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संवेदिता "सायबा"

कविता मन विमोहन नगर की ये संवेदिता। गुनगुनाती है जीवन की गोपन कथा। चंद शब्दों व छंदों का आश्रय लिए। भाव अविरल है उन्मुक्त सी "कविता"। एक सा #Poetry #WorldPoetryDay #nojotohindi #hindipoetry #worldpoetryDay2023

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नितिन कुमार 'हरित'

सबकी अपनी अपनी दुनिया सबकी अपनी अपनी सोच, कोई रहता चुप चुप गुमसुम, कोई करता नित उदघोष । कोई हंसता कोई रोता, कोई रहता नित अतिशान्त, सबकी अपनी #India #Hope #Country #UNITY #विचार #nkharit

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सबकी अपनी अपनी दुनिया
सबकी अपनी अपनी सोच,
कोई रहता चुप चुप गुमसुम,
कोई करता नित उदघोष ।

कोई हंसता कोई रोता,
कोई रहता नित अतिशान्त,
सबकी अपनी अपनी बोली,
सबके अपने अपने प्रांत ।

स्वप्न अलग हैं, भाव अलग हैं,
किंतु जैसे रुधिर रंग एक ,
एक ही रखना अपनी माटी,
देश प्रेम में सब संग एक ।।

follow@aaina.nkharit

- Nitin Kr Harit सबकी अपनी अपनी दुनिया
सबकी अपनी अपनी सोच,
कोई रहता चुप चुप गुमसुम,
कोई करता नित उदघोष ।
कोई हंसता कोई रोता,
कोई रहता नित अतिशान्त,
सबकी अपनी

Nitin Kr Harit

सबकी अपनी अपनी दुनिया सबकी अपनी अपनी सोच, कोई रहता चुप चुप गुमसुम, कोई करता नित उदघोष । कोई हंसता कोई रोता, कोई रहता नित अतिशान्त, सबकी अपनी #yqdidi #YourQuoteAndMine

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सबकी अपनी अपनी दुनिया
सबकी अपनी अपनी सोच,
कोई रहता चुप चुप गुमसुम,
कोई करता नित उदघोष ।
कोई हंसता कोई रोता,
कोई रहता नित अतिशान्त,
सबकी अपनी अपनी बोली,
सबके अपने अपने प्रांत ।
स्वप्न अलग हैं, भाव अलग हैं,
किंतु जैसे रुधिर रंग एक ,
एक ही रखना अपनी माटी,
देश प्रेम में सब संग एक ।।
follow@aaina.nkharit सबकी अपनी अपनी दुनिया
सबकी अपनी अपनी सोच,
कोई रहता चुप चुप गुमसुम,
कोई करता नित उदघोष ।
कोई हंसता कोई रोता,
कोई रहता नित अतिशान्त,
सबकी अपनी

Kautilya

#happykarwachauth ऐंठन क्यों होती है? ऐंठन विशेष रूप से पैर, उंगलियों और पिंडलियों की मांसपेशियों में आम है। शारीरिक रूप से, ऐंठन परिसंच #जानकारी

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vasundhara pandey

यूँ तो लिखते हैं न कितने, शिज़िर और साज़ पर, लिख गये कुछ कर गये नाम, अमर भारत मात पर। मिट गये कितने न जाने, कुर्बां हुये वंदे मातरम् के नाम #yqdidi #VandeMatram #yqquotes #yqpoetry #bankimchandrachattopadhyay

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 यूँ तो लिखते हैं न कितने,
शिज़िर और साज़ पर,
लिख गये कुछ कर गये नाम,
अमर भारत मात पर।
मिट गये कितने न जाने,
कुर्बां हुये वंदे मातरम् के नाम पर।
 
वंदे मातरम् । 🇮🇳 यूँ तो लिखते हैं न कितने,
शिज़िर और साज़ पर,
लिख गये कुछ कर गये नाम,
अमर भारत मात पर।
मिट गये कितने न जाने,
कुर्बां हुये वंदे मातरम् के नाम

Ankit Srivastava

ओये ... मेरी Lifeline ❤️, गुलाबो तुम्हारी ख़ामोशीयाँ, सबसे ज़्यादा कोलाहल करती है मेरे मन में, मैं ख़ाली हो जाता हूँ, मेरी सांसे मुझमें गूं

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ओये ....
मेरी Lifeline ❤️, गुलाबो

तुम्हारी ख़ामोशीयाँ,
सबसे ज़्यादा कोलाहल करती है मेरे मन में,
(Read in caption) ओये ...
मेरी Lifeline ❤️, गुलाबो

तुम्हारी ख़ामोशीयाँ,
सबसे ज़्यादा कोलाहल करती है मेरे मन में,

मैं ख़ाली हो जाता हूँ,
मेरी सांसे मुझमें गूं

Rishika Srivastava "Rishnit"

सुहावन आज राम जन्म की बेला है घर घर में विश्वास भाव का मेला है राम रहे सदैव कर्तव्य समर्पित कर्म पथ रहा राम का अलबेला है #Poetry #nojotowriters #रामनवमी #जयश्रीराम🚩🙏🚩 #जयमातादी🙏

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सुहावन आज राम जन्म की बेला है, घर घर में विश्वास भाव का मेला है
राम रहे सदैव कर्तव्य समर्पित, कर्म पथ रहा राम का अलबेला है
बाल रूप जन जन नयन निहारे, शैशव मे ही निशाचर अति संहारे
शिव धनुष भंग कर जनक सुता से व्याहे, राजमहल ऐश्वर्य छोड़,वन गमन सिधारे
विप्र,धेनु सुर, संत हित वचन उचारे, निषाद राज शबरी का सम्मान किया,
खर दूषण मारे
स्वर्ण मृग मोह हुआ सीता को,श्रीराम ने मारीच सहित अन्य असुर उद्धारे
छद्म रूप धारण किए दशानन खड़ा हुआ था द्वारे
लक्ष्मण रेखा लाॅ॑घ शक्ति ने , किया सुनिश्चित रावण वध था
जटायु, सुग्रीव,अंगद, हनुमान, विभीषण के राम वने सहारे
सभी दुष्ट दानवों का दर्प हरा,जो थे रावण को अति प्यारे
राम हमारी मर्यादा हैं, राम सदा हमारे आदर्श रहे
श्वांस श्वांस में राम समाये, राम नाम का रुधिर बहे

           जय जय श्री राम

©Rishnit सुहावन आज राम जन्म की बेला है

घर घर में विश्वास भाव का मेला है

राम रहे सदैव कर्तव्य समर्पित

कर्म पथ रहा राम का अलबेला है

Priya Kumari Niharika

शीर्षक: लालफीताशाही से दरख्वास्त निष्पक्ष विचारों का प्रवाह एकत्व रुधिर के कण-कण में सहयोग का ढूंढो एक वजह दृढ़ निश्चय हो अंतर्मन में #Love #story #me #Shayari #कविता

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शीर्षक: लालफीताशाही से दरख्वास्त

निष्पक्ष विचारों का प्रवाह
 एकत्व रुधिर के कण-कण में
 सहयोग का ढूंढो एक वजह
 दृढ़ निश्चय हो अंतर्मन में

 बिन मौसम तुम बरसात बनो
 लाचारों के ख्यालात बनो
  हर ओर निराशा हाथ लगे
 उत्थान की तुम सौगात बनो

 जज्बातों में ना उलझो तुम
 अपने तर्कों से सहमत हो
 हाथों से तेरे मुफलिस के
 निर्मित आशाओं का छत हो

 भीषण संकट की ढाल बनो
 डंके की चोट की ताल बनो
 मानव की रक्षा हेतु तुम
 धरती मैया के लाल बनो

 समझो जन-जन की पीड़ा तुम
 समाधान करो हर संकट का
 लहरों से तुम अब डरो नहीं
 शक्ति समझो तुम कंकट का 

 ऊपरी सतह की सत्ता के
 भय से ना तू रुक पाना अब
 विकसित तू करना राष्ट्र स्वयं
 अवरुद्ध न होंगी रहे तब

 अपनी सत्ता के नीचे की,हर सतह संवारो हाथो से
 विकास नहीं आता , समझे......  नारे लगते हैं बातों से

©verma priya शीर्षक: लालफीताशाही से दरख्वास्त

निष्पक्ष विचारों का प्रवाह
 एकत्व रुधिर के कण-कण में
 सहयोग का ढूंढो एक वजह
 दृढ़ निश्चय हो अंतर्मन में

प्रशान्त मिश्रा मन

एक गीत! मैंने सोचा न जिसको कभी होश में, आज वो स्वप्न बन कर चली आयी है। मन तृषित हो उठा, कँपकँपाने लगा। दाँत से उँगलियाँ मैं दबाने लगा। एषण

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एक गीत!

मैंने सोचा न जिसको कभी होश में,
आज वो स्वप्न बन कर चली आयी है।

मन तृषित हो उठा, कँपकँपाने लगा।
दाँत से उँगलियाँ मैं दबाने लगा।
एषणा थी न जिसकी मुझे वो मिला-
धमनियों में रुधिर लबलबाने लगा।

साँस बढ़ने लगी फिर उसे देख कर-
सज सँवर कर चली, मनचली! आयी है।
आज वो स्वप्न बन कर चली आयी है।

छू रही वो मुझे मैंने उसको छुआ।
एक होने लगा तन मचलता हुआ।
गढ़ रहीं देह पर धड़कनें राग को-
साँस से और ख़ुशियों की माँगी दुआ।

मैं बहकने लगा था भ्रमर की तरह-
जब लगा मेरे घर इक कली आई है।
आज वो स्वप्न बन कर चली आयी है।

प्यास क्या थी.? हमें यह मिलन कह रहा।
मैं धरा शुष्क; उसको गगन कह रहा।
साध कर मौन वो प्रेम बरसा गयी-
तर मुझे कर गयी यह बदन कह रहा।

चूम कर माथ को वो लिपटने लगी-
बन के कोई परी! बावली आई है।
आज वो स्वप्न बन कर चली आयी है।

प्रशांत मिश्रा मन






 #NojotoQuote एक गीत!

मैंने सोचा न जिसको कभी होश में,
आज वो स्वप्न बन कर चली आयी है।

मन तृषित हो उठा, कँपकँपाने लगा।
दाँत से उँगलियाँ मैं दबाने लगा।
एषण

atrisheartfeelings

#Sundarkand #Sunderkand #ananttripathi #atrisheartfeelings #Devotional #GoodMorning मसक समान रूप कपि धरी। लंकहि चलेउ सुमिरि नरहरी॥ नाम लंक

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मसक समान रूप कपि धरी। लंकहि चलेउ सुमिरि नरहरी॥
नाम लंकिनी एक निसिचरी। सो कह चलेसि मोहि निंदरी॥
जानेहि नहीं मरमु सठ मोरा। मोर अहार जहाँ लगि चोरा॥
मुठिका एक महा कपि हनी। रुधिर बमत धरनीं ढनमनी॥
पुनि संभारि उठी सो लंका। जोरि पानि कर बिनय ससंका॥
जब रावनहि ब्रह्म बर दीन्हा। चलत बिरंच कहा मोहि चीन्हा॥
बिकल होसि तैं कपि कें मारे। तब जानेसु निसिचर संघारे॥
तात मोर अति पुन्य बहूता। देखेउँ नयन राम कर दूता॥

तात स्वर्ग अपबर्ग सुख धरिअ तुला एक अंग।
तूल न ताहि सकल मिलि जो सुख लव सतसंग॥ #sundarkand #sunderkand #ananttripathi #atrisheartfeelings #devotional #goodmorning 

मसक समान रूप कपि धरी। लंकहि चलेउ सुमिरि नरहरी॥
नाम लंक
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