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Vandana
शब्दों का समूह बन जाता है एक सुरीला गीत,,,, पंछियों के स्वरों में भर देता है संगीत,,,, भावनाओं की बांसुरी बन,,, हो जाता मन का मीत,,, किसी कवि के शब्द बन,,, रचना में भर देता प्राण,,,, चित्रकार के रंगों में भिगोयी तस्वीर,,, बन जाता प्रशंसा का स्वर,,, कलाकार की रंगमंच में फूंक देता जान,,, दो प्रेमियों के प्रेम का माध्यम बन जाता,,, ममतामयी शब्दों का आंचल बन जाता,,, शब्दों का समूह जीने की वजह बन जाता,,, भाषा का गूढ़ विज्ञान कहलाता,,,, आदि मानव से सुसंस्कृत मानव बन जाता, "शब्दों का समूह,,, #शब्दों का समूह #शब्दों_की_माला
tanuja mishra
रिश्तों में मिठास हो फिर उनमे विश्वास हो होली तो फिर मन का पर्व है जब ऐसे रिश्ते पास हो होली की हार्दिक शुभकामनाएं ©tanuja mishra होली _ कई रंगों का समूह #colours
Vishal Vaid
तेरे कूचे में जो बीमार नज़र आते है मुझ को सारे ही ये फनकार नज़र आते हैं मैं तेरी सोच में निकलूं जो कभी सहरा में साथ में चलते सौ अश्ज़ार नज़र आते हैं तूने जो चूमा है इन आंखो के कशकोलों को खोटे सिक्के मुझे दीनार नज़र आते हैं वो फलक जिसमे सितारें ही जड़े रहते थे हिज्र में देखूं तो बस खार नज़र आते हैं नींद से जगने का दिल करता नही है मेरा ख्वाब तेरे जो लगातार नज़र आते हैं जब ये जिंदा थे,दर-ओ-बाम न थे हासिल, पर दफ़न कब्रो में जमींदार नजर आते हैं इश्क से पहले सुख़न-वर लगे, सब को नीरस फिर यही लोग मज़ेदार नजर आते हैं अशजार ***पेड़ो का समूह कश्कोल***भिक्षा पात्र सुखनवर*** शायर, कवि
Vishal Vaid
तेरे कूचे में जो बीमार नज़र आते है मुझ को सारे ही ये फनकार नज़र आते हैं मैं तेरी सोच में निकलूं जो कभी सहरा में साथ में चलते सौ अश्ज़ार नज़र आते हैं तूने जो चूमा है इन आंखो के कशकोलों को खोटे सिक्के मुझे दीनार नज़र आते हैं वो फलक जिसमे सितारें ही जड़े रहते थे हिज्र में देखूं तो बस खार नज़र आते हैं नींद से जगने का दिल करता नही है मेरा ख्वाब तेरे जो लगातार नज़र आते हैं जब ये जिंदा थे,दर-ओ-बाम न थे हासिल, पर दफ़न कब्रो में जमींदार नजर आते हैं इश्क से पहले सुख़न-वर लगे, सब को नीरस फिर यही लोग मज़ेदार नजर आते हैं अशजार ***पेड़ो का समूह कश्कोल***भिक्षा पात्र सुखनवर*** शायर, कवि
Lokesh Mishra
बड़ा सा दिल समुंदर सा रखो, बसा कर उसमे लोगों को,जहाजों सा रखो, हर तरह के लोग शामिल हो जिसमे, मिलती हैं जैसे समुंदर में नदियां, प्यार से बसा कर सबको,समागम सा रखो, बड़ा सा दिल समुंदर सा रखो, बसा कर उसमे लोगों को,जहाजों सा रखो,✍️✍️✍️✍️❤️
shubh Mohan suman
"नवजवां समूह में एक अधेड़, जैसे घर आंगन में नीम का पेड़" - शुभ मोहन सुमन. ©shubh Mohan suman "नवजवां समूह में एक अधेड़, जैसे घर आंगन में नीम का पेड़" - शुभ मोहन सुमन.
Adarsh k Tanmay
कितनी शीतल थी मन की ज्वाला कल, जब खुद पर शोलह श्रृंगार दिखा था नयनन अब तो राह निहारे चाँद से प्यारे मुखड़े को, थे बलखाते बालों के लट निखारे चित हिय में बसे कुछ बातें हैं कुछ बिखरे सिमटे से यादें हैं यादें आती उमस की भांति छलनी हृदय कर के जाती सिसक सिसक कर यादें बहती दृग को गीला कर के जाती काज़ल लगे अब कालिख सा छूट गया वो अपना सा अब मेहंदी और महावर क्या अब चूड़ी कंगन के हैं कर्कश वाणी कानों को ना सुहाते ये कर्कश वाणी टीश भरी कलेजे में लेके किस ओर चलूँ किस ओर लगूँ आँशु भी अब तो सुख गये सिन्दूर भी मांग से रूठ गये छाया ना रही मेरी अपनी अब अपने पर किसका अधिकार समझूँ मैं मैं उन्मुक्त गगन में लहराती अपने मांझे के बल पर इतराती मेरा मांझा मुझसे टूट गया जीवन को नीरस छोड़ गया मैं सरस सलील की एक परी लहरों में खूब मैं विचरण करती अब सौभाग्य मेरा अभाग्य हुआ तिमिर मेरा संसार हुआ अब हो मौसम चाहे सर्दी गर्मी या मेघों का मैं स्तब्ध हुई अब शांत हुई आँशु को पत्थर कर के अब मोह माया के रिश्तों से जग जीवन से विरक्त हुई अपने सांसो का बोझ लिये मैं अपने आप में अंतर्ध्यान हुई। ©Adarsh kumar Tanmay पुलवामा में शहीद हुए भारतीय वीर जवानों के पत्नियों के दर्द पर शब्दों का कुछ समूह।
Alok Vishwakarma "आर्ष"
गाँव की बातें प्यार की, कच्चे घट के मोल । सुन ले वासी शहर के, पैसों से मत तोल ।। लाभ हानि सब छोड़ कर, मेहनत की रोटी खायें । नदी घाट जल पीवते, सब हरि के गुण गायें ।। सुख है प्रकृति गोद में, शहर में गाँव बसाओ । प्रेम करो मिल सब जने, मन के भेद मिटाओ ।। "गाँव की बातें" दोहों का एक लघु समूह #alokstates #गाँवकीबातें #गाँवशहर #yqbaba #yqdidi #hindipoetry #villagelife #love
Ghanshyam kumar mushkan
हंसते खेलते वाली शाम नहीं आएगी कागज की जहाजों वाली उड़ान नही आएगी बचपन में जितना मुस्काना है मुस्कुरा लो लौटकर बचपन वाली फिर मुस्काना नहीं आएगी ©Ghanshyam kumar mushkan हंसते खेलते वाली शाम नहीं आएगी कागज की जहाजों वाली उड़ान नही आएगी बचपन में जितना मुस्काना है मुस्कुरा लो लौटकर बचपन वाली फिर मुस्काना नहीं
vibrant.writer
"सांप्रदायिक" यानी हमारा धर्म और ईश्वर सबसे बड़ा हैं, एसा समझनेवाले मूर्खों का समूह। "कट्टर " यानी हमारे धर्म और ईश्वर से बड़ा कोई नहीं है, एसा समझनेवाले मूर्खों का समूह। " #सांप्रदायिक " यानी हमारा धर्म और ईश्वर सबसे बड़ा हैं, एसा समझनेवाले मूर्खों का समूह। " #कट्टर " यानी हमारे धर्म और ईश्वर से बड़ा कोई