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दूर तलक अंधेरा (लघु कथा) ************************ करोना काल के समय में व्यापार में घाटा, बच्चों की पढ़ाई में नुकसान। सभी माता-पिता इस बात से परेशान के क्या होगा बच्चों का भविष्य। दूर तलक अंधेरा ही अंधेरा था, क्योंकि प्रशासन के सख्त हुकम हुए थे कि कोई भी घर से बाहर नहीं निकलेगा। तो ऐसे में क्या किया जाए। प्रशासन ने इस दुविधा को समझते हुए ऑनलाइन क्लासेस शुरू करवा दी परंतु विद्यार्थी पढ़ाई की बजाए मोबाइल में गेम्स खेलने लगे जो कि चिंतन का विषय है। यह बहुत गंभीर और चिंता जनक विषय है। बिमारी की रोकथाम के लिए जो भी बन पडे करना होगा। परंतु कुछ ऐसे कदम उठाने चाहिए के सांप भी मर जाए और लाठी भी ना टूटे। ऐसे में बच्चों का कोई भविष्य नहीं दूर तलक अंधेरा ही अंधेरा है। #कोराकाग़ज़ #collabwithकोराकाग़ज़ #विशेषप्रतियोगिता #कोराकाग़ज़_pc_14 #दूरतलकअंधेरा
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प्रियतम का इंतजार *************** मेरे प्रियतम समझ ,मेरे दिल की वेदना, तेरी यादों के शूल कर रहे हैं दिल को छलनी, कोई कहे मुझे पागल तो कोई कहे प्रेम पूजारन, तेरे इंतजार में दिन-ब-दिन हो रहे हैं ज़ार-ज़ार, ओ निर्मोही तुम्हें ख़बर है क्या ?कोई कर रहा है इंतजार। तेरे प्यार की यह !.......शोखियां बढ़ाए मेरी बेकरारी, प्रियवर तेरे इंतजार में!... प्यार की घड़ीया बीती जाए, तुम आके थाम लो पिया, अब मेरे प्यार की जिम्मेदारी, यह जन्म तेरे नाम कर चुकी हैं तुझ पर ही है बलिहारी। मेरी सांसो में तुम समाए हो तुम!..... .........श्वास बन कर, हाय बढ़ती ही जा रही है यह बेकरारी,अब जान पर बन आए, तू रूह मेरी मैं जिस्म तेरा!....... बस अरमानों के जज्बात हो, तू उदास होए, ऐसा समां आए!....... तो आंख मेरी नम होए तू समुद्र मेरा, मैं किनारा तेरा!...... ऐसा रूहानी मिलाप हो। #कोराकाग़ज़ #collabwithकोराकाग़ज़ #विशेषप्रतियोगिता #कोराकाग़ज़_pc_14 #प्रियतमकाइन्तेज़ार(कविता)
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मेरी लेखनी (चिंतन) **************** लेखनी मेरी राह ढूंढ रही थी, मिल नहीं रहा था कोई सहारा, दिल की भाव को लिखना चाहू, पर कहाँ, कुछ समझ में नहीं आ रहा था, yq इस पगली को राह दिखाई, मेरी लिखावट को एक दिशा मिली, कुछ बातें ऐसी होती हैं जिनके शब्द नहीं होते, अपनी लेखनी के जरीए हम उनको बयां कर पाते हैं, कृपा अनुशीर्षक में पढ़ें 👇👇👇👇👇👇 मेरी लेखनी (चिंतन) **************** लिखनी मेरी राह ढूंढ रही थी, मिल नहीं रहा था कोई सहारा, दिल की भाव को लिखना चाहू, पर कहाँ, कुछ समझ में नहीं आ रहा था, yq इस पगली को राह दिखाई, मेरी लिखावट को एक दिशा मिली,
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मदहोशी (ग़ज़ल) **************** पिए जो जाम, नज़रों के, संभल ना पाए हम, मदहोश समां हैं,!.... मदहोश लम्हा-लम्हा हैं, बेसुध होकर !.............जिए जा रहे हैं हम। तसब्बर उनका!............... आंखों में छा रहा हैं, हमें दिन में घनी जुल्फ़ें का अंधेरा नज़र आ रहा हैं, नज़र ढूंढे उनको इस कदर, समय बिताए जा रहे है हम। मयखाना जो इतराता था , कभी अब शर्म खा रहा हैँ, मेरे महबूब की मस्त !......अदाओं से मात खा रह हैं, सब पर नशा छाया अजब सा, बिन पिए शराबी का इल्ज़ाम आ रहा आ रहा है। आज बैठे हैं आगोश में वो, अब कहां रहे होश में बताओ, हम पर देखो बे-मतलब, !..............नशा छा रहा हैं। अब किस को दोष दे हम, नाम उसका लबों पे आ रहा हैं। अनंत प्यार में डूबे हैं, इस क़दर, मेरे हकीकतों में तूं , इस तरह समां रहा हैं, देखू जब आईना, मुझे मदहोशी में भी तू नज़र आ रहा हैं। #cinemagraph #कोराकाग़ज़ #collabwithकोराकाग़ज़ #विशेषप्रतियोगिता #कोराकाग़ज़_pc_14 #मदहोशी(ग़ज़ल)
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