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Best जय_सियाराम Shayari, Status, Quotes, Stories

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Kuldeep Shrivastava

26 jan republic day 
🌿🌿🇮🇳🌹🇨🇮🇨🇮🇮🇳🏌🏻‍♂🌷🌿

भारत के राष्ट्रीय पर्व 75 वें गणतंत्र दिवस की समस्त देशवासियों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं  🇮🇳 
जय हिंद 🇮🇳
वंदे मातरम 🇮🇳 जय हिंद 🇮🇳
 जय भारत🇮🇳 जय जवान ❣️
#जय_सियाराम ❣️
 #गणतंत्रदिवस #26january 
#RepublicDay🇮🇳
#RepublicDay2024

©Kuldeep Shrivastava #26janrepublicday

Kuldeep Shrivastava

" धर्म की लडा़ई में
निमंत्रण नहीं भेजे जाते
जिसका जमीर जिंदा हो
वो खुद समर्थन में आ जाते हैं ..||"

©Kuldeep Shrivastava #जय_सियाराम 🙏🏹🚩
#जय_श्री_हनुमान 🙏🚩
#राममंदिरनिमंत्रण 🙏🚩

दिनेश कुशभुवनपुरी

#घनाक्षरी #मदिरा_सवैया #जय_सियाराम #जय_जय_हनुमान गुरु देव Rank Nameless Anshu writer Anupriya सुरमई साहित्य gungun gusain एक अजनबी SURAJ PAL SINGH मनोज मानव kanta kumawat RD bishnoi Suhana parvin. please Humko support aur gift Kijiye - repost kijiye-Boss Anjali Srivastav RJ राहुल द्विवेदी 'स्मित' Priya Rajpurohit सूर्यप्रताप सिंह चौहान (स्वतंत्र) -"Richa_Shahu" .Indian Sing Language Dheeraj Srivastava Karan सुनील 'विचित्र' Choudhary Nk kumar #कविता

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Mou$humi mukherjee

Sapan Kumar

pandit vikas tiwari

Anit kumar kavi

रामायण की कहानियों का चौथा अध्याय ।
चौथे अध्याय में भगवान राम अपनी पत्नी सीता और भाई लक्ष्मण जी के साथ वन में चले जाते हैं और वहां पहुंच कर एक कुटिया का निर्माण करते हैं और उसमें ही रहने लगते हैं कुछ ही दिन बीते थे कि एक बार आकाश मार्ग से एक राक्षसी जा रही थी जिसका नाम सुपृनखा था वह श्री राम को देखकर लुभा जाती है और श्री राम जी के पास आकर कहती है है युवक तुम कौन हो कहां से आए हो मैं तुमसे विवाह करना चाहती हूं तब श्री राम जी ने कहा हे देवी मैं दशरथ पुत्र राम हूं और मेरा विवाह हो चुका है यह मेरी पत्नी सीता है और मैं अपने भाई लक्ष्मण के साथ यहां पर रहता हूं तभी उसकी नजर लक्ष्मण जी पर पड़ती है और श्री राम से कहती है कि ठीक है अगर तुम विवाहित हो तो मैं तुम्हारे भाई लक्ष्मण से विवाह करूंगी इस बात पर लक्ष्मण जी कहते हैं कि मैं तो भैया और भाभी का दास हूं आप मेरा विचार छोड़ दें और यहां से चले जाएं इस पर सूर्पनखा क्रोधित हो जाती है और कहती है की तुम दोनों इस स्त्री के कारण मुझे ठुकरा रहे हो तो मैं इस स्त्री को ही मार डालूंगी इस पर लक्ष्मण जी को क्रोध आ जाता है और वह सुपृनखा की नाक काट देते हैं जिस पर लज्जित हो वह अपने भाई खर-दूषण के पास जाती हैं और पर न्याय की गुहार लगाती है यह सब बात सुनकर खर- दूषण श्री राम लक्ष्मण से युद्ध करने आ जाते हैं और बुरी तरह से परास्त हो जाते हैं इसके बाद वह अपने भाई रावण के लंका के महल में जाती हैं और रावण से गुहार लगाती है इस बात रावण कहता है हे बहना जिसने तुम्हारी नाक काटी है और हमारे कुल को लज्जित किया है मैं उसे भी उसी तरह से लज्जित करूंगा और फिर अपने मामा मारीच के पास जाता है जो की रूप बदलने में बहुत ही माहिर था और बहुत ही मायावी भी था उसने एक सोने की हिरण का रूप धारण कर लिया और जहां पर श्री राम अपनी पत्नी सीता और भाई लक्ष्मण जी सहित रहते थे वह  उस वन में चला गया तभी मां सीता का ध्यान उस सोने के हिरन पर पड़ा और वह मोहित हो गई है और श्री राम जी से कहने लगी कि हे प्राणनाथ मुझे वह हिरण चाहिए इस पर श्री राम जी कहते हैं कि ठीक है सीता मैं अभी ही जाता हूं और इस हिरण को ले आता हूं और लक्ष्मण जी से कहते हैं कि भाई लक्ष्मण तुम अपनी भाभी का ख्याल रखना जब तक मैं ना आऊं तुम यहां से मत हिलना इस पर लक्ष्मण जी कहते हैं भैया यह कोई राक्षसी माया तो नहीं इस बात पर श्री राम जी कहते हैं अगर वह राक्षस होगा उसकी मौत निश्चित है बस तुम अपनी भाभी का ख्याल रखना और वह उस सोने की हिरण के पीछे चले जाते हैं तभी एक आवाज आती है है लक्ष्मण है सीते यह आवाज सुनकर मां सीता व्याकुल हो जाती है और लक्ष्मण जी से कहती है लक्ष्मण क्या तुमने ये आवाज सुनी तुम्हारे भैया लगता है किसी खतरे में हैं तुम अभी जाओ और अपनी भैया की रक्षा करो तभी लक्ष्मण जी कहते हैं नहीं भाभी ऐसा नहीं हो सकता मैं नहीं जा सकता मैं अपनी भैया की आज्ञा का उल्लंघन नहीं कर सकता तभी मां सीता जोर देकर कहती है की तुम अपना जान बचाना चाहते हो तुम कायर हो बस झूठ में ही तुम अपनी भैया के सामने वीरता की दींगे हांकते रहते हो यह सब सुनकर लक्ष्मण जी को सहन नहीं होता है और वह कुटिया के आसपास एक लंबी रेखा खींच कर कहते हैं भाभी आप इस रेखा के भीतर ही रहना जब तक मैं या भैया वापस ना जाए आप इस रेखा से बाहर मत आना यह कहकर लक्ष्मण जी वहां से चले जाते हैं इधर रावण इसी ताक में था कि कब लक्ष्मण वहां से जाएं और मैं सीता का हरण करूं जैसे ही लक्ष्मण वहां से चले जाते हैं तब रावण एक साधु का भेष बनाकर कुटिया में आता है और भिक्षा की मांग करता है मां सीता कुटिया में से साधु की आवाज सुनती है तो भिक्षा लेकर बाहर आती हैं साधु रूपी भेष धारण किए हुए रावण कहता है कि हे देवी अगर तुम्हें भिक्षा देना है तो तुम्हें इस रेखा के बाहर आकर देना होगा क्योंकि वह जानता था कि अगर वह इस रेखा के भीतर जाएगा तो जलकर भस्म हो जाएगा इसलिए उसने मां सीता से जोर देकर कहा अगर तुम इस रेखा से बाहर आकर भिक्षा नहीं दोगी तो तुम्हारा संपूर्ण विनाश होगा और तुम्हारी पति की मृत्यु हो जाएगी यह बात सुनकर मां सीता डर जाती है और रेखा से बाहर आ जाती है जैसे ही मां सीता उस रेखा से बाहर आती है रावण अपने असली रूप में आ जाता है और मां सीता को उठाकर अपने पुष्पक विमान में हरण कर के ले जाता है...

©Anit kumar #NojotoRamleela#जय_सियाराम

Anit kumar kavi

जय श्री राम
दूसरे अध्याय में आपने पढ़ा की किस तरह से मिथिला नरेश राजा जनक जी ने अपनी पुत्री सीता के लिए स्वयंबर रचा था जिसमें भगवान राम ने स्वयंवर में भाग लेकर पिनाक धनुष को प्रत्यक्षा चढ़ाकर एक ही झटके में धनुष के दो टुकड़े कर दिए थे और फिर राजा जनक जी के शर्त के अनुसार माता सीता का विवाह प्रभु राम से संपन्न हो गया और फिर वह राजा जनक जी से आज्ञा लेकर अपने अयोध्या लौट गए अब आगे...

जब श्री राम प्रभु मां सीता और लक्ष्मण सहित अपने अयोध्या लौटे तो अयोध्या वासियों में खुशी की लहर दौड़ गई और राजा दशरथ और तीनों माताओं का तो खुशी का कोई ठिकाना ना रहा बस इसी तरह से खुशी खुशी दिन बीतते चले गए
 लेकिन एक रोज अयोध्या में दुख का पहाड़ टूट पड़ा जब राजा दशरथ जी ने श्री राम जी को राजा बनाना चाहा तो अयोध्या वासियों में खुशी की लहर दौड़ गई
 लेकिन माता  कैकई के दासी मंथरा को यह बात फूटी आंख ना सुहाया और मंथरा ने माता कैकेई के कानों में यह बात डाल दी की अगर राम का राजगद्दी मिल जाएगा तो फिर तुम्हारे पुत्र भरत का राजमहल में कोई मान नहीं होगा और तुम भी कौशल्या के आगे इस राजमहल में तुम्हारा भी मान घट जाएगा इसलिए तुम राजा दशरथ जी से वह तीन वचन मांग लो जो राजा दशरथ जी ने तुम्हें देने को कहा था यह बात सुनते ही माता कैकई के दिमाग घूम गया और वह कोप भवन में जा बैठी इधर राजा दशरथ जी सोचने लगे कि आखिर रानी कैकई को क्या कमी हो गई जो वह कोप भवन में जा बैठी हैं तब वह रानी कैकई का हाल समाचार पूछने कोप भवन में जाते हैं और कैकई से वार्तालाप करते हैं तब रानी कैकेई कहती हैं कि मैं आपसे वह तीन वचन मांगना चाहती हूं जो आपने दिए थे तब राजा दशरथ जी ने कहा अच्छा ठीक है मांगो मैं तुम्हें जरूर दूंगा तब रानी कैकेई ने राजा दशरथ जी से पहले वचन ले लिए कि अगर आप देना चाहते हो तो पहले अपने राम की सौगंध खाओ और राजा दशरथ जी ने राम की सौगंध खा ली तब रानी कैकई ने कहा की मेरे भरत को राजगद्दी मिले और राम को 14 वर्ष का वनवास मिले यह सुनते ही राजा दशरथ जमीन पर गिर पड़े और निस्तेज हो गए तब प्रभु राम को पता चला वह भी माता कैकेई के हाल-चाल लेने कोप भवन में जाते हैं तो देखते क्या है कि महाराज दशरथ जमीन पर पड़े हुए हैं और माता कैकेई सामने खड़ी है यह सब देख कर प्रभु राम पूछते हैं की मां ऐसा क्या हुआ जो पिताजी का यह हाल है तब रानी कैकेई ने यह कहा कि कुछ नहीं इन्होंने पहले कभी मुझे तीन वचन देने का वादा किया कि था सो मैंने मांग लिया तब प्रभु राम कहते हैं कि मां वो तीन वचन क्या है तब रानी कैकेई ने कहा कि मेरे पुत्र भरत को राजगद्दी और तुम्हें 14 वर्ष का वनवास तब श्री राम जी कहते हैं कि यह तो मेरे लिए बहुत सौभाग्य की बात है कि मेरे भरत का राजतिलक होगा और वो राजा बनेगा और रही बात बनवास की तो है मां आपने तो मुझे जंगल का राज दे दिया और यह सब कह कर वह बनवास जाने को तैयारी करने लगे लेकिन तभी माता सीता आगे आई और कहां कि मैं भी आपके साथ चलूंगी तब प्रभु राम ने मां सीता को आज्ञा दे दी फिर लक्ष्मण जी भी आगे आएं और कहां कि जहां मेरे भैया राम होंगे और जहां मेरी भाभी मां होगी वही मैं भी वही रहूंगा और प्रभु राम मां सीता और लक्ष्मण जी सहित  14 वर्ष के वनवास की लिए चल पड़े...

रामायण की कहानियों में तीसरा अध्याय संपन्न ।

©Anit kumar #NojotoRamleela #जय_सियाराम

Anit kumar kavi

जय श्री राम
पहले अध्याय में आपने पढ़ा कि महर्षि विश्वामित्र जी ने श्री राम और लक्ष्मण जी को अपने साथ अयोध्या से ले गए और रास्ते में ताड़का आई जिसको महर्षि विश्वामित्र के कहने पर श्री राम जी ने वध कर दिया अब आगे...
रामायण की कहानी अध्याय दूसरा

महर्षि विश्वामित्र जी को मिथिला नरेश राजा जनक के दरबार में उनकी पुत्री सीता के स्वयंवर का निमंत्रण मिला था जिसमें महर्षि विश्वामित्र जी ने श्री राम और लक्ष्मण जी को चलने की आज्ञा दी इधर महाराज जनक जी ने एक स्वयंवर रचा था कि जो इस शिवजी की धनुष का प्रत्यक्षा चढ़ा देगा उसी के साथ मेरी पुत्री सीता का विवाह होगा सभा जुटी और वहां पर महर्षि विश्वामित्र के साथ श्री राम और लक्ष्मण जी सहित सभी योद्धा झूटे थे और सभी ने एक-एक कर उस शिव जी के धनुष की प्रत्यक्षा चढ़ाने का प्रयास किया लेकिन शिवजी का धनुष किसी ने उठा भी ना पाया यह सब देख कर राजा जनक जी बहुत निराश और हताश हो गए और उन्होंने क्रोध में आकर सभी योद्धाओं को चुनौती दे दी की क्या कोई इस संसार में ऐसा वीर नहीं जो इस धनुष की प्रत्यक्षा चढा सके यह सब सुनकर लक्ष्मण जी को क्रोध आ गया और उन्होंने राजा जनक जी से कहा यह आपकी गलतफहमी है यह संसार वीरों से खाली नहीं है तभी महर्षि विश्वामित्र जी ने भगवान श्री राम जी को आज्ञा दी की वह इस धनुष की प्रत्यक्षा  चढ़ाएं और इस स्वयंवर में भाग लेकर सीता जी से विवाह करें महर्षि विश्वामित्र जी की आज्ञा पाते ही श्री राम जी उठ खड़े हुए और धनुष की ओर आगे बढ़कर पहले उस धनुष को प्रणाम किया और फिर बड़े सहजता से उस धनुष को उठाकर प्रत्यक्षा चढ़ा कर  तोड़ दिये उसके टूटते ही पूरी पृथ्वी डोल गई और फिर भगवान परशुराम जी को पता चल गया कि उनके आराध्य शिवजी का धनुष किसी ने भंग कर दिया है और भगवान परशुराम जी वहां पर पहुंच गए और बहुत ही गुस्से से उन्होंने कहा ऐसा कोन छत्रिय है जिसने मेरे आराध्य शिव जी का धनुष भंग किया है तभी श्री राम जी ने बड़े नर्मता से उनका अभिवादन किया और उनसे कहा कि मैंने ही यह धनुष भंग किया है यह सब सुनकर भगवान परशुराम और भी क्रोधित हो उठे लेकिन बाद में महर्षि विश्वामित्र जी के समझाने पर शांत हो गए और शांति भाव से श्री राम जी को देखने लगे तभी श्री राम जी को देखते ही उनके भीतर नारायण का रूप दिखने लगा और वह समझ गई श्री राम जी के रूप में भगवान नारायण ही इस धरती पर अवतार लिए हैं और फिर वो उन्हें प्रणाम कर वहां से चल दिए और फिर उनके जाने के बाद सीता जी ने श्री राम जी का पति रूप में वरण किया और गले में माला पहना कर उन्हें अपना पति परमेश्वर स्वीकार किया इस तरह से यह विवाह संपन्न हो गई और फिर राम लक्ष्मण और सीता जी राजा जनक जी से आज्ञा लेकर अपने अयोध्या लौट चलें...!

©Anit kumar #NojotoRamleela#जय_सियाराम

Anit kumar kavi

जय श्री राम भक्तजनों
रामायण की कहानी में पहला अध्याय ।

बात त्रेता युग की है जब अयोध्या के महाराज दशरथ हुआ करते थे जो बहुत ही दयालु और न्याय प्रिय राजा थे जो अपनी प्रजा का बहुत ही ख्याल रखते थे उनकी तीन पत्नियां थी जिनमें कौशल्या, सुमित्रा, और कैकई थी तीनों ही रानियां मातृ सुख से वंचित थी तब राजा दशरथ को चिंता हुई और वह अपने गुरुदेव वशिष्ठ जी से सलाह लेने उनके आश्रम पहुंचे तब गुरुदेव वशिष्ठ जी ने कहां की आपको एक अखंड यज्ञ करना होगा तब जाकर सुयोग पुत्र की प्राप्ति होगी यह सब सुनकर राजा दशरथ जी ने यज्ञ की तैयारी की और फिर यज्ञ हवन संपन्न होने के बाद कुछ ही दिन बीते कि उन्हें चार पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई जिनमें मां कौशल्या के कोख से भगवान श्रीराम का जन्म हुआ मां सुमित्रा के कोख से लक्ष्मण और शत्रुघ्न का जन्म हुआ और मां कैकई के गर्भ से भरत जी का जन्म हुआ और उन सभी का गुरुदेव वशिष्ठ जी ने नामकरण किया और चारों बालकों नाम राम लक्ष्मण भारत शत्रुघ्न पड़ा और फिर चार पुत्र रत्न की प्राप्ति से महाराज दशरथ बहुत ही प्रसन्न हुए और अयोध्या वासी खुशी से नाचने गाने लगे पुरी अयोध्या नई उत्साह और उमंग से ओतप्रोत थी और इधर तीनों माताऐं भी मातृ सुख से निहाल हो गई थी और राजा दशरथ के तो खुशी का कोई ठिकाना ही ना था तीनों रानियां और राजा दशरथ अपने चार पुत्रों को अपने आंगन में खेलते हुए देखकर बहुत प्रसन्न हो रहे थे फिर इसी तरह से दिन बिता गया और चारों पुत्र बड़े हो गए फिर गुरुदेव वशिष्ठ जी ने उन चारों पुत्रों का शिक्षा दीक्षा का भार संभाला और उन्हें अपने आश्रम ले गए और चारों पुत्रों को योग विद्या और धर्नुविद्या का ज्ञान दिया और फिर सभी ज्ञान अर्जित कर चारों भाई अपने राज महल में लौट आए लेकिन कुछ ही दिन बीते थे की राजा दशरथ जी के महल में महर्षि विश्वामित्र पधारें और उन्होंने अपने यज्ञ हेतु रक्षा के लिए श्री राम और लक्ष्मण जी को साथ ले जाने की बात कही तब महाराज दशरथ जी ने थोड़ा संकुचऐं लेकिन फिर लोकहित के बारे में सोच कर और महर्षि विश्वामित्र की आज्ञा का पालन करते हुए उन्होंने श्री राम और लक्ष्मण को महर्षि विश्वामित्र के साथ जाने की अनुमति दे दी और फिर महर्षि विश्वामित्र श्री राम लक्ष्मण को साथ लेकर अपने आश्रम चल दिए आगे चलते चलते उन्हें एक भयानक राक्षस नी ताड़का दिखी तब महर्षि विश्वामित्र जी ने श्री राम जी से उसका संहार करने को कहा और फिर श्री राम जी ने अपने एक ही बाण से उस ताड़का राक्षणी को धारा सा ही कर दिया और फिर वह अपने मार्ग की ओर आगे अग्रसर हुए....

आगे की रामायण की कहानी अध्याय दूसरा में जरूर  पढ़िएगा ।
जय सियाराम

©Anit kumar #NojotoRamleela#जय_सियाराम
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