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अभिलाष सोनी
कोरा काग़ज़ Premium Challange-17 विषय 4 :- औरत के किरदार (कविता) औरत के हैं रूप हजार, औरत से ही है संसार। माँ, बहन, बेटी, बहु, औरत के हैं कई किरदार। माँ की ममता, बहन का प्यार, बेटी-बहु का संस्कार। औरत के हर रूप में, मिला यहाँ मानव को प्यार। मन की भोली, दिल की सच्ची, शीतलता का भंडार। औरत का कोमल हृदय, हर औरत का करो सत्कार। सहज स्वभाव, अति मृदुभाषी, औरत का व्यवहार। जीवन को सफल बनाने, औरत है प्रकृति का उपहार। नीयत की सच्ची, दिल की साफ, बातें करें कई हजार। घर की लक्ष्मी कहलाती है, औरत से ही चलता संसार। औरत बेटी, औरत देवी, औरत ही है माँ का प्यार। औरत से ही ख़ुशियाँ सारी, औरत को करो स्वीकार। कोरा काग़ज़ Premium Challange-17 विषय 4 :- औरत के किरदार (कविता) औरत के हैं रूप हजार, औरत से ही है संसार। माँ, बहन, बेटी, बहु, औरत के हैं कई किरदार। माँ की ममता, बहन का प्यार, बेटी-बहु का संस्कार। औरत के हर रूप में, मिला यहाँ मानव को प्यार।
अभिलाष सोनी
कोरा काग़ज़ Premium Challange-17 विषय 3 :- कशिश इश्क़ की (ग़ज़ल) कशिश तेरे इश्क़ की मुझे दीवाना बना गई। मेरे उखड़े से मूड को आज शायराना बना गई। मैं खोया रहता था पहले, जाने किन ख़यालों में। डुबाकर तेरे ख़यालों में, मुझे मस्ताना बना गई। मैं जब भी सोचता हूँ, पल भर को तेरे बारे में। ख़यालों को रूहानी और आशिक़ाना बना गई। अहसास मोहब्बत का कितना प्यारा होता है। अंजान था मैं पहले, इसे जाना पहचाना बना गई। होती है क्या चाहत, ये भी अब जान लिया मैंने। मिलाकर तुझसे मेरी रूह को परवाना बना गई। मैं दिल की बातों को, कभी कह भी ना पाता था। सिखाकर शेरो-शायरी, ग़ज़ल नज़राना बना गई। कोरा काग़ज़ Premium Challange-17 विषय 3 :- कशिश इश्क़ की (ग़ज़ल) Pic Credit :- Pinterest कशिश तेरे इश्क़ की मुझे दीवाना बना गई। मेरे उखड़े से मूड को आज शायराना बना गई।
अभिलाष सोनी
कोरा काग़ज़ Premium Challange-17 विषय 2 :- क्या खोया क्या पाया (लघुकथा) क्या खोया क्या पाया हमने, जीवन भर ये जान ना सके। हमको जो मिला यहाँ, वो कर्मों का फल पहचान ना सके। जो कुछ हमने किया यहाँ, उसी का प्रतिफल हमें मिला। पर अफ़सोस कि हम अपनी, गलती कभी मान ना सके। जीवन के इस लम्बे सफ़र में, घोड़ों की दौड़ दौड़ते रहे। पीछे जो हमसे छूटता गया, उसको हम पहचान ना सके। अपनी मर्जी के हम मालिक, खुद से ही हैं आँकलन करते। जाने कितनों का दिल दुखाया, ये भी कभी जान ना सके। जीवन है ये बहुत ही छोटा, सबसे मिलकर रहना है हमें। कभी किसी का दिल न दुखाना, ये भी कभी ठान ना सके। कोरा काग़ज़ Premium Challange-17 विषय 2 :- क्या खोया क्या पाया (लघुकथा) Pic Credit :- Pinterest क्या खोया क्या पाया हमने, जीवन भर ये जान ना सके। हमको जो मिला यहाँ, वो कर्मों का फल पहचान ना सके।
अभिलाष सोनी
कोरा काग़ज़ Premium Challange-17 विषय 1 :- मज़दूर की ज़िन्दगी (चिंतन) मज़दूर की ज़िन्दगी हमेशा से ही, बस मजदूरी करके बीत रही। आज से नहीं अनादिकाल से ही, जग की यही एक रीत रही। कुछ भी न बदला आज यहाँ, ना पहले किसी ने बदला था। मज़दूरी करके जीवन बिताया, मुफ़लिसी से ही प्रीत रही। क्या हुआ गर बदहाली में जीवन बीता, पर न कभी घबराया वो। खुद के हौसलों से मुस्कुराता रहा, जीवन में यही एक जीत रही। आज भी दुनिया मजदूरों को, सम्मान कहाँ वो देती है। गरीबी का हमेशा मजाक बनाया, मिलती सिर्फ भीख रही। जिन महलों में तुम शान से रहते, उन्हें मजदूरों ने ही बनाया है। जग को तुम झूठी शान-ओ-शौकत दिखाते, मिल यही अब सीख रही। कोरा काग़ज़ Premium Challange-17 विषय 1 :- मज़दूर की ज़िन्दगी (चिंतन) Pic Credit :- Pinterest मज़दूर की ज़िन्दगी हमेशा से ही, बस मजदूरी करके बीत रही। आज से नहीं अनादिकाल से ही, जग की यही एक रीत रही।
Writer1
//औरत के किरदार// ******************* औरत के किरदार को हम हर्फो में बयां ना जी सकेंगे, जिम्मेदारी की बात पर आए स्वपन में एक ही तस्वीर आए, न जाने कैसे अपना हर किरदार निभाती है, कमाल ए फर्ज निभाए, बीमार हो जाए अगर घर में कोई तो सारी रात जागे बिताए, कहने को अबला , बेचारी , नारी है पूजता हैं जगत संसार, कोई सानी नहीं इसके बलिदान का, ऐसा है औरतों का किरदार, कभी बेटी , कभी बहू, कभी बीवी , तो बने कभी माँ, इसके बिना कल्पना ना कर सके हम, अधूरा है घर संसार, नवसृजन का निर्माण हैं करती , जीवन का है आधार, सहानुभूति की देवी हैं , प्यार से बांधे घर - परिवार, बच्चों को लोरी गा गा कर सुनाएं ऐसी हैं अवकोकिल, स्वच्छ हृदय से पवित्र आत्मा सर्वस्य है अखिल , जब कभी भी हमें चोट लग जाए मन हो जाए उदास, हमसे ज्यादा वह रोती है हमेशा उठाए दुआ के लिए हाथ, औरत तेरी कहानी मैं क्या बयां करूं, सत्य है गर खुदा का दूजा कहाए, यूँ तो अनपढ़ है जब जब पुछू सवाल, हर सवाल का उत्तर बताए। #kkpc17 #collabwithकोराकाग़ज़ #कोराकाग़ज़ #विशेषप्रतियोगिता
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