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Ajay Amitabh Suman
=========================== क्षोभ युक्त बोले कृत वर्मा नासमझी थी बात भला , प्रश्न उठे थे क्या दुर्योधन मुझसे थे से अज्ञात भला? नाहक हीं मैंने माना दुर्योधन ने परिहास किया, मुझे उपेक्षित करके अश्वत्थामा पे विश्वास किया? =========================== सोच सोच के मन में संशय संचय हो कर आते थे, दुर्योधन के प्रति निष्ठा में रंध्र क्षय कर जाते थे। कभी मित्र अश्वत्थामा के प्रति प्रतिलक्षित द्वेष भाव, कभी रोष चित्त में व्यापे कभी निज सम्मान अभाव। =========================== सत्यभाष पे जब भी मानव देता रहता अतुलित जोर, समझो मिथ्या हुई है हावी और हुआ है सच कमजोर। अपरभाव प्रगाढ़ित चित्त पर जग लक्षित अनन्य भाव, निजप्रवृत्ति का अनुचर बनता स्वामी है मानव स्वभाव। =========================== और पुरुष के अंतर मन की जो करनी हो पहचान, कर ज्ञापित उस नर कर्णों में कोई शक्ति महान। संशय में हो प्राण मनुज के भयाकान्त हो वो अतिशय, छद्म बल साहस का अक्सर देने लगता नर परिचय। =========================== उर में नर के गर स्थापित गहन वेदना गूढ़ व्यथा, होठ प्रदर्शित करने लगते मिथ्या मुस्कानों की गाथा। मैं भी तो एक मानव हीं था मृत्य लोक वासी व्यवहार, शंकित होता था मन मेरा जग लक्षित विपरीतअचार। =========================== मुदित भाव का ज्ञान नहीं जो बेहतर था पद पाता था, किंतु हीन चित्त मैं लेकर हीं अगन द्वेष फल पाता था। किस भाँति भी मैं कर पाता अश्वत्थामा को स्वीकार, अंतर में तो द्वंद्व फल रहे आंदोलित हो रहे विकार? =========================== अजय अमिताभ सुमन : सर्वाधिकार सुरक्षित ©Ajay Amitabh Suman #Kavita #Duryodhana #Ashvatthama #Mahadev #Kritvarma #Kripacharya #Mahabharata #Pandav #Kaurav #Teachersday
Ajay Amitabh Suman
============================ महा युद्ध होने से पहले कतिपय नियम बने पड़े थे, हरि भीष्म ने खिंची रेखा उसमें योद्धा युद्ध लड़े थे। एक योद्धा योद्धा से लड़ता हो प्रतिपक्ष पे गर अड़ता हो, हस्तक्षेप वर्जित था बेशक निजपक्ष का योद्धा मरता हो। ============================ पर स्वार्थ सिद्धि की बात चले स्व प्रज्ञा चित्त बाहिर था, निरपराध का वध करने में पार्थ निपुण जग जाहिर था। सव्यसाची का शिष्य सात्यकि एक योद्धा से लड़ता था, भूरिश्रवा प्रतिपक्ष प्रहर्ता उसपे हावी पड़ता था। ============================ भूरिश्रवा यौधेय विकट था पार्थ शिष्य शीर्ष हरने को, दुर्भाग्य प्रतीति परिलक्षित थी पार्थ शिष्य था मरने को। बिना चेताए उस योधक पर अर्जुन ने प्रहार किया, युद्ध में नियमचार बचे जो उनका सर्व संहार किया। ============================ रण के नियमों का उल्लंघन कर अर्जुन ने प्राण लिया , हाथ काटकर उद्भट का कैसा अनुचित दुष्काम किया। अर्जुन से दुष्कर्म फलाकर उभयहस्त से हस्त गवांकर, बैठ गया था भू पर रण में एक हस्त योद्धा पछताकर। ============================ पछताता था नियमों का नाहक उसने सम्मान किया , पछतावा कुछ और बढ़ा जब सात्यकि ने दुष्काम किया। जो कुछ बचा हुआ अर्जुन से वो दुष्कर्म रचाया था, शस्त्रहीन हस्तहीन योद्धा के सर तलवार चलाया था । ============================ कटा सिर शूर का भू पर विस्मय में था वो पड़ा हुआ, ये कैसा दुष्कर्म फला था धर्म पतित हो गड़ा हुआ? शिष्य मोह में गर अर्जुन का रचा कर्म ना कलुसित था, पुत्र मोह में धृतराष्ट्र का अंधापन कब अनुचित था? ======================= अजय अमिताभ सुमन: सर्वाधिकार सुरक्षित ©Ajay Amitabh Suman इस दीर्घ कविता के पिछले भाग अर्थात् चौदहवें भाग में दिखाया गया कि प्रतिशोध की भावना से ग्रस्त होकर अर्जुन द्वारा जयद्रथ का वध इस तरह से किया गया कि उसका सर धड़ से अलग होकर उसके तपस्वी पिता की गोद में गिरा और उसके तपस्या में लीन पिता का सर टुकड़ों में विभक्त हो गया कविता के वर्तमान प्रकरण अर्थात् पन्द्रहवें भाग में देखिए महाभारत युद्ध नियमानुसार अगर दो योद्धा आपस में लड़ रहे हो तो कोई तीसरा योद्धा हस्तक्षेप नहीं कर सकता था। जब अर्जुन के शिष्य सात्यकि और भूरिश्रवा के बीच युद्ध चल रहा था और युद्ध मे
इस दीर्घ कविता के पिछले भाग अर्थात् चौदहवें भाग में दिखाया गया कि प्रतिशोध की भावना से ग्रस्त होकर अर्जुन द्वारा जयद्रथ का वध इस तरह से किया गया कि उसका सर धड़ से अलग होकर उसके तपस्वी पिता की गोद में गिरा और उसके तपस्या में लीन पिता का सर टुकड़ों में विभक्त हो गया कविता के वर्तमान प्रकरण अर्थात् पन्द्रहवें भाग में देखिए महाभारत युद्ध नियमानुसार अगर दो योद्धा आपस में लड़ रहे हो तो कोई तीसरा योद्धा हस्तक्षेप नहीं कर सकता था। जब अर्जुन के शिष्य सात्यकि और भूरिश्रवा के बीच युद्ध चल रहा था और युद्ध मे
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इस दीर्घ कविता के पिछले भाग अर्थात् तेरहवें भाग में अभिमन्यु के गलत तरीके से किये गए वध में जयद्रथ द्वारा निभाई गई महत्वपूर्ण भूमिका और तदुपरांत केशव और अर्जुन द्वारा अभिमन्यु की मृत्यु का प्रतिशोध लेने के लिए रचे गए प्रपंच के बारे में चर्चा की गई थी। कविता के वर्तमान प्रकरण अर्थात् चौदहवें भाग में देखिए कैसे प्रतिशोध की भावना से वशीभूत होकर अर्जुन ने जयद्रथ का वध इस तरह से किया कि उसका सर धड़ से अलग होकर उसके तपस्वी पिता की गोद में गिरा और उसके पिता का सर टुकड़ों में विभक्त हो गया। प्रतिशोध की भ
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इस दीर्घ रचना के पिछले भाग अर्थात् बारहवें भाग में आपने देखा अश्वत्थामा ने दुर्योधन को पाँच कटे हुए नर कंकाल समर्पित करते हुए क्या कहा। आगे देखिए वो कैसे अपने पिता गुरु द्रोणाचार्य के अनुचित तरीके के किये गए वध के बारे में दुर्योधन ,कृतवर्मा और कृपाचार्य को याद दिलाता है। फिर तर्क प्रस्तुत करता है कि उल्लू दिन में अपने शत्रु को हरा नहीं सकता इसीलिए वो रात में हीं घात लगाकर अपने शिकार पर प्रहार करता है। पांडव के पक्ष में अभी भी पाँचों पांडव , श्रीकृष्ण , शिखंडी , ध्रीष्टदयुम्न आदि और अनगिनत
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इस दीर्घ रचना के पिछले भाग अर्थात् ग्यारहवें भाग में आपने देखा कि युद्ध के अंत में भीम द्वारा जंघा तोड़ दिए जाने के बाद दुर्योधन मरणासन्न अवस्था में हिंसक जानवरों के बीच पड़ा हुआ था। आगे देखिए जंगली शिकारी पशु बड़े धैर्य के साथ दुर्योधन की मृत्यु का इन्तेजार कर रहे थे और उनके बीच फंसे हुए दुर्योधन को मृत्यु की आहट को देखते रहने के अलावा कोई चारा नहीं था। परंतु होनी को तो कुछ और हीं मंजूर थी । उसी समय हाथों में पांच कटे हुए नर कपाल लिए अश्वत्थामा का आगमन हुआ और दुर्योधन की मृत्यु का इन्तेजार कर
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दुर्योधन कब मिट पाया:भाग-11 इस दीर्घ कविता के दसवें भाग में दुर्योधन द्वारा श्रीकृष्ण को हरने का असफल प्रयास और उस असफल प्रयास के प्रतिउत्तर में श्रीकृष्ण वासुदेव द्वारा स्वयं के विभूतियों के प्रदर्शन का वर्णन किया गया है।अर्जुन सरल था तो उसके प्रति कृष्ण मित्रवत व्यवहार रखते थे, वहीं कपटी दुर्योधन के लिए वो महा कुटिल थे। इस भाग में देखिए , युद्ध के अंत में भीम द्वारा जंघा तोड़ दिए जाने के बाद मरणासन्न अवस्था में दुर्योधन हिंसक जानवरों के बीच पड़ा हुआ था। जानवर की वृत्ति रखने वाला योद्धा स्वयं
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दुर्योधन कब मिट पाया:भाग-10 #Poetry #hindi_kavita #Duryodhana #Mahabharata #Krishna #pandav #Kaurav #arjun #Vishvarup #Bhim
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दुर्योधन कब मिट पाया:भाग-9 #Poetry #hindi_kavita #Duryodhana #Mahabharata #Krishna #pandav #Kaurav #arjun #Vishvarup #Bhim
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