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Best भूखे Shayari, Status, Quotes, Stories

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Chauhan Chirag

#भूखे

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Vibhooti Gondavi.

इस जहाँ की हकीकत बहुत बदरंग है साहेब,
न जाने कितनों को भूखे सोने की आदत हो गई है #बदरंग
#भूखे
#सोने
#जहाँ
#हकीकत
#nojotohindi
#nojotourdu
#साहब

Avnish Singh

#kisaan nojoto

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वो किसान है ।
वो दाता है भगवान है वो ज़मीन का है रक्षक वो एक सच्चा इंसान है।

क्या होता अगर ना उगाते फसल वो ।

भूखे हम भूखे लोग सब यूंही तरप तरप मर जाते।

जो बाते करते हैं बड़ी बड़ी कुर्सियों पे बैठ के जड़ा इज्जत दो किसान को।
माना वो गरीब हैं पर पालनहार है वो हमारे। #kisaan 
#nojoto

Drx. Mahesh Ruhil

B@++

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बदला लेने की सोच नहीं ह 
हमारी 
हम ना तो जिस्म के भूखे ह 
ना जान के 
हम तो भूखे ह इमान के 
प्यार से जीत ले दिल सबका
क्या रखा ह बदले की आग में B@++

Deepak Raghuwanshi

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किसी भूखे को
 खाना खिलाना ही सबसे बड़ा धर्म है
 और 
किसी भूखे को खाना खिलाते वक्त
 फोटो खीचकर फेसबुक पर डालना 
उससे भी बड़ा

samandar Speaks

नयनसी परमार Neha Kar Disha Patel Rahul sen Shivansh Mishra Anant

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लोग आग मे जलते हैं अक्सर,जख्मो को ओढ़े रहते हैं
हमलोग हैं ऐसे दीवाने,ख्वाबों से बातें करते हैं

कभी अश्क पिये कभी दर्द पिये
कभी ओढ़ कफन सो जाते हैं
फिर आते जाते लोगों से हँसकर के बातें करते हैं

भूखे दिन-भर हम चलते हैं, शब भर भूखे हम सोते हैं
फिर ओढ़ लिहाफा अम्बर का धरती कि गोद मे सोते हैं

हम फूलों के ब्यापारी हैं,काँटो से सौदे करते हैं
फूलों के ख्वाब मे रहते हैं, काँटो पे सोया करते हैं
आग मे .............................।
राजीव नयनसी परमार Neha Kar Disha Patel Rahul sen Shivansh Mishra Anant

govind bundelkhandi

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भूखे पेट फटे कपडे और फटे जूते 
वो दर्द नहीं दे पाते

जो पैसे के भूखे लोगों की 
रुसवाई दे जाती है

Brijendra Dubey 'Bawra,

वो उन आलीशान बंगलों के भूखे, नंगे, बेचारे हम झोपड़ी के रइशों तक भी भी पहुँच जाते हैं ! कसम से ये चुनाव भी ना भिखमंगो की हैसियत बहुत बढ़ा देती है!! © बृजेन्द्र 'बावरा' #चुनाव #भूखे #नंगे #बेचारे #भिखमंगो #हैसियत Shairy #nojotohindi #bawraspoetry

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वो उन आलीशान बंगलों के
भूखे, नंगे, बेचारे
हम झोपड़ी के रइशों तक भी
भी पहुँच जाते हैं !
कसम से ये चुनाव भी ना
भिखमंगो की हैसियत बहुत बढ़ा देती है!!
                         © बृजेन्द्र 'बावरा'


www.facebook.com/bawraspoetry/ वो उन आलीशान बंगलों के
भूखे, नंगे, बेचारे
हम झोपड़ी के रइशों तक भी
भी पहुँच जाते हैं !
कसम से ये चुनाव भी ना
भिखमंगो की हैसियत बहुत बढ़ा देती है!!
                         © बृजेन्द्र 'बावरा'
#चुनाव #भूखे #नंगे #बेचारे #भिखमंगो #हैसियत #NojotoShairy #NojotoHindi #bawraspoetry

Parul Sharma

मंदिर में पानी भरती वह बच्ची चूल्हे चौके में छुकती छुटकी भट्टी में रोटी सा तपता रामू ढावे पर चाय-चाय की आवाज लगाता गुमशुदा श्यामू रिक्से पर बेबसी का बोझ ढोता चवन्नी फैक्ट्रीयों की खड़खड़ में पिसता अठन्नी सड़कों,स्टेशनों,बसस्टॉपों पर भीख माँगते बच्चे भूखे अधनंगे कचरे में धूँढते नन्हे हाथ किस्मत के टुकड़े खो गया कमाई में पत्थर घिसने वाला छोटे किसी तिराहे चौराहे पर बनाता सिलता सबके टूटे चप्पल जूते।

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मंदिर में पानी भरती वह बच्ची 
    चूल्हे चौके में छुकती छुटकी
      भट्टी में रोटी सा तपता रामू
 ढावे पर चाय-चाय की आवाज लगाता गुमशुदा श्यामू 
रिक्से पर बेबसी का बोझ ढोता           
      चवन्नी फैक्ट्रीयों की खड़खड़ में पिसता अठन्नी
सड़कों,स्टेशनों,बसस्टॉपों पर भीख माँगते बच्चे भूखे अधनंगे
 कचरे में धूँढते नन्हे हाथ किस्मत के टुकड़े
 खो गया कमाई में पत्थर घिसने वाला छोटे
 किसी तिराहे चौराहे पर बनाता सिलता सबके टूटे चप्पल जूते।
 दीवार की ओट से खड़ी वो उदासी
  है बेबस, है लाचार इन मासूमों की मायूसी
  दिनरात की मजदूरी है मजबूरी
  फिर भी है भूखा वह, भूखे माँ-बाप और बहन उसकी।
   कुछ ऐसा था आलम उस पुताई वाले का
   पोतता था घर भूख से बिलखता।
 कुछ माँगने पर फूफा से मिलती थी मार लताड़।
 इसी तरह बेबस शोषित हो रहे हैं
   कितने ही बच्चे बार-बार।
 न इनकी चीखें सुन रहा, न नम आँखें देख रहा
      वक्त, समाज, सरकार!!!
 होना था छात्र, होता बस्ता हाथ में,
 इनका बचपन भी खेलता,
 साथियों व खिलौनों के साथ में।
  पर जकड़ा !!
  गरीबी,मजदूरी,भुखमरी और बेबसी ने इनके बचपन को!
   शर्मिंदा कर रही इनकी मासूमियत समाज की मानवता को।
     दी सरकार ने...
 जो स्कूलों में निशुल्क भोजन पढाई की व्यवस्था
  पेट भरते है उससे अधिकारि ही ज्यादा।
 फिर क्या मिला ?
       इन्हें इस समाज से
   बना दिया सरकार ने..
 बस एक " बाल श्रमिक दिवस"इनके नाम से।
                पारुल शर्मा मंदिर में पानी भरती वह बच्ची 
चूल्हे चौके में छुकती छुटकी
भट्टी में रोटी सा तपता रामू
ढावे पर चाय-चाय की आवाज लगाता गुमशुदा श्यामू रिक्से पर बेबसी का बोझ ढोता चवन्नी फैक्ट्रीयों की खड़खड़ में पिसता अठन्नी
सड़कों,स्टेशनों,बसस्टॉपों पर भीख माँगते बच्चे भूखे अधनंगे
कचरे में धूँढते नन्हे हाथ किस्मत के टुकड़े
खो गया कमाई में पत्थर घिसने वाला छोटे
किसी तिराहे चौराहे पर बनाता सिलता सबके टूटे चप्पल जूते।

निखिल कुमार अंजान

मेरे अंदर का बच्चा  किसी भूखे को रोटी का निवाला दे दो
किसी गरीब को शिक्षा का उजियारा दे दो
हो अगर काबिल तो किसी को सहारा दे दो
छत और वस्त्र नही है जिस गरीब के पास
उसको आशा की किरण का सवेरा दे दो
मिटा दो अंधियारा गरीबी और भुखमरी का
शहर को अपने इक नया उजियाला दे दो
तिल तिल कर मरता आया है जो मजदूर 
उसको जीने का एक नया बहाना दे दो
इंसान हो इंसान होने का थोड़ा फर्ज निभा लो
फैला खुशीयाँ  इंसानियत की लौ जला लो
बूझते हुए चिराग को अंधड से बचा लो 
जिंदगी रोशन कर मन का सुकून पा लो
छोड़ो मजहब और जात पात की लड़ाई
बीच वाला भाईचारे का रास्ता अपना लो
आत्मा अमर है लेकिन जिंदगी कुछ बरस है
नेकी और बदी ही जीवन का सच्चा सत्संग है
फिर लगती क्यों ये जिंदगी बेरंग है
प्रेम और स्नेह ही जग मे असल रंग है
किसी भूखे को रोटी का निवाला दे दो
किसी गरीब को शिक्षा का उजियारा दे दो.............  

#निखिल_कुमार_अंजान.... #मेरी_डायरी
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