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ashish kumar
नजर नहीं है नजारो की बात करते है, ज़मीन पर चाँद सितारों की बात करते है, वो हाथ जोड़ कर बस्ती को लुटाने वाले, भारी सभा मे सुधारो की बात करते है। ©ashish kumar सुधारों की बात करते है।
Ek villain
यह सही है कि स्वाधीनता के बाद से निरंतर देश का आर्थिक विकास हुआ है परंतु इस गति की अपेक्षाकृत कम रही है वैसे तो पिछली सदी के अंतिम दशक में अर्थव्यवस्था के मार्च में परिवर्तनकारी सुधार का व्यापक प्रयास किया गया था जिसे बेहतर नतीजे भी सामने आए बाद के सुधारकों ने अनुकूल परिस्थितियों का फायदा उठाया और वह सभी समान रूप से प्रभावशाली थे हालांकि उन देशों के एक बड़े हिस्से की उपभोक्ता वर्ग में ला खड़ा किया और अधिकांश को गरीब के जाल से बाहर निकाल देगा लेकिन किसी क्षेत्र को विशेष के उदार बनाने का अर्थ संबंधित नीतियों के गिरेबान में सुधार करना और व्यवसाय संघ के कारकों को तैयार करना भी कई बार अलग-अलग आगे बढ़ता है और बहुत ही विविध परिणामों के साथ आसमान गति को दर्शाता है एक संबंधी अध्ययन में समय के महत्व और सुधारों के क्रम में प्रकाश डाला गया है इससे स्पष्ट होता है कि आर्थिक विकास पर अल्पसंख्यकों के बीच में अंतर है ऐसे ही समझा जा सकता है कि आज टेलीकॉम का मतलब एक कॉल से कहीं अधिक है सूचना प्रौद्योगिकी तरह कोडिंग नहीं कर रही ऊर्जा क्षेत्र में सुधारों का अर्थ होगा कि जीवाश्म ईंधन से आगे जाना और शोर नवीकरण ऊर्जा और अन्य हरित ऊर्जा को शामिल करना शिक्षा और श्रम सुधारों को से पहले कई अधिक गतिशील है बीमा क्षेत्र में सुधार व्यवस्था के आसपास और श्रम कौशल और भूमिका में सुधार निर्माण के आसपास केंद्रित है ऐसे में नीति निर्माताओं को विशेष रूप से सामाजिक सुधारों के लिए उनसे होने वाले अपेक्षा प्रभाव की समीक्षा करने की जरूरत है आर्थिक समृद्धि के लिए संवाद सर्वोपरि है विशेष रूप से अत्यधिक प्रतिस्पर्धी संध्या के भीतर जहां राजनीतिक रूप से यह काम हो चारों में उसका एक उदाहरण बीते दिनों उस समय सामने आया जब बीते वर्ष की निरंतर की वर्तमान केंद्र सरकार से उन लोगों को साझा करने में विफल हो रहे जिनका निर्माण करने के लिए किया गया था ©Ek villain #सुगम बने आर्थिक सुधारों की राह #selfhate
Ankitmotivation06
अपनी गलती एसे सुधारों की फिर कोई भूल न हो, चैन से बसर हो जिन्दगी और मन में कोई शूल न हो, यूँ तो जीते है जिन्दगी सभी अपनी अपनी शर्तों पर, पर ऐसा गुनाह न करो जो उपरवाले को कुबूल न हो !! -- Ankitmotivation06 ✍️✍️✍️#Nojoto #Shayari #Love #Quotes #Status #Stories #शायरी #कविता #अल्फाज #दिलकीबात #दिलसेदिलतक #रूहकीकलम #रूहकीआवाज #मेरीकलम #अपनी #गलती
KUNDAN KUNJ
अगर खुद के घर में अंधेरा हो तो दूसरों से यह नहीं पूछना चाहिए कि आपके घर में रोशनी क्यों नहीं है ।। ##पहले खुद की गलतियों को #सुधारों दुनिया खुद #उधर जायेगी।
Ek villain
जब भी चुनाव आते हैं चुनाव सुधारों की मांग भी तेजी हो जाती है से मांगों पर गंभीरता से विचार किया जाना चाहिए पिछले दिनों केंद्र सरकार में चुनाव सुधार की दिशा में निर्णय पहल करते हुए मतदाता पहचान पत्र को आधार कार्ड से जोड़ना पंचायतों निकाय चुनाव को विधानसभा और लोकसभा चुनाव की मतदाता सूची को एक करना और नए मतदाताओं का नाम मतदाता सूची में 1 वर्ष से कई बार शामिल करना संबंधित निर्णय लिया है यह सुधार आवश्यक थे लेकिन इसके साथ ही अन्य सुधार भी अपेक्षित है भारत में अनेक लोग वह का नाम जन नाम एकाधिक जगह पर मतदाता सूची में इस्तेमाल होता है सेना सिर्फ एक व्यक्ति का मतदाता सर्वजनिक प्रधान का उल्लेख होता है बल्कि वास्तविक जन देश का भी हरण हो जाता है इस मतदाता का सही प्रतिशत पता करना भी मुश्किल होता है चुनाव आयोग इस समस्या के समाधान के लिए लंबे समय से प्रत्याशी था लेकिन अधिक सफलता मिल रही है तब मतदाता पहचान पत्र के आधार कार्ड से जुड़कर फर्जी मतदाताओं का उन्मूलन किया जा सकेगा न्याय पंचायत निकाय चुनाव और विधानसभा लोकसभा चुनाव की मतदाता सूची को एक करना है उल्लेखनीय है कि कई राज्यों में पंचायत चुनाव और विधानसभा लोकसभा चुनाव में अलग-अलग मतदाता सूचियों का प्रयोग किया जाता है पंचायत निकाय चुनाव की मतदाता सूची का निर्माण संबंधित राज्य निर्वाचन आयोग करता है जबकि विधानसभा और लोकसभा चुनाव की मतदाता सूची का निर्माण केंद्र निर्वाचन आयोग करता है ©Ek villain # चुनाव सुधारों को गति देने का समय #apart
Rakesh frnds4ever
उलझन इस बात की है कि हमें .......उलझन किस बात की है अपनों से दूरी की या फिर किसी मज़बूरी की खुद की नाकामी की या किसी परेशानी की दुनिया के झमेले की या मन के अकेले की पैसों की तंगी की या जीवन कि बेढंगी की रिश्तों में कटाक्ष की या फिर किसी बकवास की दुनिया की वीरानी की या फिर किसी तनहाई की अपनी व्यर्थता की या ज़िन्दगी की विवशता की खुद के भोलेपन की या फिर लोगो की चालाकी की अपनी खुद की खुशी की या दूसरों की चिंता की खुद की संतुष्टि की या फिर दूसरों से ईर्ष्या की खुद की भलाई की या फिर दूसरों की बुराई की धरती के संरक्षण की या फिर इसके विनाश की मनुष्य की कष्टता की या धरती मां की नष्टता की मानव की मानवता की या फिर इसकी हैवानियत की बच्चो के अपहरण की या बच्चियों के अंग हरण की प्यार की या नफरत की ,,जीने की या मरने कि,,, विश्वाश की या धोखे की,, प्रयास की या मौके की बदले की या परोपकार की,,, अहसान की या उपकार की ,,,,,,ओर ना जाने किन किन सुलझनों या उलझनों या उनके समस्याओं या समाधानों या उनके बीच की स्थिति या अहसासों की हमें उलझन है,,, की हम किस बात की उलझन है..==........... rkysky frnds4ever #उलझन इस बात की है कि,,, हमें ...... उलझन किस बात की है अपनों से दूरी की या फिर किसी #मज़बूरी की खुद की नाकामी की या किसी परेशानी की #दुनि
आलोक कुमार
बस यूँ ही चलते-चलते ......... जरा सोचिए कि आजकल हमलोग खुद को बेहतर बनाने के लिए कौन-कौन से गलत/अभद्र नुस्खें अपनाते जा रहे हैं. ना ही उस नुस्खें के चरित्र, प्रकरण एवं उसके कारण दूसरे मनुष्य, आसपास, समाज, देश व आगामी पीढ़ी पर असर का ख्याल रख रहें हैं, न ही ख़यालों को किसी को समझने का मौक़ा दे रहे हैं. बस अपने ही धुन में उल्टी सीढ़ी के माध्यम से अपने आप को आगे समझते हुए सचमुच में बारम्बार नीचे ही चलते जा रहे है. तो जरा एक बार फिर सोचिए कि उल्टी सीढ़ी उतरने और सीधी सीढ़ी चढ़ने में क्रमशः कितनी ऊर्जा, शक्ति और समय लगती होगी. यह भी पता चलता है कि आज की पीढ़ी की ऊर्जा और शक्ति का किस दिशा में उपयोग हो रहा है और शायद यही कारण है कि आज का "गंगु तेली" तो "राजा भोज" बन गया और "राजा भोज", "गंगु तेली" बन कर सब गुणों से सक्षम रहने के बावज़ूद नारकीय जीवन जीने को मजबूर है. यही हकीकत है हम अधिकतर भारतवासियों का...... आगे का पता नहीं क्या होगा. शायद भगवान को एक नए रूप में अवतरित होना होगा. आज की पीढ़ी की सच्चरित्र की हक़ीक़त
Anuj Ray
खुशबू चरित्र की" खुशबू चरित्र की, हीरे सी चमकती है, फूलों सी महकती है। खुशबू चरित्र की, जीवन के आईने में, सूरज सी दमकती है। खुशबू चरित्र की, आदर्श भी गढ़ती है, इतिहास भी रचती है। ©Anuj Ray # खुशबू की चरित्र की"