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अदनासा-
Hritik Gupta
#RajasthanDiwas जो भी बोलना है उसे बोल डालो अगर मामला दिल से है तो इसारो में भी अपने दिल कि बात खोल डालो और अगर फिर भी न समझे तो जुबां से सिर्फ एक लाईन बोल डालों ©Hritik Gupta #बोल #डालो #दिल #खो #AprilFoolsDay2021
Saurav Das
ए उड़ती पंछी मेरे आशियाँ में डालो डेरा ! ठहर जाओ पास मेरे और घर बना दो मेरा!! ©Saurav Das #पंछी #उड़ती #आशियाना #डालो #डेरा #ठहर #घर #बना
Dosti Ibaadat E Khuda
मंजर हो चला है मुफलिसी का अब, कातिलाना!! हालात बदल डालो ... या फिर मेरा, भगवान् ... बदल डालो!! कहना था बस कह दिया ~~~ निशान्त ~~~ कातिलाना
Dosti Ibaadat E Khuda
हो सके तो जीने का मेरे, तुम अन्दाज बदल डालो!! कि कहानी लिखी थी, जो कभी तुमने, उसमें मेरे, तुम किरदार बदल डालो!! नहीं चाहिए नफरत तुम्हारी, और नहीं चाहिए अब मौहब्बत् तुम्हारी!! कि थक गया हूँ दिल के मेरे, अब तुम, जज्बात बदल डालो!! कहना था बस कह दिया ~~~ स्वरचित ~~~ jajbaat बदल डालो
गौरव गोरखपुरी
अलविदा मोहब्बत दिल आईना का टूटा है गर इसे पत्थर से बदल डालो फूल सा नाजुक है दिल अगर चलो अब इसे कुचल डालो #GAURAVpandeyPoet #poeticPandey #दिल #nojotohindi
योगराज 'जल'💧
वो दूर खड़ी हैं छत पे करती है मुझे इशारे, दूर गगन में देखूं मैं केवल चाँद सितारे । काली जुल्फों के घेरे न जाल से 'जल' पे डालो, हम उड़ते परिंदे हैं अब कोई न दाना डालो।। परिंदे
Suresh Daiya ink
दूरियां खत्म करो या नज़दीकियां मिटा डालो इस तड़प से अच्छा है तूम मुझे मार डालो ..!! @Suresh._.Daiya.ink🖤
रजनीश "स्वच्छंद"
घर के लाल।। कलम गुज़ारिश कर बैठी, लिख डालो इन मतवालों पे। सरहद पर तुमने बहुत लिखा, लिख डालो घर के लालों पे। निर्वस्त्र रही वो राह पड़ी, किसको थी खबर और क्या थी पड़ी। आंखों में दया न धर्म दीखा, ना मानव जैसा कर्म दीखा। वो तड़प रही थी पुकार रही, किस्मत में तो बस दुत्कार रही। जिसने भी देखा चला गया, चीख चीख के गला गया। मानुष एक वहाँ से गुजरा था, आंखें नम दुख में मुखड़ा था। हाथ बढ़ा और वस्त्र दिया, मानव का काम सहस्र किया। बहता आंसू जो अविरल था, मन सेवा भाव मे विह्वल था। है सार्थक जीवन उसका, आंसू पोंछे जो गालों से। कलम गुज़ारिश कर बैठी, लिख डालो इन मतवालों पे। कुछ अर्धनग्न बच्चे मेरे, जो चले थे सब आंखें फेरे। पेट पीठ में चिपके थे, मानो वो भूख में सिसके थे। भारत भविष्य लिए हाथ कटोरा, सर पे लादे एक भूख का बोरा। धरती बिछौना गगन ओढ़नी, थक हार गई थी बाल मोरनी। उत्सुक आंखें कुछ पूछ रहीं, दुनिया क्या मेरी सचमूच रही। एक हाथ उठा उनकी ख़ातिर, वो गुणी था न वो था शातिर। गोद लिए उस बालपन को, कर रहा शांत अपने मन को। पेट भरा और ज्ञान दिया, हैं जीवित उन्हें ये भान दिया। वो अपना पराया भेद मिटा, नहीं झेंप रहा वो सवालों से। कलम गुज़ारिश कर बैठी, लिख डालो इन मतवालों पे। ©रजनीश "स्वछंद" घर के लाल।। कलम गुज़ारिश कर बैठी, लिख डालो इन मतवालों पे। सरहद पर तुमने बहुत लिखा, लिख डालो घर के लालों पे। निर्वस्त्र रही वो राह पड़ी,
@yaadenyaadaatihain
खाक डालो मुझ पर, यूँ समझो मै था ही नही..! #खाक #डालो #मुझ #पर, #यूँ #समझो #मैं #था #ही #नहीं..!