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VivekG poetry
मुझे एक ढाल न बनाया जाय। मैं जीता,जागता हु महज एक खाल न बनाया जाय। मेरी नजरो में ही झलकता है चेहरा तेरा, ये तुम्हे देखे तो सवाल न बनाया जाय। खुद ही फ़ँस चुका हूं तेरी रेशमी जुल्फों में, मुझे फ़साने के लिए कोई जाल न बनाया जाय। ©Actor vivek poetry #ढाल #खाल
Sneh Sharma
तृप्ति, आशा,और विश्वास हो मन में जिसके वहां कहां आक्रोश है। संतोष और त्याग संग हो गर तुम्हारे तो कहां आक्रोश है। ईर्ष्या और बदले की भावना, लेकर चलो तो आक्रोश इक जाल है। दुश्मनों के सामने जब हो तो यही आक्रोश ढाल तलवार बन जता है। स्नेह शर्मा ©Sneh Sharma ढाल तलवार #chhathpuja
Ek villain
आवंटित प्रदेश का राजा अपने पड़ोसी राज्य से सदैव भयभीत रहता था उसे हमेशा इस बात का डर लगा रहता था कि कहीं उस राज्य का शासक उसके राज्य पर अतिक्रमण ना कर ले कभी भी परस्त कर देगा वह इस चिंता से अपनी सैन्य शक्ति को मजबूत करता रहता है इसके विपरीत पड़ोसी राष्ट्र का शासक निश्चित रहता है कि वह जब भी चाहेगा तब अपने पड़ोसी राज्य पर हमला कर उसे प्राप्त कर देगा ©Ek villain #Valley जीवन की ढाल
Insprational Qoute
//सिपर:-ढाल// बन सिपर-ए-जहाँ उन बेसहारे नन्हे मासुम का तुम उनका साथ देना, बड़े ही मायूस होते हैं ये स्वभाव से न कभी इन्हें नजरअंदाज कर देना, न जाने ये कि किस अत्यंत क्लिष्ट ज़ुर्म की सजा ये बेवजह ही भुगतते हैं, मिल जाये कहिं ये मायूस चेहरे तो स्नेहस्पर्श से इनकी किस्मत पर हाथ फेर देना। #collabwithकोराकाग़ज़ #कोराकाग़ज़ #सिपर #ढाल
Amar Anand
इस फरेबी मोहब्बत के दौर में तेरी वफाओं का कोई अंजाम नहीं... मर गये रे कितने आशिक इन्ही तन्हाई की राहों में पर इस जहाँ को कोई मलाल नहीं... खुद को ढाल ही लो दुनिया के हिसाब से प्यारे फिर कोई सवाल नहीं... -Amar anand #खुद को ढाल #paidstory
डॉ वीणा कपूर "वेणु"...
मै क्या बोलूं क्या बताऊं? सब-कुछ अदृश्य धुंधला सा है। अंधकार है चहुंओर , मन दीप भी बुझा बुझा सा है। कहीं हिजाब कहीं उन्माद, मां भारती का हृदय भी, दुखा दुखा सा है। क्या चमकेगी राजनीति, बहन बेटियों को ढाल बनाकर मां के लिए कर्म करने चाहिए अति श्रेष्ठ, क्यों कविता का, मस्तक झुका झुका सा है। ©Veena Kapoor राजनीति हिजाब उन्माद ढाल #Nojoto
Narendra Sonkar
*अगर दलित न ढाल बने* ------------------------------- अगर दलित न ढाल बने तो तुम कदापि नहीं उठा पाओगे ऊंची ऊंची बिल्डिंगें दर्जनों मंजिला इमारतें आलीशान महल और तुम कदापि नहीं कर पाओगे कोई शोध कोई शुरुआत कोई पहल अगर दलित न ढाल बने अगर दलित न ढाल बने तो तुम कदापि नहीं जीत सकते कोई चुनौती कोई चुनाव कोई जंग और तुम कदापि नही बन सकते राजा मंत्री दबंग अगर दलित न ढाल बने अगर दलित न ढाल बने तब तुम पेरे जाओगे कोल्हू के बैल की तरह किसी गैर,रखैल की तरह गन्ने और करैल की तरह समझे जाओगे दबैल की तरह झगड़ैल की तरह कूड़ा करकट मैल की तरह अगर दलित न ढाल बने अगर दलित न ढाल बने तो बैठ जाएगा तुम्हारा धंधा तुम्हारे धर्म-व्यापार का एजेंडा तुम्हारा धर्म तुम्हारा कर्म तुम्हारी संस्कृति और तुम्हारे धर्म-व्यापार की भट्ठी ठीक उसी तरह जैसे भूचाल आने पर बैठ जाता है मिट्टी के गर्त में आलीशान महल ©Narendra Sonkar *अगर दलित न ढाल बने*
Dhruv Bali aka Darvesh Danish
गीतों में दर्द ढाल कर गाता रहा हूं मैं हर लब पे मुस्कुराहटें लाता रहा हूं मैं~~ कोई हमनशीं मिलेगा तो खोलूंगा राजे दिल ये ऐतबार दिल को दिलाता रहा हूं मैं~~ गीतों में दर्द ढाल कर गाता रहा हूं मैं हर लब पे मुस्कुराहटें लाता रहा हूं मैं~~ ये शबनमी सी शर्म ये मासूम सी अदा पलकों के आसमां पर बिठाता रहा हूं मैं~~ गीतों में दर्द ढाल कर गाता रहा हूं मैं हर लब पे मुस्कुराहटें लाता रहा हूं मैं~~ वो जब मिलेंगे मुझसे तो मैं पेश करूंगा यू किताबों मे गुलाबों को लगाता रहा हूं मै~~ गीतों में दर्द ढाल कर गाता रहा हूं मैं हर लब पे मुस्कुराहटें लाता रहा हूं मैं~~ जब वो मिलेगे तब की फिज़ाओं को सोचकर जज़्बात नये रोज सजाता रहा हूं मैं~~ गीतों में दर्द ढाल के