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Rupali >------->>Verma
Dk Patil
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
ग़ज़ल :- पीर दिल की किस तरह कहती यहाँ । क्या तुम्हारे पाँव में गिरती यहाँ ।।१ काश पत्थर की बनी होती यहाँ । छ़ोड फिर मैं लाल को जाती यहाँ ।।२ आप समझे ही नहीं औरत कभी । बस समझते आप हो दासी यहाँ ।।३ नीचता की हद सभी अब पार हैं । क्या तुम्हें अब शर्म भी आती यहाँ ।।४ मैं सभी से माँगती हूँ ज़िन्दगी । काश मुझको मौत मिल जाती यहाँ ।।५ आप जो करते वफ़ा हमसे कभी । क्यों न बोलो मैं भला रुकती यहाँ ।।६ है दिखावा नारियों का ये जगत । रूप ढ़लते सुख कहाँ पाती यहाँ ।।७ हो गये हैवान जबसे मर्द है । बेटियाँ ही देखता जलती यहाँ ।।८ चन्द साँसें और बाकी है प्रखर । क्यों तुम्हारे प्यार में रोती यहाँ ।।९ २९/०१/२०२३ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR ग़ज़ल :- पीर दिल की किस तरह कहती यहाँ । क्या तुम्हारे पाँव में गिरती यहाँ ।।१ काश पत्थर की बनी होती यहाँ । छ़ोड फिर मैं लाल को जाती यहाँ ।।२
प्रेम कुमार रावत
ये मया हा ना भाचा पिक्चर, कहानी मे बने लागथे जी ... 😟 सिरतोन मा मया करके देख आधा आधा रात के उठ के रोये ला पढ़थे...🥲🥲🥲 ©cg_poet_ prem _kumar #onenight ये मया हा ना भाचा पिक्चर, कहानी मे बने लागथे जी ... 😟 सिरतोन मा मया करके देख आधा आधा रात के उठ के रोये ला पढ़थे...🥲🥲🥲
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
ग़ज़ल :- वो अभी तक तो जताता था हमीं से प्यार है । पीठ पर जो आज करता देख मेरे वार है ।।१ आदमी ही आदमी का कर रहा संहार है । प्यार के अब नाम पर फल फूलता व्यापार है ।।२ भूख जब भी जिश्म़ की लगती यहाँ हैवान को । खोजने फिर वह निकल पड़ता अकेली नार है ।।३ कल हुआ जो हादसा था सुन सरे बाज़ार में । चटपटी सी वह खबर आती सुबह अखबार है ।।४ उठ गया अपना भरोसा देखकर इंसान को । लाश को जब इस तरह बेचा गया बाज़ार है ।।५ मीडिया की बात ही पूछो नही अब आप सब । व्यूज मिल जाए अगर तो हद सभी फिर पार है ।।६ राम को भजते हुए ही प्राण ये निकले प्रखर । जब मिलें उसकी शरण तब छोड़ना संसार है ।।७ २३/१२/२०२३ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR ग़ज़ल :- वो अभी तक तो जताता था हमीं से प्यार है । पीठ पर जो आज करता देख मेरे वार है ।।१ आदमी ही आदमी का कर रहा संहार है ।
ज़हर
ज़हर कहाँ पर बोलना है और कहाँ पर बोल जाते हैं। जहाँ खामोश रहना है वहाँ मुँह खोल जाते हैं। कटा जब शीश सैनिक का तो हम खामोश रहते हैं। कटा एक सीन पिक्चर का तो सारे बोल जाते हैं। नयी नस्लों के ये बच्चे जमाने भर की सुनते हैं। मगर माँ बाप कुछ बोले तो बच्चे बोल जाते हैं। बहुत ऊँची दुकानों में कटाते जेब सब अपनी। मगर मज़दूर माँगेगा तो सिक्के बोल जाते हैं। अगर मखमल करे गलती तो कोई कुछ नहीँ कहता। फटी चादर की गलती हो तो सारे बोल जाते हैं। हवाओं की तबाही को सभी चुपचाप सहते हैं। च़रागों से हुई गलती तो सारे बोल जाते हैं। बनाते फिरते हैं रिश्ते जमाने भर से अक्सर। मगर जब घर में हो जरूरत तो रिश्ते भूल जाते हैं। कहाँ पर बोलना है और कहाँ पर बोल जाते हैं। जहाँ खामोश रहना है वहाँ मुँह खोल जाते हैं। ©ज़हर ज़हर कहाँ पर बोलना है और कहाँ पर बोल जाते हैं। जहाँ खामोश रहना है वहाँ मुँह खोल जाते हैं। कटा जब शीश सैनिक का तो हम खामोश रहते हैं। कटा ए