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Ajay Amitabh Suman
................. ©Ajay Amitabh Suman #अश्वत्थामा,#द्रोणवध,#महाभारत,#द्रोणाचार्य, #दुर्योधन,#Ashvatthama,#Mahabharata,#Duryodhan,#Mythology दुर्योधन कब मिट पाया:भाग-37 =============== महाभारत युद्ध के समय द्रोणाचार्य की उम्र लगभग चार सौ साल की थी। उनका वर्ण श्यामल था, किंतु सर से कानों तक छूते दुग्ध की भाँति श्वेत केश उनके मुख मंडल की शोभा बढ़ाते थे। अति वृद्ध होने के बावजूद वो युद्ध में सोलह साल के तरुण की भांति हीं रण कौशल का प्रदर्शन कर रहे थे। गुरु द्रोण का पराक्रम ऐसा था कि उनका वध ठीक वैसे हीं असंभव माना जा रहा था जैसे कि सूर
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............ ©Ajay Amitabh Suman दुर्योधन कब मिट पाया:भाग-36 #अश्वत्थामा,#द्रोणवध,#महाभारत, #दुर्योधन #पौराणिक,#Ashvatthama, #Mahabharata,#Duryodhan,#Mythology, #Epic द्रोण को सहसा अपने पुत्र अश्वत्थामा की मृत्यु के समाचार पर विश्वास नहीं हुआ। परंतु ये समाचार जब उन्होंने धर्मराज के मुख से सुना तब संदेह का कोई कारण नहीं बचा। इस समाचार को सुनकर गुरु द्रोणाचार्य के मन में इस संसार के प्रति विरक्ति पैदा हो गई। उनके लिये जीत और हार का कोई मतलब नहीं रह गया था। इस निराशा भरी विरक्त अवस्था में गुरु द्रोणाचार्य ने अपने अस्त्रों और शस
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................ ©Ajay Amitabh Suman दुर्योधन कब मिट पाया:भाग-35 #अश्वत्थामा,#द्रोणवध,#महाभारत,#द्रोणाचार्य,#पौराणिक,#Ashvatthama, #Mahabharata,#Duryodhan,#Mythology,#Epic किसी व्यक्ति के जीवन का लक्ष्य जब मृत्यु के निकट पहुँच कर भी पूर्ण हो जाता है तब उसकी मृत्यु उसे ज्यादा परेशान नहीं कर पाती। अश्वत्थामा भी दुर्योधनको एक शांति पूर्ण मृत्यु प्रदान करने की ईक्छा से उसको स्वयं द्वारा पांडवों के मारे जाने का समाचार सुनाता है, जिसके लिए दुर्योधन ने आजीवन कामना की थी । युद्ध भूमि में घायल पड़ा दुर्योधन जब अश्वत्
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कृपाचार्य कृतवर्मा सहचर मुझको फिर क्या होता भय, जिसे प्राप्त हो वरदहस्त शिव का उसकी हीं होती जय। त्रास नहीं था मन मे किंचित निज तन मन व प्राण का, पर चिंता एक सता रही पुरुषार्थ त्वरित अभियान का। धर्माधर्म की बात नहीं न्यूनांश ना मुझको दिखता था, रिपु मुंड के अतिरिक्त ना ध्येय अक्षि में टिकता था। ना सिंह भांति निश्चित हीं किसी एक श्रृगाल की भाँति, घात लगा हम किये प्रतीक्षा रात्रिपहर व्याल की भाँति। कटु सत्य है दिन में लड़कर ना इनको हर सकता था, भला एक हीं अश्वत्थामा युद्ध कहाँ लड़ सकता था? जब तन्द्रा में सारे थे छिप कर निज अस्त्र उठाया मैंने , निहत्थों पर चुनचुन कर हीं घातक शस्त्र चलाया मैंने। दुश्कर,दुर्लभ,दूभर,मुश्किल कर्म रचा जो बतलाता हूँ , ना चित्त में अफ़सोस बचा ना रहा ताप ना पछताता हूँ। तन मन पे भारी रहा बोझ अब हल्का हल्का लगता है, आप्त हुआ है व्रण चित्त का ना आज ह्रदय में फलता है। जो सैनिक योद्धा बचे हुए थे उनके प्राण प्रहारक हूँ , शिखंडी का शीश विक्षेपक धृष्टद्युम्न संहारक हूँ। जो पितृवध से दबा हुआ जीता था कल तक रुष्ट हुआ, गाजर मुली सादृश्य काट आज अश्वत्थामा तुष्ट हुआ। ©Ajay Amitabh Suman #Poetry_on_Duryodhana, #Ashvatthama, #Mahabharata, #Epic, #Poetry_on_mahabharata, #Poertry_on_Ashvtthama अश्रेयकर लक्ष्य संधान हेतु क्रियाशील हुए व्यक्ति को अगर सहयोगियों का साथ मिल जाता है तब उचित या अनुचित का द्वंद्व क्षीण हो जाता है। अश्वत्थामा दुर्योधन को आगे बताता है कि कृतवर्मा और कृपाचार्य का साथ मिल जाने के कारण उसका मनोबल बढ़ गया और वो पूरे जोश के साथ लक्ष्यसिद्धि हेतु अग्रसर हो चला।
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........................... ©Ajay Amitabh Suman #Pauranik, #Kavita, #Duryodhana, #Poetry_on_Duryodhana, #Ashvatthama, #Mahabharata, #Epic, #Poetry_on_mahabharata, #Poertry_on_Ashvtthama अश्रेयकर लक्ष्य संधान हेतु क्रियाशील हुए व्यक्ति को अगर सहयोगियों का साथ मिल जाता है तब उचित या अनुचित का द्वंद्व क्षीण हो जाता है। अश्वत्थामा दुर्योधन को आगे बताता है कि कृतवर्मा और कृपाचार्य का साथ मिल जाने के कारण उसका मनोबल बढ़ गया और वो पूरे जोश के साथ लक्ष्यसिद्धि हेतु अग्रसर हो चला।
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••••••••••• ©Ajay Amitabh Suman दुर्योधन कब मिट पाया:भाग-29 #Kavita #Duryodhana #Ashvatthama #Kritvarma #Kripacharya #Mahabharata #Mahadev #Shiv #Rudra महाकाल क्रुद्ध होने पर कामदेव को भस्म करने में एक क्षण भी नहीं लगाते तो वहीं पर तुष्ट होने पर भस्मासुर को ऐसा वर प्रदान कर देते हैं जिस कारण उनको अपनी जान बचाने के लिए भागना भी पड़ा। ऐसे महादेव के समक्ष अश्वत्थामा सोच विचार में तल्लीन था।
Ajay Amitabh Suman
................. ©Ajay Amitabh Suman #Kavita #Duryodhana #Ashvatthama #Kritvarma #Kripacharya #Mahabharata #Mahadev #Shiv शिवजी के समक्ष हताश अश्वत्थामा को उसके चित्त ने जब बल के स्थान पर स्वविवेक के प्रति जागरूक होने के लिए प्रोत्साहित किया, तब अश्वत्थामा में नई ऊर्जा का संचार हुआ और उसने शिव जी समक्ष बल के स्थान पर अपनी बुद्धि के इस्तेमाल का निश्चय किया । प्रस्तुत है दीर्घ कविता "दुर्योधन कब मिट पाया " का सताईसवाँ भाग।