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Ruchit Valand
जहा कमरों मे कैद हो जाती है जिंदगी या... अक्षर लोग उसे बड़ा शहर कहते है...!! ©Ruchit Valand #कमरे #Ruchitvaland
Shubham Bhardwaj
बंद कमरों सी जिंदगी न बना। उनमें घुटते-मरते अरमान देखे हैं।। चंद लम्हों को खोल दे बंद खिड़कियाँ। फिर हर तरफ खुशियों के मुकाम देखें हैं।। ©Shubham Bhardwaj #andhere #बंद #कमरे #सी #जिंदगी #नही #बना
SK pant
वो देख रहे हो, वहां पर.... वहां पर गोलगप्पे अच्छे मिलते है 😊 कल वहीं चलेंगे // 😂😂😂 #कम #कमी #कमरे #Coffee #comedy#you #faraway Khushi Sankhla nanhi_shayrana ariya rehmani Cutipie Heart beat..... 💞
Dr Manju Juneja
बंद कमरे में भी साँसे लिखी जा सकती हैं ओ खुले आसमाँ की बुलन्दी को छूने वाले #बंद #कमरे #साँसे #लिखी #खुले #आसमाँ#बुलन्दी #छूने #मगरूर #शायरी
Roman Jain
मेरे कमरे में तूफ़ान आया है हॉ.... मेरे कमरे में तूफान आया है तेवर इतने की hight density. जिसने रख दिया है सब उथल-पुथल कर! जो वबण्डर सरी का था. जिसने रख दिया है मुझे तोड कर! जिसने बिखेर दिया मुझे जर्रे-जर्रे सा! खैर ऐ उसका काम था..सो किया, पर जो अजीब था वो ये की. न दरबाजे खटके, न खिडकिया लटकी, न अवाज थी, न धूल उडी, न घर धूलधुसिर हुआ! न सामान गिरा, न बिखरा, न टूटा. फिर भी तूफान था जो मेरे कमरे में आया था. जिसने रख दिया मुझे तोड कर. सब ज्यो का त्यो हैं,मुझे छोड कर! अनकही...
अनकही...
read moreKapil Nayyar
चलते चलते कहाँ पहुंच गया हूं मैं... कहाँ गई मेरी गलियां, मेरा शहर कहाँ रह गया... ईंट ईंट जोड़ के बनाया था ये मकान... खाली कमरे हैं बचे, मेरा घर कहाँ रह गया... चिल्लाना जो चुभता थाचलते चलते कहाँ पहुंच गया हूं मैं... कहाँ गई मेरी गलियां, मेरा शहर कहाँ रह गया... ईंट ईंट जोड़ के बनाया था ये मकान... खाली कमरे हैं बचे, मेरा घर कहाँ रह गया... चिल्लाना जो चुभता था, वो अब बहोत खलता है... रुक सा गया है सब कुछ, मेरा सफर कहाँ रह गया... कहा था उसने के एक पल के लिए भी मुझसे दूर नहीं जाएगा... मजबूरियों की कैद में, मेरा दिलबर कहाँ रह गया... मजबूरियों की कैद में, मेरा दिलबर कहाँ रह गया... #MeraShehar
samandar Speaks
खिड़कियों के परदों पे,सदियों की कहानीयाँ हैं शाम सहर दरो दिवारें सभी खामोश हैं कभी माँ हटाती थी,लगाती थी तमाम परदे आज खिड़कियों पे विरानियाँ है, दर पे तन्हाइयाँ हैं हर रोज मेरी अंगड़ाइयों से गुजरता था सुरज अहिस्ता झाकती थी हवा मेरे कमरे मे माँ के वजूद की आज भी मेरे घर मे परछाइयाँ हैं गुलाब सी पंखुड़ियों पे अधरों की अब भी निशानियाँ हैं शाम को सितारे बरसते थे मेरे छत पे और झुमती थी जमीं माँ के हाथों के पखें संग कोयल खामोश हो सुनती लोरियों के स्वरबंध को जर्रे जर्रे मे आज भी राजा रानी की वो कहानियाँ हैं माँ नहीं है मेरे कमरे मे तन्हा विरानियाँ हैं खिड़कियों के परदे पे सदियो की कहानियाँ हैं राजीव Robin Katyan Visu Joshi Dipak Maurya Princesslappi Karma
Robin Katyan Visu Joshi Dipak Maurya Princesslappi Karma
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