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vinay vishwasi
आज का इंसान इंसान आज इतना उदास क्यों है? हर वस्तु को पाने की प्यास क्यों है? उसे जीवन ही जीना है तो, नित्य नई वस्तु की तलाश क्यों है? मालूम है उसे जीवन की सच्चाई, फिर अनैतिक कर्मों में विश्वास क्यों है? जल गई घमण्ड की रस्सी मगर, उसकी ऐंठन का अबतक एहसास क्यों है? वो ज़िंदादिल नहीं, ज़िंदा है केवल, फिर महान व्यक्तित्व बनने का प्रयास क्यों है? बीती नहीं उम्र गृहस्थी की, दिनचर्या में अभी से सन्यास क्यों है? जिन संस्कारों, शिष्टाचारों से दुनिया बढ़ी, आज वही उसके लिए बकवास क्यों है? सोचे-विचारे 'विनय' हर दिन, इंसान-इंसान में इतनी खटास क्यों है? #प्रकाशित कविता #विश्वासी
vinay vishwasi
गृह अपना छोड़ चला मैं तोड़ कर ये मोह का बंधन, गृह अपना छोड़ चला मैं। कुछ पाने की हसरत में, जाने अब किस ओर चला मैं। न है कोई ठौर-ठिकाना, बस वैसे ही दौड़ चला मैं। सपनों की स्वर्णिम मंजिल की, सारी कड़ियाँ जोड़ चला मैं। काँटों में भी है राह बनाना, हर बाधा को तोड़ चला मैं। कुछ उलझन कुछ आशाएँ, आशीष स्वजनों के बटोर चला मैं। लेकर हौसलों की ऊँची उड़ानें, करने सबसे होड़ चला मैं। तोड़कर ये मोह का बंधन, गृह अपना छोड़ चला मैं। #प्रकाशित रचना #विश्वासी
vinay vishwasi
जाना फिर अकेले है ज़िन्दगी है चार दिनों की फिर क्यों ये झमेले हैं, आए थे जग में अकेले जाना फिर अकेले है। इंसान है हैवान न बन छल-दंभ की दुकान न बन, कौन है अपना कौन पराया सब दुनिया वाले तेरे हैं। आए थे जग में अकेले जाना फिर अकेले है। (पूरी कविता captionमें पढें) #प्रकाशित कविता जाना फिर अकेले है ज़िन्दगी है चार दिनों की फिर क्यों ये झमेले हैं, आए थे जग में अकेले जाना फिर अकेले है।
#प्रकाशित कविता जाना फिर अकेले है ज़िन्दगी है चार दिनों की फिर क्यों ये झमेले हैं, आए थे जग में अकेले जाना फिर अकेले है।
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बदलाव सियासत की सुकून लिये चेहरे का मुस्कान क्यों बदल रहा है? दिन पर दिन ये इंसान क्यों बदल रहा है? दुहाई देते थे जो धर्म और नीति की, आज उन्हीं का ईमान क्यों बदल रहा है? काली करतूतों को छिपाने के लिये, लोगों का दूकान क्यों बदल रहा है? गाली देते थे जिनको कल तक, आज उन्हीं के लिये जुबान क्यों बदल रहा है? आम से खास बन गये थे जो, फिर उनका पहचान क्यों बदल रहा है? अब तक जी हजूरी करते थे जिनकी, अचानक से ही निशान क्यों बदल रहा है? मची है हलचल सियासी गलियारों में, हड़बड़ी में रोज फरमान क्यों बदल रहा है? बिगुल बजी नहीं अभी चुनाव की, दिग्गजों का मैदान क्यों बदल रहा है? कहे 'विश्वासी' विश्वास से,हो न हो, पंचवर्षीय सत्ता का कमान बदल रहा है। #काव्य_संग्रह_नवांकुर में #प्रकाशित
#काव्य_संग्रह_नवांकुर में #प्रकाशित
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जुदाई वक्त है ठहरा हुआ कैसी ये तन्हाई है, रात गई सुबह हुई फिर भी क्यों अंगड़ाई है। नींद नहीं नैनों में पर सपनों की परछाई है, सुख-चैन सब कुछ गुमा, कैसी घड़ी ये आई है। कभी भूलूँ कभी यादों में खोऊँ प्यार की ये गहराई है, एक क्षण लगे घंटा समान, लंबी बड़ी जुदाई है। नहीं छँटते गम के अंधेरे क्या यही जीवन की सच्चाई है, किसके लिए अब रुके 'विश्वासी', हर तरफ नफरतों की खाई है। वक्त है ठहरा हुआ कैसी ये तन्हाई है, रात गई सुबह हुई फिर भी क्यों अंगड़ाई है। #प्रकाशित कविता #विश्वासी
Ghumnam Gautam
#PoeticAntakshri #मुक्तक #व्यथा #कथा #प्रकाशित #अन्तस् #कौन #मौन #ghumnamgautam
read moreTHE VIKRANT RAJLIWAL SHOW
💥 Author, Writer, Poet & Dramatist Vikrant Rajliwal (कवि, शायर, नज़्मकार, ग़ज़लकार, गीतकार, व्यंग्यकार, लेखक एव नाटककार-कहानीकार-सँवादकार) 1) प्रकाशित पुस्तक "एहसास"(published Book) : अत्यधिक संवेदनशील काव्य पुस्तक एहसास, जिसका केंद्र बिंदु हम सब के असंवेदनशील होते जा रहे सभ्य समाज पर अपनी काव्य और कविताओं के द्वारा एक प्रहार की कोशिश मात्र है। Sanyog (संयोग) प्रकाशन घर शहादरा द्वारा प्रकाशित एव ए वन मुद्रक द्वरा प्रिंटिड। प्रकाशन वर्ष जनवरी 2016. प्रकाशित मूल्य 250:00₹ मात्र।
💥 Author, Writer, Poet & Dramatist Vikrant Rajliwal (कवि, शायर, नज़्मकार, ग़ज़लकार, गीतकार, व्यंग्यकार, लेखक एव नाटककार-कहानीकार-सँवादकार) 1) प्रकाशित पुस्तक "एहसास"(published Book) : अत्यधिक संवेदनशील काव्य पुस्तक एहसास, जिसका केंद्र बिंदु हम सब के असंवेदनशील होते जा रहे सभ्य समाज पर अपनी काव्य और कविताओं के द्वारा एक प्रहार की कोशिश मात्र है। Sanyog (संयोग) प्रकाशन घर शहादरा द्वारा प्रकाशित एव ए वन मुद्रक द्वरा प्रिंटिड। प्रकाशन वर्ष जनवरी 2016. प्रकाशित मूल्य 250:00₹ मात्र।
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💥 Author, Writer, Poet & Dramatist Vikrant Rajliwal (कवि, शायर, नज़्मकार, ग़ज़लकार, गीतकार, व्यंग्यकार, लेखक एव नाटककार-कहानीकार-सँवादकार) 1) प्रकाशित पुस्तक "एहसास"(published Book) : अत्यधिक संवेदनशील काव्य पुस्तक एहसास, जिसका केंद्र बिंदु हम सब के असंवेदनशील होते जा रहे सभ्य समाज पर अपनी काव्य और कविताओं के द्वारा एक प्रहार की कोशिश मात्र है। Sanyog (संयोग) प्रकाशन घर शहादरा द्वारा प्रकाशित एव ए वन मुद्रक द्वरा प्रिंटिड। प्रकाशन वर्ष जनवरी 2016. प्रकाशित मूल्य 250:00₹ मात्र।
💥 Author, Writer, Poet & Dramatist Vikrant Rajliwal (कवि, शायर, नज़्मकार, ग़ज़लकार, गीतकार, व्यंग्यकार, लेखक एव नाटककार-कहानीकार-सँवादकार) 1) प्रकाशित पुस्तक "एहसास"(published Book) : अत्यधिक संवेदनशील काव्य पुस्तक एहसास, जिसका केंद्र बिंदु हम सब के असंवेदनशील होते जा रहे सभ्य समाज पर अपनी काव्य और कविताओं के द्वारा एक प्रहार की कोशिश मात्र है। Sanyog (संयोग) प्रकाशन घर शहादरा द्वारा प्रकाशित एव ए वन मुद्रक द्वरा प्रिंटिड। प्रकाशन वर्ष जनवरी 2016. प्रकाशित मूल्य 250:00₹ मात्र।
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Vikrant Rajliwal VIKRANTRAJLIWAL.COM मासूम मोहब्ब्त। (एक दर्दभरी दास्ताँ) मेरे सक्रिय बालिग "दास्ताँ" के तहत मेरी आगामी और अब तक की लिखित हुई अंतिल दर्दभरी नज़म दास्ताँ।
Vikrant Rajliwal VIKRANTRAJLIWAL.COM मासूम मोहब्ब्त। (एक दर्दभरी दास्ताँ) मेरे सक्रिय बालिग "दास्ताँ" के तहत मेरी आगामी और अब तक की लिखित हुई अंतिल दर्दभरी नज़म दास्ताँ।
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मेरी नई दास्ताँ "🕯️ बेगुनाह मोहब्ब्त।' को आपकी अपनी साइट vikrantrajliwal.com पर प्रकाशित किया जा चुका है। Visit my site and read my full latest nazam dastan a painful love story. 🕯️ बेगुनाह मोहब्ब्त। बेगुनाह मोहब्ब्त मेरी आज तक कि समस्त दास्तानों में से एक ऐसी दास्ताँ है जिसको लिखते समय मै खुद भी अपने आँसुओ को रोक ना सका था। और आज अपनी या अब यह कहना अधित उचित होगा कि आपकी अपनी इस दास्ताँ को प्रकाशित करते हुए मैं फिर से बेहद भावुक हो रहा हु। अब आपका अधिक समय ना लेते हुए सिर्फ इतना ही कहना चाहू
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