चप्पल बगल में दबा ली जाती है, पाँव धोए जा सकते हैं किंतु चप्पल का चमड़ा फूल जाएगा । . . Full story👇👇👇👇 वह चला आ रहा था जेठ की तपती दुपहरी में बीड़ी सुलगाते , देह पर एक बदरंग नीली कमीज़, और मटमैली धोती पर चमकदार चमड़े की नई चप्पल । मानो लू के
Abeer Saifi
ये रास्ते पे पानी क्यूँ है, नाला फूटा मालूम पड़ता है। चप्पल बगल में दबा ली जाती है, पाँव धोए जा सकते हैं किंतु चप्पल का चमड़ा फूल जाएगा । . . Full story👇👇👇👇 वह चला आ रहा था जेठ की तपती दुपहरी में बीड़ी सुलगाते , देह पर एक बदरंग नीली कमीज़, और मटमैली धोती पर चमकदार चमड़े की नई चप्पल । मानो लू के
Shristi Sahu✨
"जन्नत का सिंहासन" 💎 (पूरी रचना caption में पढ़ें) ✨ Collab with this #rapidfire prompt by using the hashtag #cw3432poem Best entries posted before 9 pm IST will be highlighted. #cartoonsworl
Divyanshu Pathak
भावनाओं के स्पंदन हृदय को पुलकित कर प्रेम के बसंती गुलाल से तन मन को रंग डालते है ! प्राप्त कर एक दूसरे के अपनत्व का आलिंगन द्रवित हो द्वैत के सिद्धांत एक होकर रह जाते है ! 😊💕#good evening💕😊 : नकल में मन प्रधान बनता है। प्रवाह के अनुसार कर्म करने लग जाता है। बुद्धि अपने हित के अनुपात में कर्म तय करती है। महर्षि
Aprasil mishra
" हम और अहमियत " """हम और अहमियत """ हमारी निरस स्थितप्रज्ञता हमारी परिस्थितिमूलक साधना का प्रवर परिणाम है, हमसे एकांश सरसता की प्राप्
vishnu prabhakar singh
यह झगड़ा नहीं भूलेगा मैं लचर हूँ, लाचार भी हूँ मौत देख रहा हूँ जवाब देही का दुःख है अपने किये का खेद है इसलिए सहायता को तरस रहा हूँ क्या करूँ, कोई बिना कहे समझता ही नहीं। क्या सबके अपने स्वार्थ हैं तो, यह झगड़ा नहीं भूलेगा पर, मैं स्वार्थी नहीं हूँ मुझे सबका स्मरण है बस, स्वयं का नहीं है भविष्य का नहीं है क्या करूँ, भविष्य का दिशा निर्देश नहीं मिला। आज भी मैं अभ्यासी हूँ लेकिन, यह झगड़ा नहीं भूलेगा क्योकिं, अन्य के बनावट को मानना होगा लचर होते हुए, लाचार भी होना होगा केवल तुम अपनी राह चलोगे कोई तुम्हारे साथ नहीं चलेगा क्या करूँ, मैं भी अकेला जाऊंगा। घमण्डी या स्वभिमानी❓ यह झगड़ा नहीं भूलेगा मैं लचर हूँ, लाचार भी हूँ मौत देख रहा हूँ जवाब देही का दुःख है अपने किये का खेद है इसलिए सहायता को
Alok Vishwakarma "आर्ष"
पागलपन के बिना हमारा प्यार अधूरा लगता है, बिन तेरे अपनेपन के संसार अधूरा लगता है वो बेवज़ह की बातों में हँसना रोना मेरे प्रियतम चंचलता में चिर चेतन थिर सार अधूरा लगता है प्रातः प्रेम की वादी में गुँजन वृन्दा के गीतों का, अक्षर की पयधारा का विस्तार अधूरा लगता है जीवन का हर क्षण तुमसे मधुरिम होता मेरे प्रियतम, नद्य सलिल के मिलन का नवश्रृंगार अधूरा लगता है "अधूरापन" यूँ तो अधूरा कुछ भी नहीं, नियती के निधान से सबकुछ पूरा ही है । पर यदि मुझे देह और तुम्हें देही मानें, तो हमारे मिलन के बिना सबकुछ
Alok Vishwakarma "आर्ष"
तन सुंदरता एक तत्व है, मन भी सुंदर होना होगा हँसना गर उन्मुक्त गगन में, भूतल गिर कर रोना होगा अर्ध ऊर्ध्व के प्लावन में, जीवन फलदायी होता है मनुष्य दाम कितना ही भर ले, सिधर प्राण सब खोता है शाश्वत सुख है भारत का, जो तन सौंदर्य न सीमित है मन वच कर्मण एक बनाये, पीयूष धार से सींचित है वन्दन प्रेम तपस विभ हित, पृथ गगन अगिन वय पानी बन चंचल मन धृत जिवन समर में, ब्रह्मविद्या तर ज्ञानी बन "देह और देही" एक अनूठी कविता... #alokstates #essentiallydeep #spirituality #enlightenment #oneness_of_souls #yqbaba #yqdidi #कविता