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@hardik Mahajan

"कमेंट्स में कोट्स" मतलब "टिप्पणियों में उद्धरण" मेरी पहली एकल पुस्तक प्रकाशित हो चुकी है, जो आज हर जगह बिक्री पर उपलब्ध होने वाली स्पेशल मेरी यह पहली पुस्तक है, और बहुत से लोग न केवल मेरी पुस्तक को पसंद करेंगे, बल्कि मेरी पहली प्रतिलिपि में ऐसे खोए हुए होंगे, जैसे मानों मैंने नहीं मेरी पहली पुस्तक ने कमाल किया हैं। ☺️☺️✍️✍️हार्दिक महाजन #कमेंट्समेंकोट्स #पहली #एकलपुस्तक #प्रतिलिपि #प्रकाशित #कर्जत #रायगढ़ #महाराष्ट्र #हार्दिकमहाजन #hunarbaaz #Videos

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@hardik Mahajan

//धरा में छिपा जीवन// जीवन का अंत मृत्यु हैं, यह एक शाश्वत सत्य हैं! ओस की बूंद जानती थी, सास्थी पहचानती थी, सूर्य-रथ जब चढ़ आईं किरण, प्रश्न-जब था,धरा में छिपा जीवन? किरणों को ही स्वीकारता मिलन व मरण, प्रेम बिन जीवन का क्या अर्थ? मृत्यु नियति है,यह सोचना व्यर्थ था, आवागम का एक पड़ाव है, मरण मरण से ही उदय नवजीवन, मृत्यु तो एक प्रश्न हैं? यह तो नित्य का क्रम हैं। बूंदों को विश्वास था, इसलिये था,मृत्यु में भी उल्लास किरणों को अंगीकार करने की प्यास, मरण के बाद फिर पूर्णमिलन की आस! ☺️✍️✍️हार्दिक महाजन #roshni #Hindi #kavita #स्वचरित #प्रकाशित #रचना #Hindi #Poetry #hardikmahajan 26_08_2023 sana naaz Anshu writer Puja Udeshi Mili Saha poonam atrey NOJOTO STREAK FOLLOW Lalit Saxena shashi kala mahto वंदना .... Neel

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@hardik Mahajan

#DilKiKalamSe  ✍️ #प्रकाशित #स्वचरित #रचना #माँ #हार्दिकमहाजन #लेखकोंकाईमंच #सर्टिफिकेट #सहभागितापत्र #मदर्सडे बहुत बहुत धन्यवाद ❤️🌹🙏

©Hardik Mahajan Puja Udeshi Anshu writer Dil Lalit Saxena heartlessrj1297

vinay vishwasi

आज का इंसान

इंसान आज इतना उदास क्यों है?
हर वस्तु को पाने की प्यास क्यों है?
उसे जीवन ही जीना है तो,
नित्य नई वस्तु की तलाश क्यों है?
मालूम है उसे जीवन की सच्चाई,
फिर अनैतिक कर्मों में विश्वास क्यों है?
जल गई घमण्ड की रस्सी मगर,
उसकी ऐंठन का अबतक एहसास क्यों है?
वो ज़िंदादिल नहीं, ज़िंदा है केवल,
फिर महान व्यक्तित्व बनने का प्रयास क्यों है?
बीती नहीं उम्र गृहस्थी की,
दिनचर्या में अभी से सन्यास क्यों है?
जिन संस्कारों, शिष्टाचारों से दुनिया बढ़ी,
आज वही उसके लिए बकवास क्यों है?
सोचे-विचारे 'विनय' हर दिन,
इंसान-इंसान में इतनी खटास क्यों है? #प्रकाशित कविता
#विश्वासी

vinay vishwasi

गृह अपना छोड़ चला मैं

तोड़ कर ये मोह का बंधन,
गृह अपना छोड़ चला मैं।
कुछ पाने की हसरत में,
जाने अब किस ओर चला मैं।

न है कोई ठौर-ठिकाना,
बस वैसे ही दौड़ चला मैं।
सपनों की स्वर्णिम मंजिल की,
सारी कड़ियाँ जोड़ चला मैं।

काँटों में भी है राह बनाना,
हर बाधा को तोड़ चला मैं।
कुछ उलझन कुछ आशाएँ,
आशीष स्वजनों के बटोर चला मैं।

लेकर हौसलों की ऊँची उड़ानें,
करने सबसे होड़ चला मैं।
तोड़कर ये मोह का बंधन,
गृह अपना छोड़ चला मैं। #प्रकाशित रचना
#विश्वासी

vinay vishwasi

#प्रकाशित कविता जाना फिर अकेले है ज़िन्दगी है चार दिनों की फिर क्यों ये झमेले हैं, आए थे जग में अकेले जाना फिर अकेले है।

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जाना फिर अकेले है

ज़िन्दगी है चार दिनों की
फिर क्यों ये झमेले हैं,
आए थे जग में अकेले
जाना फिर अकेले है।

इंसान है हैवान न बन
छल-दंभ की दुकान न बन,
कौन है अपना कौन पराया
सब दुनिया वाले तेरे हैं।
आए थे जग में अकेले
जाना फिर अकेले है।

(पूरी कविता captionमें पढें) #प्रकाशित कविता
जाना फिर अकेले है


ज़िन्दगी है चार दिनों की
फिर क्यों ये झमेले हैं,
आए थे जग में अकेले
जाना फिर अकेले है।

vinay vishwasi

बदलाव सियासत की


सुकून लिये चेहरे का मुस्कान क्यों बदल रहा है?
दिन पर दिन ये इंसान क्यों बदल रहा है?
दुहाई देते थे जो धर्म और नीति की,
आज उन्हीं का ईमान क्यों बदल रहा है?
काली करतूतों को छिपाने के लिये,
लोगों का दूकान क्यों बदल रहा है?
गाली देते थे जिनको कल तक,
आज उन्हीं के लिये जुबान क्यों बदल रहा है?
आम से खास बन गये थे जो,
फिर उनका पहचान क्यों बदल रहा है?
अब तक जी हजूरी करते थे जिनकी,
अचानक से ही निशान क्यों बदल रहा है?
मची है हलचल सियासी गलियारों में,
हड़बड़ी में रोज फरमान क्यों बदल रहा है?
बिगुल बजी नहीं अभी चुनाव की,
दिग्गजों का मैदान क्यों बदल रहा है?
कहे 'विश्वासी' विश्वास से,हो न हो,
पंचवर्षीय सत्ता का कमान बदल रहा है। #काव्य_संग्रह_नवांकुर में
#प्रकाशित

vinay vishwasi

जुदाई
वक्त है ठहरा हुआ
कैसी ये तन्हाई है,
रात गई सुबह हुई
फिर भी क्यों अंगड़ाई है।
                          नींद नहीं नैनों में
                          पर सपनों की परछाई है,
                          सुख-चैन सब कुछ गुमा,
                          कैसी घड़ी ये आई है।
कभी भूलूँ कभी यादों में खोऊँ
प्यार की ये गहराई है,
एक क्षण लगे घंटा समान,
लंबी बड़ी जुदाई है।
                           नहीं छँटते गम के अंधेरे
                           क्या यही जीवन की सच्चाई है,
                           किसके लिए अब रुके 'विश्वासी',
                            हर तरफ नफरतों की खाई है।


वक्त है ठहरा हुआ
कैसी ये तन्हाई है,
रात गई सुबह हुई
फिर भी क्यों अंगड़ाई है। #प्रकाशित कविता
#विश्वासी

Vinod Umratkar

शेवटी प्रतीक्षा संपली! आणि yq वर माझे पहिल्यांदा पुस्तक प्रकाशित झाले खूप खुप धन्यवाद #YourQuotes खूप खुप धन्यवाद #yqtaai खूप खुप धन्यवाद #yqdidi #पुस्तक #प्रकाशित #Yqbook #yqbookclub Check out the book I recently published with YourQuote: https://www.yourquote.in/vinod-umratkar-m6s4/books/abhng-prem-ddl

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----- शेवटी प्रतीक्षा संपली!
आणि yq वर माझे पहिल्यांदा पुस्तक प्रकाशित झाले
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Ghumnam Gautam

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