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Talat Arooz

SK Singhania

मोनिक यादव

तुझे कब #अक्ल आएगी,
 कहते थे #घरवाले जिसे,

 #जिम्मेदारियों के बोझ तले,
 सुधर गया वो #लड़का।।

Neel Lokesh Mishra (Insta-Neel3.Mishra)

Shravan Goud

समझदार इंसान को ही जिम्मेदारीयां 
जकड लेती है नासमझ तो दुर भागते है। #rzdipalijha4#restzone #rzwotm #जिम्मेदारियों  #YourQuoteAndMine
Collaborating with Dipali Jha

Dev singhaniya

बेटा, अब तू भी बड़ा हो गया है
 थोड़ी
 जिम्मेदारी का बोझ
 तू भी संभाल ले

©Dev singhaniya #जिम्मेदारियों का #बोझ

शिवानन्द

#जिम्मेदारियों के आगे यह #बेगाना शहर भी अपना लग रहा है। बहुत लोग हैं इस #शहर में,,,,,मगर अपनों बीन ये दिल #खामोशियों में पल रहा है। #नदान_परिंदा #yqdidi #Hindi #yqtales

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जिम्मेदारियों के आगे यह बेगाना शहर भी
अपना लग रहा है।

बहुत लोग हैं इस शहर में
👇
मगर अपनों बीन ये दिल खामोशियों में पल रहा है। #जिम्मेदारियों के आगे यह #बेगाना शहर भी अपना लग रहा है।
बहुत लोग हैं इस #शहर में,,,,,मगर अपनों बीन ये दिल #खामोशियों में पल रहा है।  
#नदान_परिंदा #yqdidi #hindi #yqtales

Anjaan

बचपन में हमने गांव में #साइकिल तीन चरणों में सीखी थी , 
पहला चरण   -   कैंची 
दूसरा चरण    -   डंडा 
तीसरा चरण   -   गद्दी ...
तब साइकिल की ऊंचाई 24 इंच हुआ करती थी जो खड़े होने पर हमारे कंधे के बराबर आती थी ऐसी साइकिल से गद्दी चलाना मुनासिब नहीं होता था।
#कैंची वो कला होती थी जहां हम साइकिल के फ़्रेम में बने त्रिकोण के बीच घुस कर दोनो पैरों को दोनो पैडल पर रख कर चलाते थे।
और जब हम ऐसे चलाते थे तो अपना #सीना_तान कर टेढ़ा होकर हैंडिल के पीछे से चेहरा बाहर निकाल लेते थे, और क्लींङ क्लींङ करके घंटी इसलिए बजाते थे ताकी लोग बाग़ देख सकें की लड़का साईकिल दौड़ा रहा है।
आज की पीढ़ी इस "#एडवेंचर" से महरूम है उन्हे नही पता की आठ दस साल की उमर में 24 इंच की साइकिल चलाना "#जहाज" उड़ाने जैसा होता था।
हमने ना जाने कितने दफे अपने घुटने और मुंह तुड़वाए है और गज़ब की बात ये है कि तब #दर्द भी नही होता था, गिरने के बाद चारो तरफ देख कर चुपचाप खड़े हो जाते थे अपना हाफ कच्छा पोंछते हुए।
अब तकनीकी ने बहुत तरक्क़ी कर ली है पांच साल के होते ही बच्चे साइकिल चलाने लगते हैं वो भी बिना गिरे। दो दो फिट की साइकिल आ गयी है, और अमीरों के बच्चे तो अब सीधे गाड़ी चलाते हैं छोटी छोटी बाइक उपलब्ध हैं बाज़ार में।
मगर आज के बच्चे कभी नहीं समझ पाएंगे कि उस छोटी सी उम्र में बड़ी साइकिल पर #संतुलन बनाना जीवन की पहली #सीख होती थी! 
#जिम्मेदारियों" की पहली कड़ी होती थी जहां आपको यह जिम्मेदारी दे दी जाती थी कि अब आप #गेहूं पिसाने लायक हो गये हैं।
इधर से चक्की तक साइकिल ढुगराते हुए जाइए और उधर से कैंची चलाते हुए घर वापस आइए।
और यकीन मानिए इस जिम्मेदारी को निभाने में खुशियां भी बड़ी गजब की होती थी।
और ये भी सच है की हमारे बाद "कैंची" प्रथा #विलुप्त हो गयी ।
हम लोग  की दुनिया की #आखिरी_ पीढ़ी हैं जिसने साइकिल चलाना तीन चरणों में सीखा !
पहला चरण कैंची
दूसरा चरण डंडा
तीसरा चरण गद्दी।
● हम वो आखरी पीढ़ी  हैं, जिन्होंने कई-कई बार मिटटी के घरों में बैठ कर परियों और राजाओं की #कहानियां सुनीं, जमीन पर बैठ कर खाना खाया है, #प्लेट_में_चाय पी है।
● हम वो आखरी लोग हैं, जिन्होंने बचपन में मोहल्ले के मैदानों में अपने दोस्तों के साथ पम्परागत खेल, #गिल्ली-डंडा, छुपा-छिपी, खो-खो, कबड्डी, कंचे जैसे खेल खेले हैं..🩺


😊😊

©Anjaan YAADEN

#Drown #village #Love #motivate

Anurag Vishwakarma

#अंतर्राष्ट्रीय #पुरुष #दिवस की हार्दिक #शुभकामनाएं ईश्वर आपको #जिम्मेदारियों लेकर पूरा करने की #शक्ति प्रदान करें #internationalmensday #विचार

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मर्द को दर्द भी होता है
 मर्द रोते भी हैं
हर किसी के ऊपर फिल्मी डायलॉग नही सूट करता है

मर्द भी चाहता है कि अपने सारे जिम्मेदारियां 
किसी के ऊपर छोड़कर आजादी से अपने माता पिता के पास रहे
वह भी चाहता है किसी के कंधे पे अपने सिर रखकर रोए लेकिन 

लेकिन इतने खुशनसीब कहां
दिन भर दर दर की ठोकर खाकर भी मस्त मगन रहता है
वह  अपने खुशी, शौक, ईत्यादि का मारकर जिंदा रहता है

ठोकर खाते रहें जिम्मेदारियां लेते रहें और हर हाल में खुश रहें
अंतरराष्ट्रीय पुरुष दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं
l

©Anurag Vishwakarma #अंतर्राष्ट्रीय #पुरुष #दिवस की हार्दिक #शुभकामनाएं ईश्वर आपको #जिम्मेदारियों लेकर पूरा करने की #शक्ति प्रदान करें

#internationalmensday

Vivek Singh

यूं तो दिल हमारा भी मचला है कई दफा,
पर जिम्मेदारियों से फुर्सत मिले
 तो इश्क़ करूं।

©Vivek Singh .
#यूं तो #दिल #हमारा भी #मचला है कई #दफा,
पर #जिम्मेदारियों से #फुर्सत मिले
 तो #इश्क़ करूं।
#नोजोटो #Nojoto
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