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Best वर्ण Shayari, Status, Quotes, Stories

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मलंग

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Anupama Jha

गौर वर्ण पर रूप सदैव इतराया है
श्वेत बालों को अपने रंग रंगकर
काला रंग धीमे से मुस्काया है #गौर#वर्ण #काला #yqdidi

वेदों की दिशा

।। ओ३म् ।।

कारुरहं ततो भिषगुपलप्रक्षिणी नना ।
 नानाधियो वसूयवोऽनु गा इव तस्थिमेन्द्रायेन्दो परि स्रव ॥

पद पाठ
का॒रुः । अ॒हम् । त॒तः । भि॒षक् । उ॒प॒ल॒ऽप्र॒क्षिणी॑ । न॒ना । नाना॑ऽधियः । व॒सु॒ऽयवः॑ । अनु॑ । गाःऽइ॑व । त॒स्थि॒म॒ । इन्द्रा॑य । इ॒न्दो॒ इति॑ । परि॑ । स्र॒व॒ ॥ 

(कारुः, अहं) मैं शिल्पविद्या की शक्ति रखता (ततः) पुनः (भिषक्) वैद्य भी बन सकता हूँ, (नना) मेरी बुद्धि नम्र है अर्थात् मैं अपनी बुद्धि को जिधर लगाना चाहूँ, लगा सकता हूँ, (उपलप्रक्षिणी) पाषाणों का संस्कार करनेवाली मेरी बुद्धि मुझे मन्दिरों का निर्माता भी बना सकती है, इस प्रकार (नानाधियः) नाना कर्मोंवाले मेरे भाव (वसुयवः) जो ऐश्वर्य्य को चाहते हैं, वे विद्यमान हैं। हम लोग (अनु, गाः) इन्द्रियों की वृत्तियों के समान ऊँच-नीच की ओर जानेवाले (तस्थिम) हैं, इसलिये (इन्दो) हे प्रकाशस्वरूप परमात्मन् ! हमारी वृत्तियों को (इन्द्राय) उच्चैश्वर्य्य के लिये (परि,स्रव) प्रवाहित करें ॥

(Karuh, ego) I have the power of craftsmanship (sic). I can also become a (practitioner) Vaidya again, (Nana) My intellect is meek, that is, I want to direct my intellect, I can plant, (Upalakshrini) who performs the rituals of the stones.  My intellect can also make me the creator of temples, thus (Nanadhiyah), those of my deeds with great deeds (Vasuyaivah), who want to have the greatness, exist.  We (anu, ga:) are (tasthim) going towards high and low as the instincts of the senses, so (Indo) O God of light!  Make our vrittis (sense) flow (pariva, sravana) to the Supreme Being.

( ऋग्वेद ९.११२.३ ) #ऋग्वेद #वेद #कर्मफल_व्यवस्था #कर्मफल #वर्ण #ब्राह्मण #क्षत्रिय #वैश्य #शूद्र

वेदों की दिशा

।। ओ३म् ।।

तपसे शुद्रम

बहुत परिश्रमी ,कठिन कार्य करने वाला ,साहसी और परम उद्योगों अर्थात तप को करने वाले आदि

Very hard working, hard working, courageous and ultimate industries ie those who do penance etc.

( यजुर्वेद ३०.५ ) #यजुर्वेद #वेद #मंत्र #शूद्र #तप #sudras #वर्ण #वर्ण_व्यवस्था

Pnkj Dixit

स्वादिष्ट व्यंजनों से काया तृप्त होती है । सप्रेम स्वर व्यंजन का भी आहार लिया कीजिए । हींग पुदीना गुड़ छाछ लाभकारी है । रस छंद अलंकार से शुद्ध सृजन किया कीजिए । वर्ण - वर्ण के लोग यहाँ , भांति-भांति परिवेश है । उर्दू हिन्दी की छोटी भगिनी,गूढ़तम प्रयोग किया कीजिए ।

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#OpenPoetry स्वादिष्ट व्यंजनों से काया तृप्त होती है ।
सप्रेम स्वर व्यंजन का भी आहार लिया कीजिए ।

हींग पुदीना गुड़ छाछ लाभकारी है ।
रस छंद अलंकार से शुद्ध  सृजन किया कीजिए ।

वर्ण - वर्ण के लोग यहाँ , भांति-भांति परिवेश है ।
उर्दू हिन्दी की छोटी भगिनी,गूढ़तम प्रयोग किया कीजिए ।

आचार-विचार, रहन-सहन अनेकानेक विषमता बहुत है ।
पर ,संस्कृति संस्कार भारतीय एकता,प्रचार किया कीजिए ।

३०/०७/२०१९
🌷👰💓💝
...✍ कमल शर्मा'बेधड़क' स्वादिष्ट व्यंजनों से काया तृप्त होती है ।
सप्रेम स्वर व्यंजन का भी आहार लिया कीजिए ।

हींग पुदीना गुड़ छाछ लाभकारी है ।
रस छंद अलंकार से शुद्ध  सृजन किया कीजिए ।

वर्ण - वर्ण के लोग यहाँ , भांति-भांति परिवेश है ।
उर्दू हिन्दी की छोटी भगिनी,गूढ़तम प्रयोग किया कीजिए ।

Pnkj Dixit

स्वादिष्ट व्यंजनों से काया तृप्त होती है । सप्रेम स्वर व्यंजन का भी आहार लिया कीजिए । हींग पुदीना गुड़ छाछ लाभकारी है । रस छंद अलंकार से शुद्ध सृजन किया कीजिए । वर्ण - वर्ण के लोग यहाँ , भांति-भांति परिवेश है । उर्दू हिन्दी की छोटी भगिनी,गूढ़तम प्रयोग किया कीजिए ।

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#OpenPoetry स्वादिष्ट व्यंजनों से काया तृप्त होती है ।
सप्रेम स्वर व्यंजन का भी आहार लिया कीजिए ।

हींग पुदीना गुड़ छाछ लाभकारी है ।
रस छंद अलंकार से शुद्ध  सृजन किया कीजिए ।

वर्ण - वर्ण के लोग यहाँ , भांति-भांति परिवेश है ।
उर्दू हिन्दी की छोटी भगिनी,गूढ़तम प्रयोग किया कीजिए ।

आचार-विचार, रहन-सहन अनेकानेक विषमता बहुत है ।
पर ,संस्कृति संस्कार भारतीय एकता,प्रचार किया कीजिए ।

३०/०७/२०१९
🌷👰💓💝
...✍ कमल शर्मा'बेधड़क' स्वादिष्ट व्यंजनों से काया तृप्त होती है ।
सप्रेम स्वर व्यंजन का भी आहार लिया कीजिए ।

हींग पुदीना गुड़ छाछ लाभकारी है ।
रस छंद अलंकार से शुद्ध  सृजन किया कीजिए ।

वर्ण - वर्ण के लोग यहाँ , भांति-भांति परिवेश है ।
उर्दू हिन्दी की छोटी भगिनी,गूढ़तम प्रयोग किया कीजिए ।

आयुष पंचोली

ब्राह्मण क्या हैं? क्या ब्राह्मण कोई जाती हैं, या वर्ण हैं, या कुछ और हैं। और हैं तो क्या हैं, जो उसे शास्त्रो मे इतना ऊंचा स्थान दिया गया..!!! ब्राह्मण जिसका अर्थ सीधे ब्रम्ह से जुडा हैं। अगर देखा जाये तो ब्राह्मण अर्थात् "ब्रह्म जानाती, इति ब्राह्मण" ऐसा कहां गया हैं, मतलब "जो ब्रम्ह को जान चुका हैं, वह ब्राह्मण हैं। जिसे ब्रह्म का ज्ञान, तत्व का ज्ञान हो चुका हैं वही ब्राह्मण हैं। पर क्या सच मे ऐसा हैं। जब सृष्टि की रचना हुई, तब सबसे पहले सप्तऋषियो को जन्म दिया गया। जिन्होने कठोर तपस्या से ब्रम्ह ज्ञान को जाना, तब जाके वह ब्राह्मण कहलाये गये। और फिर उन्होने ही, गृहस्थ जीवन की शुरुवात कर, संसार को गृहस्थ आश्रम का पाठ पढ़ाया। अब अगर देखा जायें, तो जो गौत्र हम लगाते हैं, वह सभी इन सप्तऋषियो के नाम से ही हैं । और अगर कुल मे जन्म लेने से ही किसीका वर्ण निर्धारित किया जाये तो इस हिसाब से तो दुनिया का हर एक इन्सान ही ब्राह्मण हो जायेगा। क्योकी इन्सान की उत्पत्ति तो इन 7 सप्तऋषियों के कुल मे ही कही ना कही होगी। उसका मूल उसकी जड़ तो यही हैं ना। मगर ना ऐसा कुछ हैं, ना ही ऐसा कुछ हो सकता हैं। क्योकी अगर कुल मे उतपन्न होना ही सबकुछ होता तो शायद, वर्ण व्यवस्था की जरुरत समाज को नही पड़ती। अब अगर इसके बाद भी समाज चार वर्णो मे विभाजित हुआ, तो भी कुल को प्रधानता किसी वेद, किसी शास्त्र ने कभी प्रदान नही करी । हर चीज कर्म आधारित ही रखी गई । और कर्मो का विभाजन और चयन व्यक्ति के ऊपर था उसे कौनसा कर्म करना हैं। सबने अपने अनुसार अपने कर्म, निर्धारित किये। और उन्हे करने लगे। और यही कर्म उनकी पहचान बन गये। जो बाद मे जातियों मे बँट गये। #kuchaisehi #ayushpancholi #hindimerijaan #ayuspiritual

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ब्राह्मण क्या हैं? ब्राह्मण क्या हैं? क्या ब्राह्मण कोई जाती हैं, या वर्ण हैं, या कुछ और हैं। और हैं तो क्या हैं, जो उसे शास्त्रो मे इतना ऊंचा स्थान दिया गया..!!!

ब्राह्मण जिसका अर्थ सीधे ब्रम्ह से जुडा हैं। अगर देखा जाये तो ब्राह्मण अर्थात् "ब्रह्म जानाती, इति ब्राह्मण" ऐसा कहां गया हैं, मतलब "जो ब्रम्ह को जान चुका हैं, वह ब्राह्मण हैं। जिसे ब्रह्म का ज्ञान, तत्व का ज्ञान हो चुका हैं वही ब्राह्मण हैं। 

पर क्या सच मे ऐसा हैं। जब सृष्टि की रचना हुई, तब सबसे पहले सप्तऋषियो को जन्म दिया गया। जिन्होने कठोर तपस्या से ब्रम्ह ज्ञान को जाना, तब जाके वह ब्राह्मण कहलाये गये। और फिर उन्होने ही, गृहस्थ जीवन की शुरुवात कर, संसार को गृहस्थ आश्रम का पाठ पढ़ाया। अब अगर देखा जायें, तो जो गौत्र हम लगाते हैं, वह सभी इन सप्तऋषियो के नाम से ही हैं । और अगर कुल मे जन्म लेने से ही किसीका वर्ण निर्धारित किया जाये तो इस हिसाब से तो दुनिया का हर एक इन्सान ही ब्राह्मण हो जायेगा। क्योकी इन्सान की उत्पत्ति तो इन 7 सप्तऋषियों के कुल मे ही कही ना कही होगी। उसका मूल उसकी जड़ तो यही हैं ना।
मगर ना ऐसा कुछ हैं, ना ही ऐसा कुछ हो सकता हैं। क्योकी अगर कुल मे उतपन्न होना ही सबकुछ होता तो शायद, वर्ण व्यवस्था की जरुरत समाज को नही पड़ती। 
अब अगर इसके बाद भी समाज चार वर्णो मे विभाजित हुआ, तो भी कुल को प्रधानता किसी वेद, किसी शास्त्र ने कभी प्रदान नही करी । हर चीज कर्म आधारित ही रखी गई । और कर्मो का विभाजन और चयन व्यक्ति के ऊपर था उसे कौनसा कर्म करना हैं। सबने अपने अनुसार अपने कर्म, निर्धारित किये। और उन्हे करने लगे। 
और यही कर्म उनकी पहचान बन गये। जो बाद मे जातियों मे बँट गये।

Vinni Gharami

नमस्कार मेरे प्रिय पाठकों🙏🙏 भारत में काफी सारे लोग हैं जो हिंदू धर्म के वर्ण व्यवस्था पर लांछन लगाते हैं दुख की बात यह है इसमें अधिकतर हिंदू भी शामिल है। इस रचना में मैंने वर्ण व्यवस्था का संक्षिप्त और सकारात्मक उल्लेख किया है आशा है कुछ नासमझ व्यक्ति समझेंगे। वर्ण व्यवस्था नहीं, ये ब्रह्म अवस्था है। ब्राह्मण,क्षत्रिय,वैश्य,शूद्र में बांटा कर्म, यह उस ईश्वर की श्रेष्ठता है।

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 नमस्कार मेरे प्रिय पाठकों🙏🙏
भारत में काफी सारे लोग हैं जो हिंदू धर्म के वर्ण व्यवस्था पर लांछन लगाते हैं दुख की बात यह है इसमें अधिकतर हिंदू भी शामिल है। इस रचना में मैंने वर्ण व्यवस्था का संक्षिप्त और सकारात्मक उल्लेख किया है आशा है कुछ नासमझ व्यक्ति समझेंगे।

वर्ण व्यवस्था नहीं,
ये ब्रह्म अवस्था है।
ब्राह्मण,क्षत्रिय,वैश्य,शूद्र में बांटा कर्म,
यह उस ईश्वर की श्रेष्ठता है।

Varun Savita (वर्ण)

Jogi Varun Savita (वर्ण)'s Stories in 2018 #Throwback2018 Jogi Varun Savita (वर्ण) की कहानियाँ 2018 में #लम्हें2018 2018 #Nojoto2018

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Anil Siwach

|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 9 || श्री हरि: || 1 - बद्ध कौन? 'बद्धो हि को यो विषयानुरागी' अकेला साधु, शरीरपर केवल कौपीन और हाथमें एक तूंबीका जलपात्र। गौर वर्ण, उन्नत भाल, अवस्था तरुणाई को पार करके वार्धक्यकी देहली पर खडी। जटा बढायी नहीं गयी, बनायी नहीं गयी; किन्तु बन गयी है। कुछ श्वेत-कृष्ण-कपिश वर्ण मिले-जुले केश उलझ गये हैं परस्पर।

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|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 9

|| श्री हरि: ||
1 - बद्ध कौन?
 
'बद्धो हि को यो विषयानुरागी'

अकेला साधु, शरीरपर केवल कौपीन और हाथमें एक तूंबीका जलपात्र। गौर वर्ण, उन्नत भाल, अवस्था तरुणाई को पार करके वार्धक्यकी देहली पर खडी। जटा बढायी नहीं गयी, बनायी नहीं गयी; किन्तु बन गयी है। कुछ श्वेत-कृष्ण-कपिश वर्ण मिले-जुले केश उलझ गये हैं परस्पर।
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