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Sameer Jain
इतना दम ही नहीं था ज़ंजीरों में, तो फिर उसको कैद किया तस्वीरों में, इस बा'इस से गिनता हूं मैं, उसको मेरे असीरो में, इस जानिब को उस जानिब को, दौड़ लगाई हर जानिब को, मंदिर मस्ज़िद गिरजाघर में, ढूंढा खुदा फकीरों में, मैदान कहां है क्या मालूम है, लेकिन इससे क्या मतलब, घर बैठे ही जंग देख ली, तलवार ढ़ाल और तीरों में..…! असीर - कैदी बा'इस - कारण जानिब - तरफ
असीर - कैदी बा'इस - कारण जानिब - तरफ
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दीखता है खुदा मुझे हर सम्त अपने, या तो मेरा वहम है, या वो खुद यहीं कहीं...! या तो मेरा वहम है, या वो खुद यहीं कहीं...?
या तो मेरा वहम है, या वो खुद यहीं कहीं...?
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चार लम्हें उल्फत के, दो ख़्वाब इन आंखों को, इस खुराक़ की खातिर मेरी नींदें ज़ाया हो जाती है... #paidstoryshayari #oneliner #rekhtashayari #zindagigulzarhai #sukhanwarr #kalam #urdushayari
Sameer Jain
वही था राज़-ए-दिल जो सब, बक्से से मेरे खुतूत निकले, कहीं ज़र्फ की खराशें निकली, कहीं वफ़ा के सुबूत निकले...! वफ़ा के सुबूत....
वफ़ा के सुबूत....
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ख्वाब में ऐसे बुलाना तेरा, नींद है या कोई बहाना तेरा... नींद है या कोई बहाना तेरा......?
नींद है या कोई बहाना तेरा......?
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नीयत से साफ गुमां से सच्चे नही रहे, इबादत में तस्बीह दुआ में धागे नही रहे, अब मुझसे दूर कहीं गैर शहर में है तू, फासलों में इज़ाफो से क्या नाते नही रहे, हिज़्र ने घेरा हमे इस कदर तन्हा, गमों से उलझे कि इरादे नही रहे, इतना भी नहीं मुफलिस कि दूं तुम्हे तसल्ली, क्या अब हमारी जेब मे वादे नहीं रहे.... अब मुझसे दूर कहीं गैर शहर में है तू, फासलों में इज़ाफो से क्या नाते नही रहे....
अब मुझसे दूर कहीं गैर शहर में है तू, फासलों में इज़ाफो से क्या नाते नही रहे....
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उस पार अंधेरे तुम हो क्या, यूं मुझको घेरे तुम हो क्या, इक ख़्वाब से मेरी आंख खुली है, ये सुबह सवेरे तुम हो क्या, जाने कैसा रोग लगा है, जो मन- मौला हो बैठा, बेबस तुमको सोच रहा हूं, दिल मे मेरे तुम हो क्या....? तुम हो क्या.....?
तुम हो क्या.....?
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ओढ़ कर तमाम रात कबा परेशान रहा, मैने जिसको भी बनाया राज़दाँ परेशान रहा, घर से बाहर निकला तो किराए पर ली जगह, दीवारों से उलझता था, सो मकां परेशान रहा, सारी उम्र गुजारी खुद सा ढूंढते मैने, मिला जब मुझे मुझसा हमनवा परेशान रहा, क्या कहूं अब अपना, मैं बायस ए उदासी, और क्या कहे वो आदम, जो बेजा परेशान रहा, चाहा बहुत सुकून को, कोई दे मुझे बता, फिरता रहा मैं मारा, ढूंढा बहुत पता परेशान रहा, मेरा मर्ज से मरासिम, मुझको समझ न आया, पाई न ज़रा राहत, खाता रहा दवा परेशान रहा...! मेरा मर्ज से मरासिम, मुझको समझ न आया, पाई न ज़रा राहत, खाता रहा दवा परेशान रहा.....! कबा - चादर बायस - कारण मरासिम - संबंध
मेरा मर्ज से मरासिम, मुझको समझ न आया, पाई न ज़रा राहत, खाता रहा दवा परेशान रहा.....! कबा - चादर बायस - कारण मरासिम - संबंध
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खुद को ही बहकाना होता है, इश्क का मतलब ठोकर खाना होता है, रात में जल्दी सोया करो तुम, तुमको मेरे ख्वाब में आना होता है, वही मुसाफिर वही असीरी, मुफलिस का क्या कोई ठिकाना होता है, यूं ही नहीं कोई तुम पर दिल -जां दे देगा, उससे पहले थोड़ा सा मुस्काना होता है....! खुद को ही बहकाना होता है, इश्क का मतलब ठोकर खाना होता है, वही मुसाफिर वही असीरी, मुफलिस का क्या कोई ठिकाना होता है....!
खुद को ही बहकाना होता है, इश्क का मतलब ठोकर खाना होता है, वही मुसाफिर वही असीरी, मुफलिस का क्या कोई ठिकाना होता है....!
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कर चुके है एक दफा खसारा हम भी, करते हैं यही चर्चा इसपे इस्तेखारा हम भी, तुम्हारी तमन्ना फिर उसी दोज़क में लौटने की है, इतनी तो नही करते हिम्मत दोबारा हम भी.......! तुम्हारी तमन्ना फिर उसी दोज़क में लौटने की है, इतनी तो नही करते हिम्मत दोबारा हम भी.......!
तुम्हारी तमन्ना फिर उसी दोज़क में लौटने की है, इतनी तो नही करते हिम्मत दोबारा हम भी.......!
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