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Ganesh Din Pal
इन्तज़ारों में गुज़रे हैं बरसों बहुत, देखते-देखते बुढ़ापा आ गया, अब अंधेरों से शिकवा मैं कैसे करूं, जब उजालों ने मुझको ही धोखा दिया। ©Ganesh Din Pal #ई बुढ़ापा
Ek villain
किसी ने मुझे पूछ लिया ई-मेल के दादाजी कौन है इसे ने कहा अरे इसका भी कोई डीएनए होता है क्या अब ईमेल के दादाजी के आधार कार्ड का पता नहीं ना ही दादाजी की अंगुलियों के डिजिटल फिंगरप्रिंट ना ही सिर का कोई बाल तो कैसे तलाशा जा सकता है मगर पूछने वाला भी कबूतर की गर्दन में बंद ही छुट्टी जैसा था बिना किसके वह मुझे लेटर बॉक्स तक ले गया बोला यह ईमेल के दादा जी मैंने बोला गजब की उड़ान है यह तुम्हारी यह बोला मैं ईमेल के द्वारा जी को कबूतर तक ले जा सकता था पर उनका परिणाम कैसे देता वरना ट्विटर की चिड़िया का ख्याल रहता था मेरे दिमाग घूम गया सोचा ही नहीं था कि हरी बत्ती वाला भारी-भरकम रेडियो मोबाइल मिट्टी में देश देशांतर होता का वीडियो बनाया जाएगा सोचा नहीं था कि महाभारत का महान पौधा पेन ड्राइव में निर्गुण अवतार बन जाएगा याद आ रहा है शायद उसके व्यंग पोस्ट ऑफिस का लाल डब्बा पोस्ट ऑफिस का हीरो बना गया था अब देखना है एक भी लैटर कैपिटल नहीं मगर इतना जितना हल्का उतना ही सुपर सोनिक दादा तो सड़क किनारे लाल प्रतिमा में खड़े खड़े रह गए वर्षों से चिट्ठी आई आई गीता सुनाकर बाबा घर में हो रहे हैं पुत्र ने पूछ लिया दादा जी किसकी छुट्टी आए क्या आया है मैंने कहा बेटा यह देश भक्तों का प्यार गीता ©Ek villain #ई-मेल के दादाजी लेटर बॉक्स #Love
Faniyal
करू कैसे अंदाज़े बयाँ, किस क़दर तेरी याद आई ! दिल में है तस्वीर तेरी, तू है मेरी पर परछाई !! जीता हूँ मै पल -पल मर के, हर दम रहती है तन्हाई,! आरजू है तेरे संग जीने की, सही नहीं जाती है जुदाई !! ©Madan Faniyal Singh #j#u#d#a#a#i #जु #दा #ई
आर्या
ईअ मिथिला अछि गाम हमर जे छैन जनकनंदिनी केअ नइअहर से मिथिला अछि धाम हमर जतक पान-मखान आर रहूअ माँछ अई नामि ओ मिथिला अछि गाम हमर जतक जितिया आ चौरचन पाबैईन अछि बड भारि ओ पवित्र मिथिला अछि धाम हमर लबान केर चूड़ा-दही होय या फेर तिलकोरक तरुआ एइतक खान-पान अछि बड़ि रूचिगर ओ मिथिला अछि गाम हमर खेत-पथार सअ सजल चारु ओर टेएर- बरद पर लादल अछि धानक बोझक-बोझ एईअ सबसँ रमनगर लगैत अछि ओ मिथिला अछि गाम हमर मिथिलांचल केर बियाह होइ या कोजगरा संस्कृति अइछ एतक बड महान जतक मिथिला अरिपन अछि देशक पहिचान ओ मिथिला अछि गाम हमर, ई S मिथिलाक पहिचान अछि हमर।। 28/10/19 #ई मिथिला अछि गाम हमर
Ashok Dabral
इंसान जो सोचता है वो क ई बार तो होता है और क ई बार नहीं होता ऐसा क्यों होता है सोचा है कभी थोडा दिमाग लगाओ
Er.Shivampandit
ओक्का बोक्का तीन तलोक्का, फूट गयल बुढ़ऊ क हुक्का। फगुआ कजरी कहाँ हेरायल, अब त गांव क गांव चुड़ूक्का।। ओक्का बोक्का तीन तलोक्का, फूट गयल बुढ़ऊ क हुक्का। फगुआ कजरी कहाँ हेरायल, अब त गांव क गांव चुड़ूक्का।। नया जमाना नयके लोग, नया नया कुल फईलल रोग। एक्के बात समझ में आवै,
Geeta Panjwani
💃कल एक न ई सुबह फिर आएगी। कल फिर से बहुत खुशिंयां दे जाईगी कल एक पन्ना और जुड़ेगा जिंदगी का कल फिर जिंदगी जीने के क ई और मौके लाईगी । ईक बार युं भी सोच के देखो सचमें राहत हो जाएगी ।।।
संजय श्रीवास्तव
प्रेम की परिभाषा लिख पाओगे ! थक जाओगे मत सोचो बहुत गहराई तक , अपने मिलन से जुदाई तक , जिसके पास न होने पर कमी सी लगती है ! अचानक सोचते हुए नमी सी लगती है !! वहीं से तो पनपती है प्रेम की बीजें! अच्छी लगने लगती हैं हर चीजें ! मौसम की पहली बारिश लहलहा देती है प्रेम के फसल को ! फिर क्या ! लिखी जाती है ई, तनहाई मे गजल को ! बहुत दूर बैठे चांद को छत पर बुलाकर सब,शिकवे गिले होते हैं ! अगले ही पल दो दिल मिले होते हैं ! बस यही प्रेम ताउम्र जिंदा रहती है ! ये अलग बात है आजकल वो कुछ शर्मिंदा रहती है! संजय श्रीवास्तव प्रेम की परिभाषा लिख पाओगे ! थक जाओगे मत सोचो बहुत गहराई तक , अपने मिलन से जुदाई तक , जिसके पास न होने पर कमी सी लगती है ! अचानक सोचते हुए नमी सी लगती है !! वहीं से तो पनपती है प्रेम की बीजें! अच्छी लगने लगती हैं हर चीजें ! मौसम की पहली बारिश लहलहा देती है प्रेम के फसल को ! फिर क्या ! लिखी जाती है ई, तनहाई मे गजल को ! बहुत दूर बैठे चांद को छत पर बुलाकर सब,शिकवे गिले होते हैं ! अगले ही पल दो दिल मिले होते हैं ! बस यही प्रेम ताउम्र जिंदा रहती है ! ये अलग बात है आजकल वो कुछ शर्मिंदा रहती है! संजय श्रीवास्तव प्रेम
Sudeep Keshri✍️✍️
मैं अखबार हूँ... देता रोज़ नई समाचार हूँ... मैंने देखे हैं बदलते ज़माने को... तत्पर रहता हूँ आप तक न्यूज़ पहुंचाने को... बदलते दौर में मेरा भी स्वरूप बदला है... मैं भी अब अखबार से ई-अखबार हो गया हूँ... अब तो मैं आपके mobile app में भी उपलब्ध हूँ... तो दोस्तों मेरा एक संदेश मानिए... पानी की तरह पेपर भी बचाइए... जंगल को कटने से बचाइए... और ई-अखबार का मजा लीजिए... रोज ताज़ा तरीन न्यूज़ पाईये... मैं #अखबार हूँ... देता #रोज़ नई #समाचार हूँ... मैंने देखे हैं बदलते ज़माने को... तत्पर रहता हूँ आप तक न्यूज़ पहुंचाने को... बदलते दौर में मेरा भी #स्वरूप बदला है... मैं भी अब अखबार से ई-अखबार हो गया हूँ... अब तो मैं आपके #mobile app में भी उपलब्ध हूँ...