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sumitkumar6431
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RS Sumit Sipper

कलमकार

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RS Sumit Sipper

यहां बहुत मिलेंगे भड़काने वाले।
पर अपने मन की करना सुमित।

ये चालाकों की दुनिया चतुर हैं।
जरा संभलकर चलना सुमित।

©RS Sumit Sipper #जरा संभलकर #चलना सुमित#

#Anger

#जरा संभलकर #चलना सुमित# #Anger #Poetry

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RS Sumit Sipper

आज भी गला काट दिया जाता है प्यासे का।
हम हाथ में तिरंगा लिए आजादी मना रहे हैं।

इंतजार आज भी है हर सख्स एक जैसे का।
तो फिर हम आजादी या बर्बादी मना रहे हैं।

बेच दिया तिरंगें को क्या ये भी कोई सम्मान है।
किमत लगाकर किमत जानी ये तो मनमानी है।

हर सांस में आजादी झूठी है ये तो अपमान है।
ये तो बस जनता की आड़ में घोर बईमानी है।

©RS Sumit Sipper घोर कलयुग
#AWritersStory

घोर कलयुग #AWritersStory

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RS Sumit Sipper

कभी खामोशियों से डरता जा रहा था ये दिल।
 पर अब मैं नजदीकीयां पाकर भी डरने लगा हूं।
 
 तब तो हर बात को जज़्बात बनाता रहा ये दिल।
 लेकिन अब ज़िम्मेदार होकर भी मुकरने लगा हूं।

 कभी जुबां के हर शब्द को सजाता रहा ये दिल।
 अब‌ जिनकी सुंदरता से मैं खूद बिछड़ने लगा हूं।

 मुझे याद है वो‌ रातें भी जब सोता न था ये दिल।
 पर ख्वाबों में अब हद से ज्यादा गुजरने लगा हूं।

 जो सुखे बाग में बनके सावन आया था ये दिल।
 अब उस बाग को अपने हाथों से मिटाने लगा हूं।

 शूरुआत से ही सभी को हंसाता आया है ये दिल।
 अब देख "सुमित" इस दिल से कैसे जाने लगा हूं।

©RS Sumit Sipper
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RS Sumit Sipper

फिर से छुपा लो ना मां मुझको तेरे आंचल में।
उंगली पकड़ के पापा मुझे ले चलो बचपन में।

वो मस्तियां मां सारी जिदां है फिर से धड़कन में।
ले चलो ना पापा मुझे सुंदर से उस लड़कपन में।

जो भूला हुआ हुं डांटना तेरा मां अब इस क्षण में।
रोते को गले लगाना पापा सुनहरे उस अपनेपन में।

असल चाहत तो तू ही थी मां अब ऐसा है धन में। चंद पैसों का लालच पापा भर दो फिर से मन में।

मैं अब फंस गया हूं मां जिंदगी के इस दल-दल में।
कंधे पे‌ लो बिठा पापा मुझे ले चलो ना बचपन में।

©RS Sumit Sipper #नहीं चाहिए #बिछौना अलग मुझे मां #सोना है तेरी #बाहों में।
नहीं #आजादि रही वो #पापा जो थी #बचपन की #राहों में।

#नहीं चाहिए #बिछौना अलग मुझे मां #सोना है तेरी #बाहों में। नहीं #आजादि रही वो #पापा जो थी #बचपन की #राहों में। #Poetry

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RS Sumit Sipper

कितना करता हूं प्यार ये सवाल न किया कर।
जब खूद गवाह‌ है तू जवाब भी खूद दिया कर।

कब तक हूं साथ तेरे ऐसा बवाल न किया कर।
बस सासों में मेरी मौजूदगी महसूस किया कर।

हिज्र में इतना खूद का बुरा हाल न किया कर।
जरा सी आंखें बंद और मुझे निहार लिया कर।

हर घड़ी में हूं साथ पुछकर कमाल न किया कर।
तेरे आने की खुशीयों में सब पहचान लिया कर।

©RS Sumit Sipper
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RS Sumit Sipper

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RS Sumit Sipper

 र लठां की मार कोनी बस की बात मेरी।
आदत है बात मैं कलम की गैल करूंगा।
अर भाई जरा गौर त सुणीयो बात मेरी।
जमा एक-एक बात म्हं सच्जाई धरूगां।

जब जाट आंदोलन का होया था मसला।
उस टेम भी सरकार की चपेट म आए थे।
किसे का नाम आतंकवाद मं था उछला।
कई होगे घायल कई बिछड़े मां के जाए थे।

र फेर रोड़ा प वे अन्नदाता आ के बैठे थे।
उन प भी जूल्म करे जो भूख मिटावै हैं।
इस घटिया राज न वे भी बोत घणे लपेटे थे।
जितने रहे थे घर त बार वे कडै सुख पावै हैं।

इब फेर यो नीच राजा चाल खेलग्या भारी।
यो हर फौजी प बस फौज भूण्डी करावैगा।
र फेर बणा मुकदमा जिंदगी खोवैगा सारी।
कुछ नी धरया इन दग्यां मं जणा-२ पछतावैगा।

©RS Sumit Sipper
  #कह सुमित सिप्परिया #कलम म दम प।
के #बस इब कुछ #ग़लत काम नी करणा।
#पत्थर धर के दिल त काडदयो #अग्निपथ न।
जीणा है थम न #कसाई के #हाथ नी मरणा।

#कह सुमित सिप्परिया #कलम म दम प। के #बस इब कुछ #ग़लत काम नी करणा। #पत्थर धर के दिल त काडदयो #अग्निपथ न। जीणा है थम न #कसाई के #हाथ नी मरणा। #Society

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RS Sumit Sipper

जब बेटीयां घरों से कहीं दूर चली जाती हैं।
तो फूलों से महक कहीं ओर चली जाती है।
कि खोया-सा रहता है ये बाग भी आजकल।
जहां हवाएं भी आ के कहीं ओर चली जाती हैं।

©RS Sumit Sipper
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RS Sumit Sipper

जब बेटीयां घरों से कहीं दूर चली जाती हैं।
तो फूलों से महक कहीं ओर चली जाती है।
कि खोया-सा रहता है ये बाग भी आजकल।
जहां हवाएं भी आ के कहीं ओर चली जाती हैं।

©RS Sumit Sipper #past is not same for future

#Childhood

#Past is not same for future #Childhood #Poetry

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RS Sumit Sipper

दिल्लगी में है सकूं मरने से अच्छा‌ है कि जी सकूं।
बोतल से छोड़ कर शराब आंखों से जाम पी सकूं।
डर नहीं है खोने का मिलने की धुन का साज हूं।
सारी ख्वाहिशें छोड़ दि अब घूंट सब्र की पी सकूं।

है दिल्लगी मेरी चाहतें मैं जिसमें ढलकर रह सकूं।
कहने से अच्छा है किसी को खुद से ही मैं कह सकूं।
अब दर्द नहीं है आंखों में मोहब्बत की मै आश हूं।
रशमे सारी छोड़ी है ताकि खुद के सपने सी सकूं।

दिल्लगी है नस-नस में अब कतरा-कतरा बह सकूं।
सुनकर सबकी बातें अब मैं खुद की चुप्पी सह सकूं।
अब रस्ता नहीं है नदियों-सा समुन्द्र के जो पास हूं।
बह गया वो सुमित पुराना अब दिल्लगी में रह सकूं।

©RS Sumit Sipper #दिल्लगी है #दिल्लगी बस #दिल्लगी है #दिल्लगी
#holdinghands
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